स्वतंत्र समय, इंदौर
पिछले 26 महीने से इंदौर के 79 गांवों में अटके विकास के कामों को अब गति मिल सकेगी। नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय से क्रेडाई के इंदौर प्रेसीडेंट संदीप श्रीवास्तव के साथ एक प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात करके प्रोजेक्ट मंजूरी में आने वाली समस्याओं के संबंध में अवगत कराया था। विजयवर्गीय ने क्रेडाई को आश्वस्त किया कि भोपाल स्तर पर धारा 16 के तहत सभी प्रोजेक्ट का परीक्षण कर मंजूरी देने का काम तेजी से किया जाएगा।
कैलाश विजयवर्गीय ने क्रेडाई के प्रतिनिधियों को आश्वस्त किया
इंदौर के मास्टर प्लान का विस्तार कर 79 गांवों को शामिल करने की अधिसूचना 12 मार्च 2021 को जारी की गई थी। इसके बाद इन गांवों के लिए लैंडयूज तय करने के लिए जमीन उपयोग को फ्रीज करते हुए 31 दिसंबर 2021 को धारा 16 लागू कर दी गई। इस धारा के तहत आवासीय कॉलोनी व अन्य मंजूरी के लिए भोपाल से ही मंजूरी डायरेक्टर स्तर पर ही विविध नियमों के तहत मिलना जरूरी हो गया। लेकिन इसमें गिने-चुने ही प्रोजेक्ट मंजूर हुए और बाकी विकास काम ठप हो गया। 26 महीने से यह धारा 16 लागू है, जिसमें भी मंजूरी मिलना कठिन काम है। अब नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने इंदौर के बिल्डर्स, क्रेडाई के प्रतिनिधियों से मुलाकात के बाद इस मामले में विभाग को निर्देश दिए हैं कि धारा 16 के तहत सभी प्रोजेक्ट का परीक्षण कर मंजूरी देने का काम तेजी से किया जाए।
धारा 16 के तहत 4 हेक्टेयर जमीन जरूरी
इस धारा के तहत सबसे बड़ी जरूरत है कि आवासीय प्रोजेक्ट के लिए कम से कम चार हेक्टेयर यानि दस एकड़ जमीन होना जरूरी है। इससे कम में प्रोजेक्ट मंजूर नहीं होगा। साथ ही प्रोजेक्ट के बाहर 12 मीटर की रोड होना जरूरी है। बाकी अन्य शर्तें हैं।
क्यों है यह कठिन प्रक्रिया?
इस धारा के लागू होने के बाद मास्टर प्लान लागू करने तक 79 गांवों में विकास प्रोजेक्ट को नियमित किया जाता है। इसके तहत बिल्डर आवेदन करता है, जो परीक्षण के बाद भोपाल जाता है। यहां पर कमेटी द्वारा स्थल परीक्षण व अन्य दस्तावेजों का परीक्षण कर अभिमत दिया जाता है। इसके बाद डायरेक्टर टीएंडसीपी इसे मंजूरी देते हैं और फिर औपचारिक आदेश इंदौर ऑफिस से जारी होते हैं।
चुनिंदा प्रोजेक्ट को ही किया जा रहा था मंजूर
दरअसल टीएंडसीपी भोपाल स्तर पर प्रोजेक्ट को धीरे-धीरे और चुनिंदा प्रोजेक्ट को ही मंजूर किया जाकर उन पर अभिमत दिया जा रहा था। इसके चलते काफी काम अटक गए थे। विजयवर्गीय को प्रतिनिधिमंडल ने दो समस्याएं बताई। पहली कि धारा 16 में मंजूरी प्रक्रिया में तेजी लायी जाए और साथ ही एसटीपी (सीवरेट ट्रीटमेंट प्लांट) बनाने के लिए जो 50 फीसदी बैंक गारंटी ली जाती है, उसे नहीं ली जाए। इस पर विजयवर्गीय ने दोनों ही मामलों में क्रेडाई को आश्वस्त किया कि इस पर काम किया जाएगा।
79 गांवों में प्रमुख तौर पर यह है शामिल
फूलकराडिय़ा, गुरदाखेड़ी, रोजड़ी, कलमेर बड़ी, हिंगोनिया खुर्द, पानौड़, खेमाना, हिंगोन्या, बिसनखेड़ा, झलारिया, आम्बामाल्या, असरावद बुजुर्ग, जामन्या खुर्द, तिल्लौर खुर्द, उज्जैनी, सोनवाया, छिटकाना, खजुरिया, सतलाना, पालिया हैदर, रिंगनोदिया, पंचडेहरिया, गारी पिपल्या, डकाच्या, बडौदा अर्जुन, पीर कराडिया, बोरसी, मगरखेड़ा, नौगांव, सिंगावदा, राजपुरा उर्फ रैयतपुरा व अन्य।
लोकसभा चुनाव के बाद ही तैयार हो सकेगा मास्टर प्लान
मास्टर प्लान-2041 तीन साल से आउटर पर अटका है। पिछले साल मार्च-अप्रैल में इसके प्रारूप प्रकाशन का दावा किया था। उस दावे को भी एक साल बीतने को है, लेकिन अभी भी कागजी एक्सरसाइज ही हो रही है। बेसमैप के बाद अब लैंड यूज, सर्कुलेशन मैप और रिपोर्ट पर जद्दोजहद चल रही है। 79 नए गांव शामिल होने, महानगरीय प्लानिंग को आधार बनाने से लैंड यूज मैप का गणित उलझता नजर आ रहा है। इस पर अब लोकसभा चुनावों के बाद ही संभव होगा, आचार संहिता के दौरान मास्टर प्लान का प्रकाशन नहीं किया जा सकता है।
ग्रीन बेल्ट की जमीनें आवासीय कर उलझ चुके
लैंड यूज और सर्कुलेशन प्लान में शहर की दिशा और सघनता तय होती है। जनसंख्या के अनुपात में लैंड यूज तय किया जाता है। वर्तमान में नए गांव शामिल होने, इनमें पंचायतों के नक्शे स्वीकृत होने से सर्कुलेशन यानी सड़कें और अन्य उपयोग की जमीनें तय करने में मुश्किल आ रही है। इसी पर माथापच्ची चल रही है। लैंड यूज सबसे बड़ा पेंच है, इसका कारण यह है कि पिछली बार खंडवा रोड, बायपास से सटी कई ऐसी जमीनें, जो ग्रीन बेल्ट में चिह्नित थीं, बाद में अचानक आवासीय हो गईं। उस पर कानूनी उलझनें अब भी चल रही हैं।
अब आगे क्या
लैंड यूज मैप और रिपोर्ट राइटिंग के बाद प्रारूप तैयार होगा। सरकार मास्टर प्लान के इस प्रारूप को प्रकाशित करेगी। 30 से 60 दिन की अवधि में इस पर दावे-आपत्ति व सुझाव बुलाए जाएंगे। इनका परीक्षण होगा, सरकार द्वारा तय कमेटी इन पर सुनवाई करेगी। इसके आधार पर जरूरी बदलाव करके मंजूरी के लिए सरकार को भेजेंगे। इस पूरी प्रक्रिया में कम से कम 4 से 6 माह का समय लगेगा। इसी बीच आपत्ति निराकरण से असंतुष्ट लोग यदि कोर्ट चले गए तो, वहां से निर्णय के बाद ही बात आगे बढ़ेगी।