ग्वालियर: हाईकोर्ट ने निलंबित तहसीलदार पर दुष्कर्म का केस निरस्त किया, कहा- ‘कानून का दुरुपयोग, बदला लेने के लिए हुई FIR’

Gwalior : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने शादी का झांसा देकर दुष्कर्म के एक मामले में अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने निलंबित तहसीलदार शत्रुघन सिंह चौहान के खिलाफ दर्ज FIR को निरस्त करने का आदेश दिया है। जस्टिस आनंद पाठक की बेंच ने टिप्पणी की कि मामले की घटनाएं और उनकी टाइमिंग देखकर लगता है कि FIR निजी दुश्मनी या बदला लेने के उद्देश्य से दर्ज कराई गई थी।

कोर्ट ने कहा कि ऐसे में मुकदमे को जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। यह आदेश चौहान द्वारा FIR रद्द करने के लिए दायर की गई याचिका पर सुनवाई के बाद आया है।

कोर्ट ने उठाए गंभीर सवाल

हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मामले में कई विसंगतियों पर ध्यान दिलाया। कोर्ट ने कहा कि यह संभव नहीं है कि एक बच्चे के दो जैविक पिता हों। दरअसल, पीड़िता ने 2014 में एक बच्चे को जन्म दिया था और आरोप लगाया था कि तहसीलदार ही उसका पिता है।

“इस केस में घटनाओं का क्रम और उनकी टाइमिंग देखकर ये प्रतीत होता है कि निजी दुश्मनी या फिर बदला लेने के उद्देश्य से एफआईआर दर्ज कराई गई है। ऐसे में प्रकरण की ट्रायल को जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग जैसा होगा।” — मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

कोर्ट ने इस तथ्य पर हैरानी जताई कि एक ही बच्चे के पिता के रूप में दो अलग-अलग व्यक्तियों का नाम कैसे लिया जा सकता है। इसी आधार को FIR निरस्त करने के मुख्य कारणों में से एक माना गया।

क्या था पूरा मामला?

ग्वालियर के थाटीपुर की रहने वाली 34 वर्षीय महिला ने 15 जनवरी 2025 को महिला थाने में तत्कालीन तहसीलदार शत्रुघन सिंह चौहान के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। महिला का आरोप था कि उसके पति की मृत्यु के बाद चौहान ने उससे दोस्ती की और फिर रतनगढ़ मंदिर में मांग में सिंदूर भरकर शादी कर ली।

शिकायत के अनुसार, शादी के बाद चौहान ने उसके साथ लगातार शारीरिक संबंध बनाए और 2014 में उसे एक बच्चा भी हुआ। बाद में महिला को पता चला कि आरोपी पहले से शादीशुदा है और उसकी तीन पत्नियां हैं। जब उसने इसका विरोध किया तो आरोपी उसे परेशान करने लगा, जिसके बाद उसने पुलिस में मामला दर्ज कराया।

लंबी चली कानूनी लड़ाई

इस मामले में FIR दर्ज होने के बाद से ही निलंबित तहसीलदार फरार चल रहा था। निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक उसकी अग्रिम जमानत याचिकाएं खारिज हो गईं।

  • 15 जनवरी 2025: तहसीलदार के खिलाफ दुष्कर्म की FIR दर्ज हुई।

  • 30 जनवरी 2025: ट्रायल कोर्ट ने अग्रिम जमानत याचिका खारिज की।

  • 17 फरवरी 2025: हाईकोर्ट से भी अग्रिम जमानत नहीं मिली।

  • 28 फरवरी 2025: सुप्रीम कोर्ट ने भी राहत देने से इनकार कर दिया।

  • 16 मार्च 2025: फरारी के दौरान ही पुलिस ने कोर्ट में चार्जशीट पेश की।

  • 30 जून 2025: आरोपी तहसीलदार ने ग्वालियर जिला कोर्ट में सरेंडर किया।

  • 3 जुलाई 2025: सरेंडर के कुछ दिन बाद ही उसे ट्रायल कोर्ट से जमानत मिल गई।

लगातार फरारी काटने के बाद चौहान ने 30 जून को कोर्ट में सरेंडर किया था, जिसके बाद उसे जमानत मिल गई थी। अब हाईकोर्ट ने उसके खिलाफ दर्ज FIR को ही रद्द कर दिया है, जिससे उसे इस मामले में बड़ी राहत मिली है।