वित्त वर्ष 2026 की दूसरी तिमाही (जुलाई–सितंबर) के GDP आंकड़े आने वाले हैं और इससे पहले ही अर्थशास्त्रियों की उम्मीदें तेज़ हो गई हैं। अनुमान जताया जा रहा है कि इस अवधि में GDP की विकास दर 7% से 8% के बीच रह सकती है, जो रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के 7% के अनुमान को भी पीछे छोड़ देती है। पहली तिमाही में भी भारतीय अर्थव्यवस्था ने 7.8% की तेज़ रफ्तार दिखाई थी, जो पिछले पाँच तिमाहियों में सबसे ऊँचा स्तर था।
GDP की रफ्तार के पीछे असली वजह क्या है?
कागज़ों पर GDP की तेज़ वृद्धि एक मजबूत अर्थव्यवस्था का संकेत देती है, लेकिन इस बार असली चर्चा नॉमिनल GDP को लेकर है, जो महंगाई को निकालकर नहीं देखी जाती। पहली तिमाही में नॉमिनल ग्रोथ घटकर 8.8% पर आ गई थी, जो तीन तिमाहियों का न्यूनतम स्तर माना गया। दूसरी तिमाही में इस दर के और गिरकर लगभग 8% रहने की संभावना है। इसका अर्थ है कि महंगाई हटाकर देखें तो वास्तविक वृद्धि उतनी मज़बूत नहीं है जितनी दिख रही है।
विशेषज्ञों के अनुसार यह बढ़त कई सांख्यिकीय कारणों का परिणाम है — सरकार का बढ़ा हुआ खर्च, पिछले वर्ष की तिमाही का अनुकूल आधार, और कीमतों में अपेक्षाकृत कम वृद्धि (लो डिफ्लेटर)। इसके साथ ही, अमेरिका द्वारा भारतीय सामान पर लगाए गए 50% आयात शुल्क का प्रभाव अभी पूरी तरह सामने नहीं आया, क्योंकि निर्यातक पहले ही पर्याप्त माल भेज चुके थे।
ग्रामीण बाज़ार की वापसी बनी बड़ा सहारा
विश्लेषकों का कहना है कि भारत की इस मजबूत ग्रोथ का बड़ा आधार उपभोग मांग है। त्योहारी सीज़न से ठीक पहले शहरों में खरीदारी बढ़ी है, जबकि ग्रामीण इलाकों में भी कई वर्षों बाद अच्छी तेजी देखने को मिली है। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कुल GDP में 55%–60% योगदान निजी उपभोग का होता है। ग्रामीण बाज़ारों की वापसी अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है।
अर्थशास्त्रियों के अनुमान: 7.5% से 8% तक ग्रोथ की उम्मीद
Union Bank of India ने Q2FY26 के लिए GDP की दर 7.5% रहने का अनुमान पेश किया है, साथ ही उन्होंने GVA (सकल मूल्य वर्धित) के 7.3% तक बढ़ने की संभावना भी जताई है। वहीं, SBI म्यूचुअल फंड की मुख्य अर्थशास्त्री नम्रता मित्तल का कहना है कि वास्तविक GDP ग्रोथ 8% तक पहुंच सकती है, जो RBI के अनुमान से काफी आगे है। उनके अनुसार सरकारी खर्च इस वृद्धि का मुख्य इंजन बना हुआ है।
आने वाले महीनों के लिए सतर्कता ज़रूरी
हालांकि फिलहाल के अनुमान उत्साह बढ़ा रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञ दूसरी छमाही (अक्टूबर–मार्च) के लिए सावधानी की सलाह दे रहे हैं। उनका मानना है कि जो सांख्यिकीय आधार अभी ग्रोथ को मजबूत कर रहा है, वह आगे जाकर कमजोर पड़ेगा। साथ ही भारत–अमेरिका व्यापार समझौते में देरी होने के कारण अमेरिकी टैरिफ का पूरा प्रभाव आने वाली तिमाहियों के आंकड़ों में साफ दिखेगा।
विशेष रूप से नॉमिनल GDP की धीमी होती रफ्तार नीति-निर्माताओं के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि यह भविष्य की आर्थिक ऊर्जा का संकेत देती है।