मध्यप्रदेश में 38 लाख नाम विलोपित, मतदाता सूची पर कांग्रेस‑भाजपा में टकराव तेज

मध्यप्रदेश में हाल ही जारी मतदाता सूची के पुनरीक्षण के बाद लगभग 38 लाख नाम हटाए जाने पर राजनीतिक विवाद तेज हो गया है। कांग्रेस ने दावा किया है कि इतने बड़े पैमाने पर विलोपन से चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होते हैं, जबकि भाजपा का कहना है कि यह केवल मानक सत्यापन प्रक्रिया का परिणाम है।

राज्य में इससे पहले भी मतदाता सूची में हेरफेर के आरोप उठते रहे हैं। बीते वर्षों में कांग्रेस ने चुनाव आयोग से शिकायत की थी कि कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में फर्जी नाम जोड़कर और वास्तविक मतदाताओं को बाहर कर परिणाम प्रभावित किए गए थे।

नए विवाद की शुरुआत तब हुई जब निर्वाचन आयोग ने सूची के पुनरीक्षण के बाद अद्यतन आंकड़े जारी किए। इनमें बताया गया कि मृतकों, स्थानांतरित परिवारों और दोहराए गए प्रविष्टियों को हटाने के बाद सूची को संशोधित किया गया है।

कांग्रेस का आरोप

कांग्रेस नेताओं ने कहा कि जिन क्षेत्रों में उनकी पकड़ मजबूत थी, वहीं पर सर्वाधिक नाम हटाए गए हैं। पार्टी ने आरोप लगाया कि यह अभ्यास राजनीतिक मंशा से प्रभावित है और चुनाव से पहले मतदाताओं को कमजोर करने का प्रयास है। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर विस्तृत जांच और पारदर्शिता की मांग की।

भाजपा और प्रशासन का पक्ष

भाजपा ने इन आरोपों को आधारहीन बताया। पार्टी नेताओं के अनुसार, सूची का पुनरीक्षण हर चुनाव से पहले नियमित रूप से किया जाता है और इस बार भी वही प्रक्रिया अपनाई गई। प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि हटाए गए नामों की श्रेणियों का स्पष्ट रिकॉर्ड मौजूद है और किसी भी संदेह की स्थिति में नागरिक पुनः पंजीकरण करा सकते हैं।

राज्य में आगामी चुनावी तैयारियों के बीच यह विवाद गर्माता जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि मतदाता सूची की पारदर्शिता और सत्यता पर भरोसा कायम रखना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए अनिवार्य है, और दोनों दलों के आरोप‑प्रतिआरोप से इसे और गंभीरता से देखने की जरूरत महसूस होती है।