मध्य प्रदेश का संस्कारधानी कहा जाने वाला जबलपुर शहर अब प्रदेश का सबसे अधिक ध्वनि प्रदूषित शहर बन गया है। शहर की सड़कों पर अनियंत्रित रूप से बजते प्रेशर हॉर्न और वाहनों के शोर ने आम जीवन को मुश्किल बना दिया है। यहां शोर का स्तर सामान्य से कहीं ज़्यादा 80 से 90 डेसिबल तक पहुंच रहा है, जो लोगों में बहरेपन और अन्य गंभीर बीमारियों का कारण बन रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार, रिहायशी इलाकों में दिन के समय ध्वनि का स्तर 55 डेसिबल और रात में 45 डेसिबल से अधिक नहीं होना चाहिए। वहीं, व्यावसायिक क्षेत्रों के लिए यह सीमा दिन में 65 और रात में 55 डेसिबल है। इसके विपरीत, शहर में इस्तेमाल होने वाले प्रेशर हॉर्न 110 से 120 डेसिबल तक का शोर पैदा करते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है।
शहर के ये इलाके हैं सबसे ज्यादा प्रभावित
शहर के कई प्रमुख चौराहे और सड़कें ध्वनि प्रदूषण के हॉटस्पॉट बन चुके हैं। इनमें मदन महल, तीन पत्ती चौराहा, दमोह नाका, अधारताल, रानीताल और गोरखपुर जैसे इलाके प्रमुख हैं। इन व्यस्त इलाकों में सिटी बसों, डंपरों, ट्रकों और ऑटो-रिक्शा का लगातार शोर बना रहता है। इसके अलावा, मॉडिफाइड साइलेंसर वाली बाइकें इस समस्या को और भी गंभीर बना देती हैं।
बहरापन और हृदय रोग का बढ़ता खतरा
ध्वनि प्रदूषण के सीधे स्वास्थ्य प्रभावों पर डॉक्टरों ने गहरी चिंता जताई है। शहर के वरिष्ठ ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. सुनील मूलचंदानी के अनुसार, 80 डेसिबल से अधिक के शोर में लगातार रहने से कानों के सुनने की क्षमता स्थायी रूप से खत्म हो सकती है।
उन्होंने बताया, “मेरे पास रोजाना 10 से 12 ऐसे मरीज आ रहे हैं, जिन्हें तेज शोर के कारण सुनने में परेशानी हो रही है। यह एक गंभीर स्थिति है।”
वहीं, मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. एस.सी. गुप्ता का कहना है कि ध्वनि प्रदूषण केवल कानों तक सीमित नहीं है। यह हाई ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, चिड़चिड़ापन और नींद न आने जैसी समस्याओं को भी जन्म देता है। यह एक मूक स्वास्थ्य संकट है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
प्रतिबंध के बावजूद धड़ल्ले से बज रहे प्रेशर हॉर्न
हैरानी की बात यह है कि प्रेशर हॉर्न के इस्तेमाल पर कानूनी रूप से प्रतिबंध है और इसका उल्लंघन करने पर 10,000 रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। इसके बावजूद, ट्रैफिक पुलिस की कथित निष्क्रियता के कारण यह नियम सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गया है। स्कूल और अस्पतालों जैसे ‘साइलेंस जोन’ में भी नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, जिससे मरीजों और बच्चों पर इसका बुरा असर पड़ रहा है।
कुल मिलाकर, जबलपुर में ध्वनि प्रदूषण एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या का रूप ले चुका है। नियम-कानून होने के बावजूद जमीनी स्तर पर कार्रवाई का अभाव नागरिकों के स्वास्थ्य पर भारी पड़ रहा है। यदि प्रशासन ने इस पर तत्काल और सख्त कदम नहीं उठाए, तो आने वाले समय में इसके परिणाम और भी भयावह हो सकते हैं।