भारत की रणनीति रंग लाई, COP30 में उभरते देशों का आत्मविश्वास बढ़ा

ब्राज़ील के बेलेम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र की 30वीं क्लाइमेट कॉन्फ्रेंस (COP30) का समापन 22 नवंबर को हुआ। यह सम्मेलन एक बार फिर इस बात को मजबूत करता है कि जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौती का समाधान वैश्विक एकजुटता और बहुपक्षीय सहयोग से ही संभव है। भारत की ओर से पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए विकासशील देशों की चिंताओं और हितों को मजबूती से सामने रखा। सम्मेलन के अंतिम दस्तावेज़ों में भारत की नीतियों और अपेक्षाओं की गूंज स्पष्ट रूप से दिखाई दी।

ग्लोबल मुतीराओ: COP30 का सबसे बड़ा परिणाम

COP30 की प्रमुख उपलब्धि Global Mutirao पहल रही, जिसे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक एकता को मजबूत करने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। सम्मेलन में कई महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए गए—

  • 2035 तक एडॉप्टेशन फाइनेंस को तीन गुना बढ़ाने का संकल्प,
  • जस्ट ट्रांजिशन मैकेनिज़्म की शुरुआत,
  • ग्लोबल इम्प्लीमेंटेशन एक्सीलरेटर का निर्माण,
  • क्लाइमेट फाइनेंस पर दो वर्ष का वर्क प्रोग्राम।

इन सभी कदमों का मुख्य उद्देश्य देशों को 1.5°C तापमान सीमा बनाए रखने के लिए प्रभावी जलवायु कार्रवाई को सुदृढ़ करना है।

भारत की प्राथमिकताओं को मिली वैश्विक मंजूरी

भूपेंद्र यादव ने कहा कि COP30 के निर्णय भारत की सभी प्रमुख चिंताओं को स्वीकार करते हुए आगे बढ़े। सम्मेलन के 29 फैसलों में भारत की प्राथमिकताएँ साफ झलकीं—

  • जलवायु वित्त (Climate Finance)
  • तकनीकी सहायता और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर
  • एडॉप्टेशन को व्यवहारिक रूप देना
  • जस्ट ट्रांजिशन

व्यापार आधारित भेदभाव का विरोध

पेरिस समझौते के आर्टिकल 9.1 के तहत विकसित देशों की वित्तीय जिम्मेदारियों पर दो साल का विशेष वर्क प्रोग्राम बनवाना भारत की बड़ी उपलब्धि माना गया। एडॉप्टेशन से जुड़े लक्ष्यों को लेकर भारत की यह मांग भी मान ली गई कि देशों पर अतिरिक्त रिपोर्टिंग बोझ न डाला जाए और हर देश अपने स्थानीय हालात के अनुरूप इंडिकेटर तय करे।

फॉसिल फ्यूल और वनों पर भारत का संतुलित दृष्टिकोण

इस बार COP30 प्रक्रिया में फॉसिल फ्यूल्स और डी-फॉरेस्टेशन पर कोई रोड़मैप शामिल नहीं था। भारत ने फॉसिल फ्यूल रोडमैप को अपनी ऊर्जा सुरक्षा और विकास आवश्यकताओं के आधार पर नोट किया, जबकि Forest & Climate Roadmap का स्वागत किया। इसी दौरान Tropical Forests Forever Facility की शुरुआत भी हुई, जिसमें भारत ने पर्यवेक्षक (Observer) के रूप में समर्थन दिया।

CBAM जैसे कार्बन टैक्स का भारत का सख्त विरोध

यूरोपीय संघ के CBAM (Carbon Border Adjustment Mechanism) जैसे एकतरफा व्यापारिक करों का भारत ने जोरदार विरोध किया। भारत का तर्क था कि जलवायु कार्रवाई का उपयोग किसी प्रकार के व्यापारिक भेदभाव या शुल्क थोपने के लिए नहीं होना चाहिए। भारत की कोशिशों से यह मुद्दा COP30 के आधिकारिक दस्तावेज में दर्ज किया गया, जो विकासशील देशों के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

अमेरिका की गैरमौजूदगी के बावजूद प्रक्रिया पर असर नहीं: भारत

भूपेंद्र यादव ने स्पष्ट किया कि अमेरिका की अनुपस्थिति के बावजूद COP30 का कामकाज किसी भी तरह से कमजोर नहीं पड़ा। सभी देशों ने मिलकर मजबूत बहुपक्षीय सहयोग दिखाया और अर्थपूर्ण फैसलों पर सहमति बनाई। भारत ने कहा कि वैश्विक जलवायु कार्रवाई का भविष्य किसी एक देश पर निर्भर नहीं, बल्कि सामूहिक प्रयासों पर टिका है।