30 साल बाद रामलला के चरणों में मौन व्रत तोड़ेंगी सरस्वती

स्वतंत्र समय, धनबाद

अयोध्या में राम मंदिर को लेकर 1990 के दशक में जब देशभर में आंदोलन उफान पर था, उस वक्त धनबाद की रहने वाली सरस्वती देवी ने मंदिर निर्माण का सपना देखा। अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण की इच्छा को लेकर सरस्वती देवी ने मौन व्रत शुरू किया। 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के दिन राम… सीताराम शब्द के साथ इनका मौन व्रत टूटेगा।
धनबाद के करमटांड़ निवासी 85 वर्षीय सरस्वती देवी ने मौन व्रत के दौरान ही चारों धाम की यात्रा की। उन्होंने अयोध्या, काशी, मथुरा, तिरुपति बालाजी, सोमनाथ मंदिर, बाबा बैद्यनाथधाम का भ्रमण किया।
प्रभु राम के चरणों में अपना जीवन समर्पित करने वाली सरस्वती देवी का अधिकतर समय इन दिनों अयोध्या में ही बीतता है। वे बेहद खुश हैं और लिख कर बताती हैं, मेरा जीवन हो गया, रामलला ने मुझे प्राण प्रतिष्ठा में बुलाया है। मेरी तपस्या, साधना सफल हुई। 30 साल बाद मेरा मौन व्रत राम नाम के साथ टूटेगा।

प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने का निमंत्रण

सरस्वती देवी को भी श्रीराम मंदिर अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का निमंत्रण मिला है। निमंत्रण मिलने से इनका पूरा परिवार खुश है। आठ जनवरी को सरस्वती देवी को उनके भाई साथ लेकर अयोध्या जाएंगे। हालांकि परिवार के किसी अन्य सदस्य को समारोह में शामिल होने का निमंत्रण नहीं मिला है।

प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने का निमंत्रण

सरस्वती देवी के परिजन बताते हैं कि मई 1992 में वो अयोध्या गईं थीं। वहां उनकी मुलाकात राम जन्म भूमि न्यास के प्रमुख महंत नृत्य गोपाल दास से हुई। उन्होंने सरस्वती देवी को कामतानाथ पहाड़ की परिक्रमा करने का आदेश दिया। आदेश मिलने के बाद सरस्वती देवी चित्रकूट चली गईं। साढ़े सात महीने कल्पवास में एक गिलास दूध पीकर रहीं। साथ ही रोजाना कामतानाथ पहाड़ की 14 किलोमीटर की परिक्रमा की। परिक्रमा के बाद अयोध्या लौटीं। 6 दिसंबर 1992 को स्वामी नृत्य गोपाल दास से मिली प्रेरणा से उन्होंने मौन धारण कर लिया। मौन धारण के साथ ही उन्होंने संकल्प लिया कि जिस दिन राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होगी, उसी दिन मौन व्रत तोड़ेंगी।

सरस्वती देवी कभी नहीं गईं स्कूल

सरस्वती देवी की शादी 65 साल पहले धनबाद के भौंरा निवासी देवकीनंदन अग्रवाल से हुई थी। राजस्थान से धनबाद आने वाली सरस्वती देवी कभी स्कूल नहीं गईं। उनके पति ने उन्हें अक्षर ज्ञान कराया था। उसके बाद किताबें देखकर पढऩा-लिखना सीखा। सरस्वती देवी हर दिन धार्मिक ग्रंथ पढ़ती हैं और दिन में एक बार सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। 35 साल पहले इनके पति का निधन हो गया था। इनके आठ बच्चे (चार बेटा, चार बेटी) थे, जिनमें तीन का निधन हो गया। जब परिवार को इनके मौन धारण करने की जानकारी मिली, तो परिवार वालों ने इनका स्वागत और सहयोग किया।