उज्जैन सिंहस्थ 2028: अखाड़ा परिषद ने शिप्रा की शुद्धता पर उठाए गंभीर सवाल, संतों ने कहा- रामघाट का जल आचमन योग्य नहीं

Ujjain News : उज्जैन में सिंहस्थ 2028 की तैयारियों के बीच, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने शिप्रा नदी की शुद्धता को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। गुरुवार को परिषद के अध्यक्ष और अन्य प्रमुख संतों ने शिप्रा के घाटों का दौरा किया और पाया कि रामघाट पर नदी का जल आचमन के योग्य भी नहीं है।

संतो ने प्रशासन से बड़े निर्माण कार्यों के साथ-साथ शिप्रा शुद्धिकरण को भी प्राथमिकता देने की मांग की है। यह निरीक्षण अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी महाराज, महामंत्री श्रीमहंत हरि गिरि महाराज और दत्त अखाड़ा के गादीपति पीर श्रीमहंत सुंदर पुरी महाराज के नेतृत्व में किया गया। संतों की टोली ने हरिहर घाट से लेकर छोटी रपट तक नदी का जायजा लिया और जल की गुणवत्ता पर असंतोष जताया।

प्रशासन का ध्यान बड़े निर्माणों पर, शिप्रा उपेक्षित

संतों ने कहा कि प्रशासन का पूरा ध्यान सिंहस्थ 2028 के लिए बड़े निर्माण कार्यों पर केंद्रित है, लेकिन जो इस महापर्व का मुख्य आकर्षण है, वह माँ शिप्रा का पवित्र जल ही है। उन्होंने कहा कि यदि नदी का जल ही शुद्ध नहीं होगा, तो सिंहस्थ की आत्मा ही खत्म हो जाएगी।

“रामघाट पर शिप्रा नदी का जल आचमन योग्य नहीं है। प्रशासन को इस पर अभी से गंभीरता से ध्यान देना होगा। जिस तरह बड़े कामों पर ध्यान दिया जा रहा है, उसी तरह शिप्रा शुद्धिकरण पर भी ध्यान दें।” — अखाड़ा परिषद

रामघाट से गाद निकालने की मांग

अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमहंत हरि गिरि महाराज ने 2016 के सिंहस्थ का उदाहरण देते हुए एक ठोस सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि तब रामघाट के कुछ हिस्सों से गाद निकाली गई थी, जिससे जल स्रोत फिर से जीवंत हुए थे।

उन्होंने मांग की, “जहां से घाट निर्माण का काम शुरू हो रहा है, वहां से लेकर पूरे रामघाट क्षेत्र में बड़ी मशीनें उतारकर गाद निकालने का काम किया जाए। इससे नदी के जो प्राकृतिक जल स्रोत रुके हुए हैं, वे फिर से खुल जाएंगे और जल प्रवाह बेहतर होगा।”

मुख्यमंत्री को पहले ही किया था अवगत

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी महाराज ने बताया कि यह मुद्दा पहली बार नहीं उठाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हाल ही में प्रयागराज महाकुंभ के दौरान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को अखाड़ा परिषद कार्यालय में एक पत्र सौंपकर शिप्रा के शुद्धिकरण और गहरीकरण पर ध्यान देने का आग्रह किया गया था।

संतों का कहना है कि अब इस मामले में तत्काल कार्रवाई की जरूरत है, ताकि सिंहस्थ 2028 से पहले शिप्रा अपने निर्मल स्वरूप में लौट सके।