भारतीय रेलवे ने अपनी खानपान नीति (Catering Policy) में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया है। रेलवे बोर्ड ने स्टेशनों पर खानपान के स्टॉल चलाने वाले वेंडरों को मिलने वाली ‘एक्सटेंशन’ की सुविधा को अब समाप्त कर दिया है। इस फैसले के बाद अब किसी भी वेंडर को पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद अतिरिक्त समय नहीं दिया जाएगा।
रेलवे के इस निर्णय से देशभर के रेलवे स्टेशनों पर मौजूद हजारों स्टॉल संचालकों पर सीधा असर पड़ेगा। अब तक वेंडरों को परफॉरमेंस और कुछ शर्तों के आधार पर कार्यकाल बढ़ाने की छूट मिल जाती थी, लेकिन अब यह व्यवस्था पूरी तरह बदल दी गई है।
पांच साल बाद अब नए सिरे से होंगे टेंडर
नई नीति के तहत, जैसे ही किसी स्टॉल संचालक का पांच साल का लाइसेंस एग्रीमेंट खत्म होगा, उसे जगह खाली करनी होगी। इसके बाद रेलवे उस स्टॉल के लिए नए सिरे से टेंडर जारी करेगा। इस प्रक्रिया में पुराने वेंडर भी हिस्सा ले सकते हैं, लेकिन उन्हें कोई विशेष वरीयता या एक्सटेंशन का लाभ नहीं मिलेगा।
रेलवे बोर्ड का मानना है कि इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और नए लोगों को भी रोजगार के अवसर मिलेंगे। हालांकि, इस फैसले से पुराने वेंडरों में हड़कंप मच गया है, क्योंकि उनका जमा-जमाया कारोबार अब खतरे में पड़ गया है।
ग्वालियर सहित कई स्टेशनों पर पड़ेगा असर
इस नीतिगत बदलाव का असर ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर भी देखने को मिलेगा। यहां कई ऐसे स्टॉल हैं जिनका कार्यकाल पूरा होने वाला है या हो चुका है। पहले ये संचालक एक्सटेंशन की उम्मीद लगाए बैठे थे, लेकिन अब उन्हें नए टेंडर प्रक्रिया से गुजरना होगा।
रेलवे अधिकारियों के मुताबिक, यह नियम तत्काल प्रभाव से लागू माना जाएगा। जिन वेंडरों का एग्रीमेंट खत्म होने वाला है, उन्हें नोटिस जारी करने की प्रक्रिया भी जल्द शुरू की जा सकती है।
क्यों लिया गया यह फैसला?
सूत्रों के अनुसार, रेलवे बोर्ड को लगातार शिकायतें मिल रही थीं कि पुराने वेंडर लंबे समय से एक ही जगह पर काबिज हैं और कई बार गुणवत्ता से समझौता किया जा रहा है। एक्सटेंशन की व्यवस्था के कारण नए प्रतिस्पर्धियों को मौका नहीं मिल पा रहा था।
इस बदलाव के जरिए रेलवे राजस्व में बढ़ोतरी की भी उम्मीद कर रहा है, क्योंकि नए टेंडर में लाइसेंस फीस की दरें मौजूदा बाजार भाव के अनुसार तय होंगी। इससे रेलवे की आमदनी बढ़ने की संभावना है।
वेंडरों की बढ़ी चिंताएं
स्टॉल संचालकों का कहना है कि उन्होंने कोरोना काल में भारी नुकसान उठाया है और अब जब काम पटरी पर लौट रहा था, तो रेलवे ने यह नया फरमान जारी कर दिया है। उनका तर्क है कि पांच साल का समय निवेश की भरपाई के लिए पर्याप्त नहीं होता। अब देखना होगा कि वेंडर एसोसिएशन इस मुद्दे को रेलवे मंत्रालय के सामने कैसे उठाती है।