1984 दगा, सगा और ठगा के नाम से जाना जाएगा…इस मनहूस वर्ष के हर पन्ने पर मौत ही लिखा जाएगा…

प्रखर वाणी

1984 का साल दगा , सगा और ठगा के नाम से जाना जाएगा…इस मनहूस वर्ष के हर पन्ने पर मौत ही लिखा जाएगा…पहले इंदिरा जी की हत्या , फिर सिक्खों पर क्रूर कांग्रेसियों द्वारा निर्ममता और 2-3 दिसम्बर की मध्यरात्रि में भोपाल गैस कांड…ऐसा लगा मानो लाल कपड़ा देखकर देश पर भड़क गया साँड…दगा इसलिए क्योंकि जिसको सुरक्षा की जिम्मेदारी दी थी उसी ने इंदिराजी की हत्या कर दी…सगा इसलिए क्योंकि जिसने सारी जिंदगी वतन और धर्म की रक्षा में अपना सर्वस्व न्योछावर किया उस सगी सिख कौम को ज़िंदा जला देने की निर्ममता कर दी…ठगा इसलिए क्योंकि यूनियन कार्बाइड के खतरों से लगातार सचेत करने वाले मीडिया की भी नहीं सुनी और आखिर उसी ने कीड़े मकोड़े की तरह लाशें बिछा दी…चालीस बरस हो गए मिथाइल आइसो सायनाइट के रिसाव से दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी हो गई…

हजारों लोगों की जिंदगी नींद में और नींद मौत में सो गई…पीढ़ियां अपंगता का दंश ढो गई…अपराधी की रूह अमेरिका की गलियों में खो गई…तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह परिवार को साथ लेकर सरकारी विमान से तुरंत प्रयागराज भाग गए…यूका के सीईओ वॉरेन एंडरसन की जब गिरफ्तारी भी हुई तो उसकी मेहमाननवाजी से उसके भाग्य जाग गए…सरकारी कार , सरकारी विमान से दिल्ली होते हुए एंडरसन अमेरिका क्या भागा…तब से लेकर 2014 में उसकी मौत हुई तब तक भारत पेशी पर भी आने में उसका ईमान नहीं जागा…ये कोई फ़िल्म की पटकथा नहीं अपितु उस वक्त के कलेक्टर मोतीसिंह की साफगोई है…ये लाइने आज भी उनकी 2008 में लिखी किताब ‘अनफोल्डिंग द बिट्रेयल ऑफ भोपाल गैस ट्रेजेडी’ के पन्नों पर खोई है…

घटना के बाद एंडरसन के कमरे का फोन चालू रहना ये चूक थी या जानबूझकर किया गया हथकंडा…फोन के जरिये ही उसको पूरा मामला बदलने का मिल गया था फंडा…इन तमाम तथ्यों से एक बात तो साफ है कि हजारों लोगों का हत्यारा केवल एंडरसन नहीं था…सत्ता का दुमदुभा उसको नाटकीय गिरफ्तार करके भी लूटना चाहता वाहवाही था…खैर चार दशक में भी न्याय नहीं मिला भोपाल गैस त्रासदी का…जबकि सबसे बड़ा घटनाक्रम था ये तब पूरी सदी का…पीढियां जिसकी चपेट में आ गई…जिसकी जहरीली दमघोंटू गैस लाशें बिछा गई…वो अब भी खुशी खुशी दुनिया को अलविदा कह गया…सारा महकमा उसकी इस तानाशाही को सह गया…याद आती है पत्रकार राजकुमार केसवानी की वो चेतावनी जो उन्होंने तीन साल पहले ही दे दी थी…बड़ी घटना के इंतज़ार में ‘ज्वालामुखी के मुहाने बैठा भोपाल’ ये बात कह दी थी…काश वक्त पर सरकारें जाग जाय…तो दुनिया से तकलीफें ही भाग जाए….