स्वतंत्र समय, इंदौर
तीस साल का इंतजार बहुत लंबा होता है और हर बार ये श्रमिक बैठकें कर उम्मीद पालते थे कि बंद हुई हुकुमचंद का मुआवजा उन्हें जल्द मिलेगा। धीरे-धीरे दिन, महीने, साल और फिर दशक बीते। करीब 2200 से ज्यादा मिल के साथी परम धाम की ओर सिधार गए, लेकिन इंतजार खत्म नहीं हुआ। अदालतों में तारीख-पे-तारीख लगती रही और 2023 के ढलते साल ने इनकी उम्मीदों को फिर जवां कर दिया है। कहना होगा कि हुकुमचंद मिल के श्रमिकों की 1641वीं बैठक में चेहरे पर दीपावली की चमक सा उजास था। श्रमिक नेता नरेंद्र श्रीवंश ने बैठक में बताया कि मजदूरों और उनके परिवारों को ब्याज सहित 218 करोड़ रुपए मिलेंगे और इसकी प्रक्रिया भी जल्दी ही शुरू होने जा रहा है। यह सुनते ही झुर्रियों से भरे श्रमिकों के चेहरे पर चमक आ गई और मुस्कान खिल उठी।
महिलाएं आंसू नहीं रोक सकी
इस बैठक में श्रमिक परिवारों के परिजन व महिलाएं भी शामिल हुई थीं। हुकुमचंद का हक सुनने के लिए आंखें व कान बेताब थे। जब यह खबर पता चली तो कुछ महिलाएं अपने आंसू नहीं रोक सकीं। कुछ की आंखों में खुशी के आंसू भी नजर आए। तो कुछ गमगीन भी थीं कि उन्हें हक तब मिल रहा है, जब परिवार का स्तंभ ही दुनिया से विदा हो चुका है।
ब्याज सहित राशि मिलेगी
वर्षों से श्रमिक इस इंतजार में इस बैठक में आते थे कि कभी तो उनके हक में फैसला आएगा। हाल ही में हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से ब्याज सहित राशि देने के दस्तावेज पेश किए गए और बताया गया कि जल्दी ही मजदूरों को उनका पैसा दिया जाएगा। अब सरकार को इस राशि का भुगतान करना है।
इतना बड़ा क्लैम कभी नहीं मिला
हुकुमचंद मिल मजदूर कर्मचारी अधिकारी के अध्यक्ष नरेन्द्र श्रीवंश ने बताया कि हुकुमचंद मिल के श्रमिकों की ऐतिहासिक जीत हुई है। देश की अन्य किसी भी कपड़ा मिल में इतना बड़ा क्लैम नहीं मिला। यह हमारी मेहनत की जीत है, क्योंकि श्रमिकों ने लगातार संघर्ष जारी रखा। बैठक में बताया गया कि दो साल पहले 62 करोड़ रुपए मिल मजदूरों को मिले थे और अब ब्याज सहित 218 करोड़ रुपए और मिलेंगे।
दो हजार से ज्यादा मजदूरों की मौत
हुकुमचंद मिल 30 साल पहले बंद हो चुकी है। वर्षों तक मजदूरों को उनके हक का पैसा मिल प्रबंधन ने नहीं दिया। श्रमिकों ने कोर्ट में लड़ाई लड़ी। 30 साल में 2 हजार से ज्यादा श्रमिकों की मौत हो गई और 60 से ज्यादा श्रमिकों ने आत्महत्या कर ली, जो मजदूर मर गए, उनके परिवारों ने भी श्रमिकों की लड़ाई में साथ दिया और हर रविवार मिल परिसर में होने वाली बैठकों में वे आते रहे। चाहे गर्मी हो या बरसात, श्रमिकों की बैठक का सिलसिला कभी नहीं टूटा।
मिल की 42 एकड़ जमीन
हुकुमचंद मिल की 42 एकड़ जमीन है। पहले मिल की जमीन बिकने की कोशिश हुई, लेकिन कोई खरीदार आगे नहीं आया। फिर सरकार ने मिल की जमीन पर अपना हक जताया और कोर्ट में श्रमिकों को उनका पैसा देने की बात कही। मिल पर श्रमिकों के अलावा कुछ बैंकों का भी बकाया है, जिसे सरकार चुकाएगी। हाउसिंग बोर्ड के अफसर मिल की जमीन देख चुके है।