लाड़ली बहना योजना में बड़ा बदलाव, MP सरकार इसे ‘डिमांड बेस्ड’ बनाएगी, 1.29 करोड़ महिलाओं को मिलेगा कानूनी अधिकार

मध्य प्रदेश में 1.29 करोड़ से अधिक महिलाओं को हर महीने ₹1250 की आर्थिक सहायता देने वाली महत्वाकांक्षी ‘लाड़ली बहना योजना’ में सरकार एक बड़ा और स्थायी बदलाव करने जा रही है। मोहन यादव सरकार इस योजना को ‘सप्लाई बेस्ड’ से बदलकर ‘डिमांड बेस्ड’ बनाने की तैयारी में है, जिससे यह पात्र महिलाओं के लिए एक कानूनी अधिकार बन जाएगा।

लोकसभा चुनाव के बाद इस प्रस्ताव को कैबिनेट के सामने रखा जा सकता है। महिला एवं बाल विकास विभाग ने इसका मसौदा तैयार करना शुरू कर दिया है। इस बदलाव का मतलब है कि अगर कोई महिला योजना के लिए निर्धारित सभी शर्तें पूरी करती ہے, तो सरकार उसे लाभ देने से इनकार नहीं कर पाएगी, भले ही बजट की कमी क्यों न हो।

क्या है ‘डिमांड बेस्ड’ योजना का मतलब?

वर्तमान में, लाड़ली बहना योजना एक ‘सप्लाई बेस्ड’ स्कीम है। इसका मतलब है कि सरकार एक निश्चित बजट आवंटित करती है और उसी के आधार पर हितग्राहियों को भुगतान किया जाता है। यदि बजट समाप्त हो जाता है या कम पड़ जाता है, तो सरकार भुगतान में देरी कर सकती है या नए आवेदनों को रोक सकती है।

लेकिन ‘डिमांड बेस्ड’ मॉडल में ऐसा नहीं होगा। यह योजना वृद्धावस्था पेंशन जैसी योजनाओं की तरह हो जाएगी, जहां पात्रता ही लाभ की गारंटी होती है। जो भी महिला निर्धारित मानदंडों को पूरा करेगी, उसे योजना का लाभ मिलना अनिवार्य होगा। सरकार को हर हाल में उसके लिए बजट का प्रावधान करना पड़ेगा। यह कदम महिलाओं को एक स्थायी सामाजिक सुरक्षा प्रदान करेगा।

क्यों किया जा रहा है यह बदलाव?

विधानसभा चुनाव में लाड़ली बहना योजना को भाजपा की जीत का एक बड़ा कारक माना गया था। अब सरकार इसे एक स्थायी रूप देकर महिलाओं के बीच अपनी पकड़ और मजबूत करना चाहती है। इस बदलाव से योजना के बंद होने या इसमें किसी तरह की कटौती की आशंकाएं समाप्त हो जाएंगी।

अधिकारियों के अनुसार, इस कदम से योजना की कानूनी वैधता बढ़ जाएगी और यह सिर्फ एक सरकारी वादा न रहकर महिलाओं का एक पुख्ता अधिकार बन जाएगा। चुनाव आचार संहिता हटने के बाद, महिला एवं बाल विकास विभाग इस प्रस्ताव को अंतिम रूप देकर मंजूरी के लिए कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत करेगा।

सरकार पर कितना है वित्तीय भार?

फिलहाल मध्य प्रदेश में लाड़ली बहना योजना के तहत 1.29 करोड़ महिलाएं पंजीकृत हैं। सरकार हर महीने ₹1250 प्रति महिला के हिसाब से लगभग ₹1600 करोड़ खर्च करती है। इस तरह योजना का वार्षिक खर्च करीब ₹18,000 करोड़ से अधिक है।

सरकार ने योजना की राशि को चरणबद्ध तरीके से बढ़ाकर ₹3000 प्रति माह करने का वादा भी किया है। यदि योजना ‘डिमांड बेस्ड’ बनती है और भविष्य में राशि भी बढ़ती है, तो सरकार पर वित्तीय बोझ और बढ़ेगा। हालांकि, सरकार इस योजना को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानकर चल रही है और इसके लिए वित्तीय प्रबंधन करने को तैयार है।