2018 में नोटा ने नोचा था भाजपा को, जीत हार के मार्जिन से ज्यादा पड़े वोट

स्वतंत्र समय, भोपाल

नोटा ने पिछली बार विधानसभा चुनाव में भाजपा के समीकरण बिगाड़ कर रख दिए थे और 2003 से सत्तारूढ़ पार्टी को विपक्ष में बैठना पड़ा था। भाजपा 2018 में 109 सीट पर सिमट गई थी। इसकी बड़ी वजह नोटा भी रहद्म। दरअसल, दस सीटें ऐसी रहीं जिसमें जीत-हार का मार्जिन से ज्यादा वोट नोटा के खाते में चले गए थे। बड़वानी जिले के राजपुर से महज 932 वोटों से जीते कांग्रेस के कद्दावर बाला बच्चन की सीट पर सबसे ज्यादा नोटा का इस्तेमाल किया गया। उनके जीत-हार के मार्जिन से ज्यादा नोटा को 3358 वोट मिले। इसी तरह प्रदेश में सबसे छोटी जीत कांग्रेस के प्रवीण पाठक की ग्वालियर ग्रामीण से रही। उन्होंने 121 वोटों से जीत दर्ज की जबकि उनकी सीट पर नोटा को 1349 वोट मिले। निश्चित रूप से नोटा ने भाजपा के लिए पिछली बार समस्या खड़ी की थी। इस बार भी आलाकमान के लिए यह चिंता का विषय है। वहीं इस चुनाव में एक और चुनौती आप पार्टी की भी है।उसने सीटों पर अपने उम्मीदवारों के साथ मैदान में आने का फैसला किया है। कुल मिलाकर यह चुनाव तकनीक, नोटा और तीसरी पार्टी की मौजूदगी के लिए याद किया जाएगा।

सिर्फ 121 वोट से मिली हार

प्रदेश में सबसे कम मतों से विजयी होने का रिकॉर्ड ग्वालियर ग्रामीण से कांग्रेस के प्रवीण पाठक का है। उन्होंने भाजपा के नारायण कुशवाह को 121 मतों से पराजित किया था। इस सीट पर नोटा ने 1349 मत हासिल किए थे। दूसरी सबसे कम अंतर वाली जीत सुवासरा से कांग्रेस के हरदीपसिंह डंग की थी। उन्होंने भाजपा के राधेश्याम पाटीदार को 350 मतों से हराया था। यहां नोटा ने 2976 मत हासिल किए थे।

नोटा ने दिया खारिज करने का अधिकार

भारत में मतदाताओं को अपने चुने हुए जनप्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार है जिसे राइट टू रिकॉल कहते हैं। इसी तरह यदि कोई उम्मीदवार पसंद  नहीं है तो इनमें से कोई नहीं  (नन ऑफ द अबव या नोटा) का विकल्प चुन सकते थे। इस विकल्प को 2013 में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में शामिल किया था।  इस तरह का विकल्प देने वाला भारत दुनिया का 14 वां देश है।

जीत-हार के मार्जिन से ज्यादा नोटा ले गया वोट

विधानसभा क्षेत्र               विजयी उम्मीदवार             पार्टी          जीत का अंतर          नोटा को वोट

ग्वालियर ग्रामीण                    प्रवीण पाठक                कांग्रेस             121                 1349

कोलारस                           वीरेंद्र रघुवंशी                भाजपा             720                1674

बीना                               महेश रॉय                    भाजपा              460               1531

राजनगर                           विक्रम सिंह                   कांग्रेस              732                2485

दमोह                               राहुल सिंह                   कांग्रेस             798                1299

जबलपुर उत्तर                     विनय सक्सेना                कांग्रेस              578                1209

ब्यावरा                            गोवर्धन डांगी                कांग्रेस              826                 1481

राजपुर                            बाला बच्चन                 कांग्रेस                932               3358

जावरा                             राजेंद्र पांडेय                 भाजपा                511                1510

सुवासरा                          हरदीप सिंह डंग              कांग्रेस                350               2976

पसंद के उम्मीदवार होते तो हार-जीत में दिखता अंतर

10 सीटों पर विजयी प्रत्याशियों के जीत की मार्जिन 6028 वोट का था। वहीं, इन 10 सीटों पर नोटा ने 18872 वोट हासिल किए थे। इससे लगता है कि अगर मतदाताओं की पसंद के उम्मीदवार होते तो हार-जीत में अंतर देखने को मिल सकता था। इन दस सीटों में से सात पर कांग्रेस और तीन पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। जाहिर तौर पर दोनों ही दल 2023 के विधानसभा चुनाव में पिछली बार मिली हार को जीत में बदलने या जीत के मार्जिन को बढ़ाने पर फोकस कर रहे हैं।

ये नेता 1000 से कम वोटों से जीते थे

  • 2018 में सबसे कम 121 मतों से ग्वालियर ग्रामीण में प्रवीण पाठक की जीत हुई थी।
  • दमोह से भाजपा के वरिष्ठ नेता जयंत मलैया भी 798 मतों से चुनाव हार गए थे।
  • कमलनाथ मंत्रिमंडल में गृह मंत्री बाला बच्चन सिर्फ 932 मतों से चुनाव जीते थे।
  • 1000 से कम वोटों से विजयी सीटों में सात कांग्रेस और तीन भाजपा को मिली थी।

भाजपा के 4 मंत्री हारे

  • ग्वालियर दक्षिण गृह राज्यमंत्री नारायण सिंह कुशवाहा को सबसे कम सिर्फ 121 वोटों के अंतर से हार का मुंह देखना पड़ा, जबकि नोटा पर 1,550 वोट पड़े।
  • दमोह में वित्त मंत्री जयंत मलैया सिर्फ 799 वोटों से हार गए जबिक नोटा को 1,299 वोट मिले थे।
  • जबलपुर (उत्तर) से स्वास्थ्य राज्यमंत्री शरद जैन महज 578 वोटों से हारे जबकि नोटा पर 1209 वोट पड़े।
  • बुरहानपुर विधानसभा सीट से महिला और बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस 5,120 वोटों से चुनाव हारीं, जबकि नोटा पर करीब 5,700 वोट पड़े थे।
  • 2013 में 1.9 फीसदी मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया यानी करीब 5 लाख मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया था।

2018 में नोटा ने 22 सीटों पर बिगाड़ा गणित

2013 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो 54 सीटों पर नोटा ने तीसरे नंबर पर वोट पाए थे। निर्दलियों से भी ज्यादा वोट नोटा को मिले थे। उन्हें करीब 1.90 फीसदी वोट मिले थे। 2018 में नोटा ने 22 सीटों पर गणित बिगाड़ दिया था। नोटा को कुल 1.42 फीसदी वोट मिले थे। पिछले चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच दशमलव तेरह फीसदी मतों का अंतर था।