स्वतंत्र समय, सारंगपुर
साल 1962 से अस्तित्व में आई सारंगपुर विधानसभा सीट शुरू से अब तक एससी के लिए सुरक्षित है। इस सीट पर किसी एक पार्टी का एकाधिकार नहीं रहा है फिर भी यहां 9 बार भाजपा ने जीत हासिल की, वहीं कांग्रेस सिर्फ 3 बार ही जीत पाई। वहीं 1 बार भाजपा के बागी निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत दर्ज की है। इस सीट पर हमेशा से कांग्रेस व भाजपा के बीच कांटे की टक्कर रही है। विधानसभा की इस सीट पर शुरुआत के दौर यानी सन-1962 तक जनसंघ व कांग्रेस मुख्य पार्टी के रूप में रही है। जनसंघ व भाजपा दोनों को मिलाकर इस पार्टी ने 10 बार अपना कब्जा जमाया फिर भी भाजपा विधायक सारंगपुर विधानसभा में विकास में नाकाम ही रहे है। उल्लेखनीय है कि साल 1977 में टिकट न मिलने पर निर्दलीय रूप से भाजपा के ही प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी। 1993 में हुए चुनाव में भाजपा ने पुन: अमरसिंह कोठार को मैदान में उतारा इस बार भी कोठार ने कांग्रेस के रतनलाल वर्मा को हराया।
पेयजल की किल्लत से क्षेत्रवासी परेशान
कालीसिंध नदी होने के बावजूद गर्मी के सीजन में यहां पानी की किल्लत रहती है। पिछले 20 साल से नपा द्वारा एक दो दिन छोडक़र नालों में सप्लाई करती आई है। वही दूसरी और फिल्टर प्लांट भी खराब स्थिति में है और कई बार बारिश के दिनों में गंदा मटमेला बदबूदार पानी शहर में सप्लाय किया जाता है। कई मोहल्लों और शहरी क्षेत्र में ही पेयजल की समस्या गर्मी आते-आते शुरू होने लगती है, इसमें ज्यादा काम नहीं हो पाया।
विधायक विकास व पुरातत्व धरोहर सहजने में रहे नाकाम
प्राचीन धरोहर रानी रूपमती का मकबरा 18 खंभे छन्यारी पनियारी हजारों वर्ष पुरानी इमारतें पहचान खो रहे हैं। इन्हें लेकर सारंगपुर में प्रयास नहीं किए गए हैं। प्राचीन स्थलों सहित अन्य धरोहरें हैं लेकिन इन्हें पहचान नहीं मिल पाई है। पर्यटन विकास निगम तक भी इनकी बात नहीं पहुंच पाई। कई बार तो नपा और पुरातत्व विभाग के बिगड़े सामंजस्य के कारण अधिकारी इसकी जिम्मेदारी लेने से भी कतराते हुए नजर आए है।
रोजगार के इंतजाम नहीं, बढ़ रहा है पलायन
सारंगपुर क्षेत्र में रोजगार की स्थिति दयनीय है। यहां काफी समय से कोई उद्योगस्थापित नहीं किया गया। कुछ साल पहले सिद्धार्थ स्टील ट्यूब फैक्ट्री और सातल कत्था फैक्टरी बंद हो गई है। उसके बाद से ही काफी लोग बेरोजगार हुए। उन्हें बेहतर प्लेटफॉर्म देने आज दिनांक तक कोई इंडस्ट्री यहां नहीं डली। ज्ञात हो कि फैक्ट्रियों के बंद होने के दौरान विधानसभा में भाजपा विधायक का ही कब्जा रहा है बावजूद किसी भी सांसद व विधायक ने इन फैक्ट्रियों को चालू रखने की न तो बात रखी न ही मांग की और न ही कोई पदर्शन किया जबकि उक्त फैक्ट्रियां आज भी अन्य राज्यों में बड़े स्तर पर संचालित हो रही है।
भाजपाई सांसदों ने भी छला
मतदाताओं की माने तो यहा के राजगढ़ क्षेत्र के लोकसभा में अधिकांश समय भाजपाई सांसद ही कुर्सी पर काबिज रहे है। जिन में बॉम्बे के उद्योगपति बसंत कुमार पंडित का नाम शामिल है, साथ ही भाजपा के लक्ष्मण सिंह, नारायण सिंह आमलाबे रोडमल नागर जैसे कई नाम सांसद के रूप में देखे गए हैं। बावजूद यह सांसद क्षेत्र में ना तो विकास करा पाए और ना ही रोजगार के लिए कोई उद्योग स्थापित कर पाए न रेलवे सुविधा उपलब्ध कराई जिसके कारण क्षेत्र के मतदाताओं का कहना है कि इन नेताओं ने भी विधानसभा 164 के मतदाताओं को चुनाव के दौरान बड़े बड़े वादे कर के छला है। आज फिर विधानसभा चुनाव की गूंज सुनाई दे रही है पूर्व विधायक की विकास यात्रा में ग्रामीण क्षेत्रों में रोष को देखते हुए इस बार भाजपा ने प्रत्याशी को बदला है। लेकिन भाजपा प्रत्याशी की 10 साल पुरानी हरकतों से मतदाताओं ने अपना मन बना रखा है इस कारण भाजपा कही सारंगपुर विधानसभा से अपनी सीट को नहीं खोदे ग्रामीण क्षेत्रों में भी भाजपा प्रत्याशी के लेकर भाजपा कार्यकर्ताओं में ही नाराजगी जताई जा रही है ऐसा प्रतीत होता है कि इस बार भाजपा अपना प्रत्याशी नहीं जीत पाएगी क्योंकि मतदाता विगत 15 सालों से इन प्रत्याशियों के खिलाफ कई आंदोलन कर चुकी है ना ही नगर में कोई विकास हुआ है जो विकास होना था उसको भी अपनी करनी और कथनी को लेकर बदल दिया ऐसे कई विकास कार्य है जो नगर के लिए एक पहाड़ के समान नजर आने लगे और विधायक ने अपनी कार्यशैली में परिवर्तन नहीं करते हुए अफसर शाही के बिच मतदाताओं को अनेकों बार अपमानित भी किया है।