हमारे जीवन में पुण्य और पाप की प्रभावी भूमिका : आचार्यश्री

स्वतंत्र समय, ललितपुर
चौंतीस स्थान दर्शन अनुशीलन पर आयोजित राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी में उच्चारणाचार्य विनम्रसागर महाराज ने कहा कि मानव जीवन में पुण्य-पाप की अपनी प्रभावी भूमिका होती है। हमें करणीय और अकरणीय का ज्ञान होना चाहिए। क्रिया होगी तो फल भी मिलेगा वह अच्छे के लिए अच्छा और बुरे के लिए बुरा होगा। आचार्यश्री ने चौतीस स्थान दर्शन ग्रंथ की प्राकृत हिन्दी टीका के माध्यम से सिद्ध किया है कि जब सार्थक चर्चा होती है तो चर्या भी सार्थक होती है।
आचार्यश्री ने संगोष्ठी से होने वाली अनेक जिज्ञासाओं का समाधान किया और ज्ञान का प्रकाश व धर्म की प्रभावना के लिए विद्वतवर्ग को आशीर्वाद प्रदान किया। पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन अटामंदिर में उच्चारणाचार्य विनम्रसागर महाराज के ससंघ सानिध्य में विद्वतगोष्ठी के दूसरे दिन गणाचार्य विनम्रसागर महाराज के चित्र के सम्मुख दीपप्रज्जवलित कर श्रेष्ठी जनों ने शुभारम्भ एवं मंगलाचरण अंजली सर्राफ द्वारा किया। जिसकी अध्यक्षता विद्वत परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा.अशोक जैन ने करते हुए चौतीस स्थान दर्शन सिद्धान्त प्रवोधिनी टीका को जैन सिद्धान्तों की गणितीय व्याख्या करने वाली अनुपम कृति बताया और कहा यह समाज के लिए अत्यन्त उपयोगी है। उन्होने करूणानुोग विद्या के संरक्षण एवं उसका आधुनिक दृष्टि से प्रतिपादन करने के लिए इसे जनजन तक पहुचाने का आव्हान किया। संगोष्ठी में डा.शैलेश जैन ने आहार भय मैथुन व परिग्रह का समसामयिक विवेचन करते हुए इनपर विजय प्राप्त करने की बात कही। ब्र.विनोद ने मनुष्य भव में संयम की उपयोगिता, डा.अल्पना जैन ने प्र्याप्ति और प्राण तथा डा.पंकज जैन ने स्त्री- पुरूष व नपुंसक वेद के स्वरूप व उनसे रसिहत होकर सिद्धान्त प्राप्त करने की विभिन्न प्रारूपणाओं का निरूपण किया। संगोष्ठी की संयोजना डा.नीलम सराफ ने करते हुए कहा आचार्यश्री विनम्रसागर महाराज के सानिध्य में संगोष्ठी में करूणानुयोग के माध्यम से जैन धर्म की सूक्ष्मता का ज्ञान समाज को मिलेगा और जिनधर्म की प्रभावना में साधक रहेगा। संगोष्ठी में मुनिश्री विज्ञसागर महाराज ने करूणानुयोग को जैन दर्शन संगोष्ठी में सारस्वत अतिथि महेश रहे। जबकि संचालन डा.अमित जैन ने किया। संगोष्ठी में आचार्यश्री के अतिरिक्त संघस्थ मुनि विज्ञ सागर महाराज, विनंद सागर महाराज, मुनिश्री विनुत सागर महाराज, मुनिश्री शुभ सागर महाराज, मुनिश्री विश्वधीर सागर महाराज, मुनिश्री विश्वमित सागर महाराज, आर्यिका विमलश्री माताजी, आर्यिका विनेहश्री माता, वितपश्री माता जी, विसमश्री माता जी, विपुलश्री माताजी, विभव्यश्री माताजी, विशर्वश्री माताजी, प्रमाश्री माताजी विराजमान रही। मध्यान्ह सत्र की अध्यक्षता प्राचार्य महेन्द्र जैन ने की जवकि सारस्वत अतिथि पं.शीतलचंद जैन ललितपुर रहे। संगोष्ठी में विषय का प्रतिपादन करते हुए डा.हरिश्चन्द्र जैन ने गुणस्थान की विवेचना का आलेख प्रस्तुत किया। संघस्थ आर्यिका विपुलश्री माताजी ने गोमटसार जीवकाण्ड की विस्तृत चर्चा की। सत्र का संचालन डा.आशीष जैन ने किया। संगोष्ठी में विद्वत परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुरेन्द्र भारती, विनोद, पवन जैन, अशोक जैन, पंकज, सुखदेव सागर, आलोक जैन, श्रमण जैन, डा.अल्पना जैन, वीरेन्द्र शास्त्री, जयकुमार जैन, विदुषि सरला जैन के अतिरिक्त जैन पंचायत के पूर्व अध्यक्ष अनिल जैन आदि मौजूद रहे।