मध्य प्रदेश में भूमि रिकॉर्ड को डिजिटल करने की महत्वाकांक्षी ‘स्वामित्व योजना’ में एक हैरान करने वाली तस्वीर सामने आई है। जहां एक ओर राज्य के 12 जिलों ने 100 प्रतिशत डिजिटलीकरण का लक्ष्य हासिल कर लिया है, वहीं दूसरी ओर भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर जैसे बड़े और संसाधन संपन्न शहर इस मामले में काफी पिछड़ गए हैं। इन चारों प्रमुख शहरों में 70 प्रतिशत काम भी पूरा नहीं हो सका है, जिससे सरकारी दावों और जमीनी हकीकत में बड़ा अंतर दिखाई दे रहा है।
राज्य सरकार ‘सर्वे ऑफ विलेजेज एंड मैपिंग विद इम्प्रोवाइज्ड टेक्नोलॉजी इन विलेज एरियाज’ (स्वामित्व) योजना के तहत प्रदेश के सभी गांवों और शहरों की जमीनों का डिजिटल रिकॉर्ड तैयार कर रही है। इसका उद्देश्य भूमि विवादों को कम करना और नागरिकों को उनकी संपत्ति का स्पष्ट मालिकाना हक देना है। प्रदेश का औसत डिजिटलीकरण 85 प्रतिशत तक पहुंच गया है, लेकिन बड़े शहरों की सुस्त रफ्तार ने समग्र प्रगति पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
बड़े शहरों का निराशाजनक प्रदर्शन
आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश के चार बड़े महानगरों का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है। भोपाल में अब तक केवल 67%, इंदौर में 66%, ग्वालियर में 65% और जबलपुर में 64% भूमि रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण हो पाया है। यह स्थिति तब है जब इन शहरों में तकनीकी संसाधन और अमला दूसरे जिलों के मुकाबले कहीं बेहतर है।
इसके विपरीत, हरदा, सीहोर, विदिशा, आगर-मालवा, अलीराजपुर, अनूपपुर, डिंडौरी, नीमच, बुरहानपुर, श्योपुर, शहडोल और उमरिया जैसे 12 जिलों ने अपना काम 100 प्रतिशत पूरा कर लिया है। इनके अलावा, प्रदेश के कुल 55 जिलों में से 33 जिले ऐसे हैं जहां 90 प्रतिशत से अधिक काम हो चुका है।
क्यों पिछड़ गए महानगर?
सूत्रों के अनुसार, बड़े शहरों में राजस्व अधिकारियों की उदासीनता इस देरी का मुख्य कारण है। इन शहरों में पटवारी, राजस्व निरीक्षक (आरआई) और तहसीलदारों पर वीआईपी ड्यूटी, प्रोटोकॉल और कानून-व्यवस्था बनाए रखने जैसे कामों का बोझ अधिक होता है। इस वजह से वे भूमि रिकॉर्ड के मिलान और सत्यापन जैसे जटिल काम को प्राथमिकता नहीं दे पा रहे हैं। ड्रोन सर्वे से मिले नक्शों का मौजूदा खसरा रिकॉर्ड से मिलान करना एक समय लेने वाली प्रक्रिया है, जिसमें मैदानी स्तर पर काम करने की जरूरत होती है।
आम जनता पर असर और विभाग की सख्ती
रिकॉर्ड के अधूरे डिजिटलीकरण का सीधा असर आम नागरिकों पर पड़ रहा है। भूमि संबंधी कामों, नामांतरण, बंटवारे और बैंक से लोन लेने में लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। एक एकीकृत और सटीक डिजिटल रिकॉर्ड के अभाव में भूमि विवाद भी बढ़ रहे हैं।
मामले की गंभीरता को देखते हुए राजस्व विभाग ने समीक्षा शुरू कर दी है। भू-अभिलेख आयुक्त ने इन शहरों के प्रदर्शन पर नाराजगी जताते हुए संबंधित जिला कलेक्टरों को काम में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं। विभाग अब इस बात पर जोर दे रहा है कि प्रशासनिक अधिकारी इस राष्ट्रीय महत्व के कार्यक्रम को प्राथमिकता दें ताकि पूरे प्रदेश में 100 प्रतिशत डिजिटलीकरण का लक्ष्य जल्द से जल्द हासिल किया जा सके।