स्वतंत्र समय, बैतूल
बाबा मोतीराम जी का पूरा परिवार गुरु गोविंद सिंह महाराज जी के दोनों साहब जादो को दूध पिलाने के कारण 31 दिसंबर से पहले शहिद कर दिया गया था। 15 दिसंबर से 31 दिसंबर के बीच गुरु गोविंद सिंह महाराज का पूरा परिवार शहिद हो गया था, इसको पुस का महीना कहा जाता है। इन दिनों में पंजाब के अंदर कोई भी खुशी का कारज नहीं किया जाता है। जहां गुरु गोविंद सिंह जी के बच्चों को याद किया जाता है वहीं बाबा मोतीराम जी के पूरे परिवार को याद किया जाता है। बाबा मोतीराम मेहरा” जिनका वर्णन हर सिक्ख ग्रंथ में है। इन्हे सरहिन्द के किलेदार वजीर खान ने परिवार सहित जिन्दा कोल्हू में पीसा दिया था। उनकी वीरता और बलिदान का उल्लेख बंदा बैरागी ने किया और उनकी स्मृति में एक गुरुद्वारा फतेहगढ़ में बनवाया गया। बाबा मोतीराम मेहरा के चाचा हिम्मत राय गुरु गोविन्द सिंह जी के पंच प्यारों में से एक सिक्ख थे, बाद में उनका नाम हिम्मत सिंह हुआ। लेकिन उनके पूर्वज जगन्नाथ पुरी उड़ीसा के रहने वाले थे,जो बाद में समय के साथ पंजाब आये और सरहिन्द में नौकरी कर ली। बाबा मोतीराम जी के पिता हरिराम कैदखाने की रसोई घर के इंचार्ज थे। दिसम्बर 1704 के अंतिम सप्ताह में गुरु गोविन्द सिंह के चारों साहबजादे शहीद हों गए। उन्हें 27 दिसंबर 1704 की तिथि कों जब दो दिन की यातनाएं देकर गुरुजी के दो छोटे साहबजादों को जिन्दा दीवार में चुनवा दिया गया था और बाद में गुरुजी की माता गूजरी को अमानवीय यातनायें दी गयीं, जिसके कारण वह भी शहीद हुईं। बाबा मोतीराम का अपराध यह था कि दिसम्बर की बेहद कपकपा देने वाली रात को जब दो दिन के भूखे साहबजादों को दीवार पर पटका था, तब बाबा मोतीराम मेहरा ने साहबजादों और दादी को किसी तरह दूध पहुँचा दिया था। साहबजादों और माता गूजरी की शहादत के दो दिन बाद सरहिन्द के किलेदार वजीर खान को यह पता चला कि मोतीराम ने रात में साहबजादों को दूध पहुँचाया था। किलेदार के हुकुम से फौज पूरे परिवार को उठा लाई। माता, पत्नि छै वर्ष की बेटी और मोतीराम को ले आई, जबकि पिता और दर्जनों लोगों को वहीं मार डाला गया। वजीर खान ने पूछा तो बाबा मोतीराम ने अपना अपराध न केवल स्वीकार किया अपितु गर्व भी व्यक्त किया।