3 साल की मासूम कनिका को बचाने के लिए चाहिए 9 करोड़ का इंजेक्शन, मदद के लिए जुटे इंदौरी

Indore News : इंदौर में एक तीन साल की मासूम बच्ची जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रही है। कनिका नाम की यह बच्ची एक अत्यंत दुर्लभ बीमारी ‘स्पाइन मस्कुलर एट्रफी’ (SMA) टाइप-2 से पीड़ित है।
इस बीमारी का इलाज दुनिया के सबसे महंगे उपचारों में गिना जाता है। कनिका की जान बचाने के लिए अमेरिका से एक विशेष इंजेक्शन मंगाना होगा, जिसकी कीमत करीब 9 करोड़ रुपये है।
इतनी बड़ी रकम जुटाना एक आम परिवार के लिए लगभग असंभव है, लेकिन शहर के लोग इस मुहिम में साथ आए हैं। द्वारकापुरी इलाके में रहने वाले कनिका के पिता प्रवीण शर्मा और मां संगीता शर्मा लगातार लोगों से मदद की गुहार लगा रहे हैं। जब से उन्हें अपनी बेटी की इस गंभीर बीमारी का पता चला है, वे राजनेताओं, अभिनेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों से संपर्क कर रहे हैं।
जन्मदिन पर मदद के लिए जुटे लोग
बीते 15 दिसंबर को कनिका के जन्मदिन के मौके पर इंदौर के राजवाड़ा क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग जमा हुए। इन लोगों का उद्देश्य बच्ची के इलाज के लिए राशि जुटाना था। जनसहयोग और विभिन्न माध्यमों से अब तक करीब ढाई करोड़ रुपये का इंतजाम हो चुका है। परिवार को उम्मीद है कि जल्द ही बाकी राशि भी जुट जाएगी, जिसके बाद एम्स (AIIMS) के माध्यम से अमेरिका से यह जीवन रक्षक इंजेक्शन मंगवाया जा सकेगा।
क्यों इतना महंगा है यह इंजेक्शन?
डॉक्टर्स के मुताबिक, इस बीमारी की दवा की कीमत आसमान छूने के पीछे कई वजहें हैं। सबसे बड़ी वजह यह है कि फिलहाल दुनिया में केवल एक ही फार्मा कंपनी ‘नोवार्टिस’ इस दवा का निर्माण करती है। किसी अन्य कंपनी ने अभी तक इस पर रिसर्च या उत्पादन शुरू नहीं किया है।
इसके अलावा, दुनिया भर में इस बीमारी के मरीज बहुत कम हैं। ऐसे में दवा को तैयार करने के लिए रिसर्च और ट्रायल पर भारी खर्च आता है। कई बार तो क्लीनिकल ट्रायल के लिए मरीज मिलना भी मुश्किल हो जाता है। यही कारण है कि इस इंजेक्शन की कीमत करोड़ों में है।
क्या है स्पाइन मस्कुलर एट्रफी (SMA)?
एमजीएम मेडिकल कॉलेज के पूर्व डीन और शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. हेमंत जैन ने इस बीमारी की गंभीरता को समझाया है। उन्होंने बताया कि यह एक दुर्लभ न्यूरो-मस्क्यूलर जेनेटिक बीमारी है। इसमें बच्चे की मांसपेशियां धीरे-धीरे कमजोर होने लगती हैं।
डॉ. जैन के अनुसार, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी (स्पाइनल कॉर्ड) से मांसपेशियों तक जाने वाले सिग्नल कमजोर पड़ जाते हैं। इस बीमारी में स्पाइनल कॉर्ड की मोटर नर्व सेल्स डैमेज होने लगती हैं। नतीजा यह होता है कि दिमाग मांसपेशियों को हिलाने-डुलाने का संदेश नहीं भेज पाता और बच्चा अपने शरीर पर नियंत्रण खोने लगता है।
सांस लेना भी हो जाता है मुश्किल
बीमारी के शुरुआती लक्षणों में हाथ-पैर और शरीर हिलाने में कमजोरी दिखाई देती है। जैसे-जैसे समय बीतता है, बच्चे के लिए बैठना, चलना और यहां तक कि सांस लेना या खाना निगलना भी दूभर हो जाता है। गंभीर स्थिति में मरीज को लकवा मार सकता है या उसकी मृत्यु भी हो सकती है।
बीमारी के प्रकार:
  • एसएमए टाइप-1: यह सबसे गंभीर रूप है, जो जन्म से दो साल तक के बच्चों में पाया जाता है। यह तेजी से मोटर न्यूरॉन्स को नष्ट करता है और 90% मामलों में बच्चों की मौत का कारण बनता है।
  • एसएमए टाइप-2: यह 2 से 25 वर्ष की आयु के बीच असर दिखाता है और 30% से अधिक रोगियों की मृत्यु का कारण बन सकता है। कनिका इसी टाइप-2 से जूझ रही है।