विवाह कब होगा, यह एक ऐसा सवाल है जो हर व्यक्ति और उसके परिवार के मन में होता है। ज्योतिष शास्त्र इस सवाल का जवाब जन्म कुंडली में मौजूद ग्रहों की स्थिति और योगों के आधार पर देने का दावा करता है। ज्योतिष के अनुसार, किसी व्यक्ति के विवाह का समय काफी हद तक उसकी कुंडली में ग्रहों की चाल और दशा पर निर्भर करता है।
ज्योतिषीय विश्लेषण में विवाह के समय का निर्धारण एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें कई कारकों का अध्ययन किया जाता है। इसमें मुख्य रूप से सप्तम भाव, उसके स्वामी, और बृहस्पति एवं शुक्र जैसे शुभ ग्रहों की स्थिति का आकलन किया जाता है।
कुंडली का सप्तम भाव और विवाह
वैदिक ज्योतिष में जन्म कुंडली का सातवां घर यानी सप्तम भाव विवाह, जीवनसाथी और साझेदारी का प्रतिनिधित्व करता है। इस भाव की मजबूती और इस पर पड़ने वाले ग्रहों का प्रभाव विवाह के समय और वैवाहिक जीवन की गुणवत्ता को दर्शाता है। यदि सप्तम भाव का स्वामी मजबूत स्थिति में हो और उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो, तो विवाह सही समय पर और बिना बाधा के होने की संभावना बढ़ जाती है।
बृहस्पति और शुक्र की निर्णायक भूमिका
विवाह के लिए दो ग्रहों को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है – बृहस्पति (गुरु) और शुक्र। स्त्री की कुंडली में बृहस्पति को पति का कारक माना जाता है, जबकि पुरुष की कुंडली में शुक्र को पत्नी और वैवाहिक सुख का कारक कहा जाता है।
यदि किसी स्त्री की कुंडली में बृहस्पति मजबूत होकर सप्तम भाव या उसके स्वामी से संबंध बनाता है, तो यह शीघ्र और सुखद विवाह का संकेत देता है। इसी तरह, पुरुष की कुंडली में शुक्र की अच्छी स्थिति समय पर विवाह कराने में सहायक होती है। इन दोनों ग्रहों का कमजोर या पीड़ित होना विवाह में देरी का कारण बन सकता है।
शीघ्र विवाह के ज्योतिषीय योग
ज्योतिष शास्त्र में कुछ ऐसे विशेष योग बताए गए हैं, जिनके कुंडली में होने पर व्यक्ति का विवाह शीघ्र होता है:
- जब सप्तम भाव का स्वामी अपनी ही राशि में या उच्च राशि में होकर केंद्र या त्रिकोण में बैठा हो।
- सप्तम भाव पर बृहस्पति या शुक्र जैसे शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो।
- जब शुक्र या बृहस्पति लग्न, सप्तम भाव या चंद्रमा से केंद्र में स्थित हों।
- सप्तमेश (सातवें घर का स्वामी) और विवाह के कारक ग्रह (बृहस्पति/शुक्र) कुंडली में बलवान हों।
इन ग्रहों के कारण होती है विवाह में देरी
कई बार कुंडली में कुछ ऐसे ग्रह योग भी होते हैं, जो विवाह में बाधा या देरी उत्पन्न करते हैं। शनि, राहु और केतु जैसे ग्रहों का प्रभाव अक्सर विवाह में विलंब का कारण बनता है।
शनि का प्रभाव: यदि शनि की दृष्टि सप्तम भाव या उसके स्वामी पर हो, तो यह विवाह में देरी कराता है। शनि धीमी गति का ग्रह है, इसलिए इसका प्रभाव भी धीरे-धीरे ही मिलता है।
राहु-केतु का प्रभाव: सप्तम भाव में राहु या केतु की उपस्थिति भी वैवाहिक मामलों में भ्रम और अनिश्चितता पैदा कर सकती है, जिससे रिश्ते बनने और विवाह होने में मुश्किलें आती हैं।
सूर्य और मंगल: सप्तम भाव में सूर्य या मंगल जैसे उग्र ग्रहों का होना भी वैवाहिक जीवन में तनाव या विवाह में देरी का संकेत दे सकता है।
गोचर और दशा का महत्व
कुंडली में विवाह का योग होने के बावजूद विवाह तभी होता है जब ग्रहों का गोचर और दशा अनुकूल हो। जब बृहस्पति और शनि का गोचर कुंडली के सप्तम भाव या उसके स्वामी से संबंध बनाता है, तब विवाह की प्रबल संभावनाएं बनती हैं। इसके साथ ही, सप्तमेश या विवाह के कारक ग्रहों की महादशा या अंतर्दशा चलना भी आवश्यक है। इन्हीं सब ज्योतिषीय समीकरणों के आधार पर एक ज्योतिषी विवाह के संभावित समय का अनुमान लगाता है।