मां अहिल्या की कर्मभूमि पर 469 महिलाएं बनीं प्रशिक्षित ड्राइवर, पेश की सशक्तिकरण की मिसाल

इंदौर ने कभी लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर के न्याय, सुधार और महिला सशक्तिकरण की मिसालें देखी थीं, वही शहर आज एक बार फिर उनके सपनों को नए आयाम दे रहा है। इस बार मंच है सड़कें, और किरदार, यह वे महिलाएं है,  जो कभी घर की चारदीवारी तक सीमित रहती थीं, लेकिन आज आत्मविश्वास का स्टेयरिंग थाम कर नई राहें तय कर रही हैं।

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यह वह महिला शक्ति है जो कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद जब हर तरफ अनिश्चितता और बेरोजगारी का अंधेरे से जुझ रही थी तो क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय इंदौर(RTO) ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक अनोखी पहल शुरू की। एक नि:शुल्क ड्राइविंग प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत हुई जिसमें ऐसा कदम उठाया गया कि सैकड़ों महिलाओं की ज़िंदगी बदल गई । अब तक 13 बैचों में 469 महिलाओं को पूरी तरह प्रशिक्षित किया जा चुका है। पहले सिम्युलेटर और फिर ट्रैक पर ट्रेनिंग दी गई, ताकि वे हर परिस्थिति में वाहन चला सकें। परिवहन विभाग की सहायक क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (एआरटीओ) अर्चना मिश्रा बताती हैं, “यह सिर्फ प्रशिक्षण नहीं, बल्कि एक संपूर्ण बदलाव है। महिलाओं को यातायात नियमों से लेकर लाइसेंस बनवाने तक की पूरी प्रक्रिया में मार्गदर्शन दिया जाता है।” यह कार्यक्रम नंदानगर स्थित आईटीआई के सहयोग से संचालित हो रहा है।

ई-रिक्शा से आत्मनिर्भरता की रफ्तार

शिक्षा और प्रशिक्षण के बाद कई महिलाओं ने स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाए। CSR फंडिंग से 27 महिलाओं को 25-25 हजार रुपये की सहायता मिली, जिससे उन्होंने अपने ई-रिक्शा खरीदे। 10 से ज्यादा महिलाएं वाहन शोरूम में कार्यरत हैं, और सपना चौहान नामक महिला तो खुद का ड्राइविंग स्कूल भी चला रही हैं। प्रदेश शासन ने इस पहल की सराहना करते हुए कई समापन कार्यक्रमों में भाग लिया और स्वयं महिलाओं को प्रमाण-पत्र सौंपे। यह दर्शाता है कि जब नीति और नीयत मिलती है, तो परिवर्तन मुमकिन होता है। इंदौर का यह पहल केवल एक प्रशिक्षण कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन है जो यह बता रहा है कि अहिल्याबाई की परंपरा आज भी जीवित है। यह शहर एक बार फिर महिला सशक्तिकरण की ऐसी मिसाल बन रहा है, जहां आत्मनिर्भरता, सम्मान और बदलाव की कहानी हर गली में गूंज रही है।