स्वच्छ सर्वेक्षण में लगातार नंबर वन का ताज पहनने वाले इंदौर और देश के अन्य शहरों के लिए अब चुनौती और कड़ी होने वाली है। केंद्र सरकार ने स्वच्छता रैंकिंग के पैमाने में बड़ा बदलाव किया है। अब किसी भी शहर की सफाई का आकलन केवल सड़कों और कचरा प्रबंधन तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि उस शहर की नदियों और जल स्रोतों की ‘सेहत’ भी उसकी रैंकिंग तय करेगी।
नए मानकों के अनुसार, यदि किसी शहर की नदी या तालाब प्रदूषित हैं, तो उस शहर का टॉप रैंकिंग में आना लगभग असंभव होगा। केंद्रीय आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि जल शुद्धिकरण के बिना शहरों को उच्च अंक प्राप्त करना मुश्किल होगा। यह कदम जल निकायों के संरक्षण और सीवेज ट्रीटमेंट को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है।
जल स्रोतों की स्वच्छता अब प्राथमिकता
स्वच्छ भारत मिशन के तहत अब ‘वॉटर प्लस’ (Water Plus) प्रमाणन और भी महत्वपूर्ण हो गया है। इसका सीधा अर्थ है कि शहर का गंदा पानी बिना ट्रीटमेंट के नदियों या नालों में नहीं मिलना चाहिए। इंदौर जैसे शहरों ने पिछले कुछ वर्षों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) के जरिए कान्ह और सरस्वती जैसी नदियों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है, लेकिन नए नियम और भी सख्त होंगे।
विशेषज्ञों का मानना है कि केवल कचरा मुक्त शहर (Garbage Free City) का दर्जा काफी नहीं होगा। अब शहरों को यह साबित करना होगा कि उनका सीवेज सिस्टम कितना मजबूत है और वे अपने प्राकृतिक जल स्रोतों को कितना साफ रख पा रहे हैं।
इंदौर के लिए नई चुनौती
इंदौर, जो स्वच्छता में सात बार सिरमौर रह चुका है, के लिए यह नया पैमाना एक नई परीक्षा की तरह है। शहर ने पहले ही ‘वॉटर प्लस’ का दर्जा हासिल कर लिया था, लेकिन इसे बनाए रखना और नदी शुद्धि के स्तर को बढ़ाना निरंतर प्रक्रिया है।
नगर निगम अधिकारियों के अनुसार, शहर में बहने वाली नदियों में मिल रहे गंदे नालों को रोकने (Tapping) का काम युद्धस्तर पर किया गया है। फिर भी, नए सर्वेक्षण में मानकों की कड़ाई यह सुनिश्चित करेगी कि कोई भी शहर पुराने तमगों के भरोसे न बैठे।
क्या है वॉटर प्लस प्रोटोकॉल?
वॉटर प्लस प्रोटोकॉल के तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि किसी भी घर या व्यावसायिक प्रतिष्ठान का गंदा पानी सीधे खुले में या जल स्रोतों में न बहे। इसके अलावा, ट्रीटेड वॉटर (उपचारित पानी) का पुन: उपयोग (Reuse) भी एक बड़ा मानक है। पार्कों, निर्माण कार्यों और सड़कों की धुलाई में इस पानी का उपयोग करने पर अतिरिक्त अंक मिलते हैं।
आगामी सर्वेक्षण में यह देखा जाएगा कि क्या शहर अपनी नदियों को वास्तव में प्रदूषण मुक्त कर पाए हैं या नहीं। यह बदलाव न केवल इंदौर बल्कि भोपाल, सूरत और नवी मुंबई जैसे अन्य प्रतिस्पर्धी शहरों के लिए भी रणनीति बदलने का संकेत है।
प्रशासन का पूरा जोर अब इस बात पर है कि सीवेज लाइनों का शत-प्रतिशत कनेक्शन हो और एसटीपी अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करें। नदियों के किनारे बस्तियों से होने वाले प्रदूषण को रोकना भी इस रणनीति का अहम हिस्सा होगा।