स्वतंत्र समय, इंदौर
हुकुमचंद मिल के श्रमिकों की तीस साल से धुंधलाती आस को आखिर शुक्रवार खुशियों का पैगाम लाया और इसी के साथ उनका इंतजार भी खत्म हुआ। नई सरकार गठित होने के पहले हाई कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में हुकुमचंद मिल मजदूरों की बकाया राशि तीन दिन में श्रमिकों के खाते में डालने के आदेश दिए। शुक्रवार को न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर की एकल पीठ ने यह आदेश दिया। 32 साल से हुकुमचंद मिल के मजदूरों का यह संघर्ष चल रहा है। मजदूर यूनियन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गिरीश पटवर्धन और धीरज सिंह पंवार ने कोर्ट को बताया कि निर्वाचन आयोग ने मजदूरों को भुगतान के लिए अनापत्ति-पत्र जारी कर दिया है। इसके बाद हाई कोर्ट ने हाउसिंग बोर्ड को आदेश जारी करते हुए कहा कि तीन दिन में पूरी राशि श्रमिकों के खाते में जमा की जाए।
स्टेट बैंक के खाते में आएगी रकम
हरनासिंह धारीवाल और नरेंद्र श्रीवंश ने बताया सरकार को 425 करोड़ रुपए जमा करने होंगे। इनमें मजदूरों के ब्याज सहित 218 करोड़ रुपए भी हैं। तीन दिन में एसबीआई में खाता खोलकर यह रुपए जमा कराने होंगे। पहले इस मामले में 5 दिसंबर को सुनवाई होना थी लेकिन निर्वाचन आयोग से अनुमति की सूचना मिलते ही हाई कोर्ट के समक्ष अर्जेंट सुनवाई की गुहार लगाई गई जिसे स्वीकार कर लिया गया था।
5895 मजदूर परिवारों की आस
करीब 16 वर्ष पहले हाई कोर्ट ने मजदूरों के पक्ष में 229 करोड़ रुपए मुआवजा तय किया था। हुकुमचंद मिल के 5895 मजदूर 12 दिसंबर 1991 को मिल बंद होने के बाद से अपने हक के लिए भटक रहे हैं। इसका भुगतान मिल की जमीन बेचकर किया जाना है, लेकिन वर्षों तक जमीन के स्वामित्व को लेकर नगर निगम और शासन के बीच विवाद चलता रहा। बाद में जमीन बेचने के प्रयास हुए लेकिन बार-बार निविदाएं आमंत्रित करने के बावजूद जमीन नहीं बेची जा सकी।
होगा व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स का निर्माण
समझौते के मुताबिक मिल की जमीन पर गृह निर्माण मंडल और नगर निगम को संयुक्त रूप से आवासीय और व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स का निर्माण करना है। इस निर्माण पर खर्च गृह निर्माण मंडल करेगा जबकि जमीन नगर निगम की है। इसके एवज में मंडल को मजदूरों और शेष लेनदारों का भुगतान करना है।
लंबी चली लड़ाई, सुप्रीम कोर्ट तक गया मामला, 2200 मजूदरों की हो चुकी है मौत
हुकुमचंद मिल के मजदूरों का संघर्ष लंबा और कड़ा है। इस बीच कई सरकारें आईं और चली गईं लेकिन मजदूरों अपने हक के लिए तरसते रहे। मिल 1991 में बंद हुई थी जिससे मजदूरों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया था। तंगहाली में करीब 69 श्रमिकों ने मौत को गले लगाकर आत्महत्या कर ली। आखिर 1996 में पहली बार मजदूरों ने अपने हक के लिए लडऩे का फैसला किया और मामला कोर्ट में दाखिल हुआ। कोर्ट की यह लड़ाई लंबी चली और 2007 में मजदूरों के हक में फैसला भी आएगा लेकिन सरकार ने हाथ खींच लिए और रुपए देने से इंकार कर दिया। ऐसे में मामला सुप्रीम कोर्ट के पाले में गया। आखिर 2017 को कोर्ट की सख्ती के बाद मजदूरों को अपनी जीत के आसार दिखे। इसके बावजूद छह साल और खींच गए। इन 32 सालों में 2200 मजदूर इस दुनिया से कूच कर चुके हैं।
आंकड़ों के आईने में हुकुमचंद मिल
- 12 दिसं. 1991: को बंद हुई थी मिल।
- 5895: मजदूर नौकरी से हुए थे बेदखल।
- 2200: मजदूरों की अदालती लड़ाई के दौरान मौत।
- 69: मजदूरों ने तंगहाली में की आत्महत्या।
- 1996: बकाया राशि के लिए पहली बार कोर्ट में मजदूरों ने लगाई थी याचिका
- 06 अगस्त 2007: को पहली बार कोर्ट ने 229 करोड़ रुपए मजदूरों को देने के आदेश दिए थे।
- 2017 में: सरकार पर सख्ती 50 करोड़ तत्काल भुगतान के निकाले थे आदेश, जमीन नीलामी के भी हुए थे आदेश।