श्रीमद्‍भगवद्‍गीता के पहले अध्याय के महत्वपूर्ण संदेश – अर्जुन की दुविधा और कृष्ण के हल !

भगवद गीता का पहला अध्याय “अर्जुनविषादयोग” कहलाता है, जिसमें आरंभिक प्रस्थान किया गया है और यहां पर अर्जुन की भयभीति और संदेहों का वर्णन किया गया है। भगवद गीता को दुनिया की सबसे प्रशिद्ध बुक का दर्जा प्राप्त है। भगवान श्री कृष्ण के श्रीमुख से मिला ज्ञान और उपदेश है भगवद गीता। इसीलिए आपको यह जानना चाहिए की भगवद गीता के मुख्य संदेश क्या है और श्री कृष्ण भगवान ने अर्जुन को पहले अध्याय में क्या उपदेश दिए थे ? इस अध्याय में कुछ महत्वपूर्ण ज्ञान निम्नलिखित है।

अर्जुन का दुख और दुविधा: पहले अध्याय में अर्जुन अपने संदेहों और दुखों का वर्णन करते हैं, जो उन्हें महाभारत युद्ध में भाग लेने से रोक रहे हैं। उन्होंने युद्ध के प्रति अपने आदर्शों के खिलाफ कई संदेह और मानसिक संकेत प्रकट किए हैं। वह अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और शिक्षकों को मारते हुए देखकर दुखी होते हैं।

धर्म और कर्तव्य का महत्व: यह अध्याय धर्म और कर्तव्य के महत्व को उजागर करता है। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से युद्ध का कर्तव्य निभाने की आवश्यकता की बात करते हैं, चाहे वह युद्ध का विषाद में रहे या नहीं।

अर्जुन की मानसिक संकट: अर्जुन युद्ध की उचितता और नीतिशास्त्र के पक्ष में होने के बावजूद अपने कर्तव्य को लेकर उसके मन में विचलितता होती है।

दुख से उत्त्कर्ष की ओर: अर्जुन अपने दुख के कारण हार मानने का विचार करते हैं, लेकिन इसके बाद उन्हें यह ज्ञात होता है कि सही कार्य करने का उत्त्कर्ष उनके लिए महत्वपूर्ण है।

आत्मा और शरीर का विवेक: भगवद गीता में आत्मा और शरीर के अद्वितीयता को बताने का प्रयास किया गया है। अर्जुन को यह समझाया जाता है कि शरीर मात्र एक अस्थायी वाहन है और आत्मा अनन्त और अविनाशी है।

कर्मयोग का प्रस्तावना: पहले अध्याय ने कर्मयोग की महत्वपूर्णता को संकेतित किया है। अर्जुन को यह शिक्षा दी जाती है कि कर्मयोग के माध्यम से कर्मों का परिणाम छोड़कर भगवान के प्रति निष्ठा बनाए रखनी चाहिए।

धर्म की उपेक्षा: अर्जुन धर्म की उपेक्षा के बारे में चिंतित होते हैं और उनके मन में यह सवाल होता है कि क्या धर्म के लिए युद्ध करना सही है।

विविध दृष्टिकोण: पहले अध्याय में विभिन्न दृष्टिकोणों की चित्रण होती है, जैसे युद्ध के प्रति राजा का दृष्टिकोण, धर्म का दृष्टिकोण, और समाज के प्रति दृष्टिकोण।

इस प्रकार, भगवद गीता के पहले अध्याय में अर्जुन के मानसिक संकट और उसके धर्म के प्रति संदेह का वर्णन किया गया है। यहां पर अर्जुन के आंतरिक संघर्ष को दर्शाने के साथ ही यह सिखाया जाता है कि सही कर्मयोग और नैतिकता के माध्यम से ही व्यक्ति अपने धर्म का पालन कर सकता है।