Bhopal News : रायसेन जिले के गौहरगंज क्षेत्र में 21 नवंबर को हुई दरिंदगी की शिकार 6 वर्षीय मासूम की जिंदगी बचाने के लिए डॉक्टरों को एक बेहद जटिल ऑपरेशन करना पड़ा है।
भोपाल स्थित एम्स (AIIMS) में बच्ची की ‘कोलोस्टॉमी’ नाम की एक बड़ी सर्जरी की गई, जिसके बाद अब उसे करीब एक साल तक एक मेडिकल बैग के सहारे जीना होगा। डॉक्टरों के अनुसार, अगर बच्ची को अस्पताल लाने में तीन घंटे की देरी न हुई होती तो शायद इस सर्जरी से बचा जा सकता था।
जब बच्ची को एम्स लाया गया, तब उसकी हालत बेहद नाजुक थी। वह बेहोश थी और उसके शरीर से लगातार खून बह रहा था। परिवार के मुताबिक, आरोपी ने न सिर्फ उसके साथ रेप किया, बल्कि उसे बेरहमी से पीटा भी था। उसके गाल सूजे हुए थे और शरीर पर घुटनों, हाथों और कमर पर गहरे चोट के निशान थे, जो उस पर हुए अत्याचार की गवाही दे रहे थे। डॉक्टरों के लिए पहली चुनौती अत्यधिक रक्तस्राव को रोकना था।
क्या है कोलोस्टॉमी और क्यों पड़ी जरूरत?
बच्ची की जान बचाने के लिए 22 नवंबर को एक मेजर और एक माइनर सर्जरी की गई। मेजर सर्जरी कोलोस्टॉमी थी, जो एक जीवन रक्षक प्रक्रिया है लेकिन यह मरीज के जीवन को पूरी तरह बदल देती है। इस सर्जरी में डॉक्टर शरीर से मल त्याग के प्राकृतिक रास्ते को बाईपास कर देते हैं।
इस प्रक्रिया में बड़ी आंत (कोलन) के एक हिस्से को काटकर पेट की दीवार पर बनाए गए एक छेद (स्टोमा) के जरिए बाहर निकाल दिया जाता है। इसके बाद शरीर का मल प्राकृतिक रास्ते के बजाय इसी स्टोमा से बाहर आता है और पेट पर चिपकाए गए एक विशेष मेडिकल बैग में इकट्ठा होता है।
इलाज कर रहे डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची के प्राइवेट पार्ट और मलाशय (रेक्टम) बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे। अगर मल त्याग का रास्ता वही रहता तो संक्रमण फैलने का खतरा बहुत ज्यादा था और घाव कभी ठीक नहीं हो पाते। इसलिए, क्षतिग्रस्त हिस्से को ठीक होने का समय देने के लिए कोलोस्टॉमी के जरिए एक अस्थायी और सुरक्षित रास्ता बनाया गया।
आगे की राह चुनौतियों से भरी
फिलहाल बच्ची आईसीयू में डॉक्टरों की सख्त निगरानी में है और अब वह होश में आकर बातचीत कर पा रही है। हालांकि, उसकी असली लड़ाई अब शुरू हुई है। यह व्यवस्था अस्थायी है, लेकिन इसके साथ जीना मरीज और उसके परिवार के लिए एक बड़ी चुनौती होती है।
एम्स के डॉक्टरों के मुताबिक, इस सर्जरी के बाद शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर रिकवरी की राह लंबी और मुश्किलों भरी है। उचित देखभाल के जरिए इन चुनौतियों से निपटा जा सकता है, लेकिन मासूम को सामान्य जीवन में लौटने में लंबा वक्त लगेगा। शारीरिक घावों के साथ-साथ उसे इस मानसिक आघात से उबरने के लिए भी मदद की जरूरत होगी।