नई दिल्ली
लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पर चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी बात रखी। इस दौरान उन्होंने संकेत दिया कि संसद से पास होने के बाद यह विधेयक 2029 के बाद अमल में आएगा। उन्होंने कहा कि यह युग बदलने वाला विधेयक है। मेरी पार्टी और मेरे नेता प्रधानमंत्री मोदीजी के लिए महिला आरक्षण राजनीति का मुद्दा नहीं, मान्यता का सवाल है। तपती धूप में मई के महीने में पटवारी से लेकर मुख्यमंत्री तक पूरी सरकार गांव-गांव में जाती थीं, जिससे बच्चियों को स्कूलों में पंजीकृत कर सकें। जब प्रधानमंत्री मोदी गुजरात प्रांत में भाजपा संगठन में महासचिव थे, तब वडोदरा कार्यकारिणी में यह फैसला हुआ कि संगठनात्मक पदों में एक तिहाई आरक्षण महिलाओं को दिया जाओगे। गर्व से कह सकता हूं कि ऐसा करने वाली हमारी पहली पार्टी है। इससे पहले उन्होंने कहा कि कल का दिन भारतीय संसद के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। कल के दिन वर्षों से जो लंबित था, वो महिलाओं को अधिकार देने का बिल सदन में पेश हुआ। मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को साधुवाद देना चाहता हूं। इस बिल के पारित होने से महिलाओं के अधिकारों की लंबी लड़ाई खत्म हो जाएगी। जी 20 के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने महिला नेतृत्व वाले विकास का विजन पूरी दुनिया के सामने रखा।
कुछ पार्टियों के लिए महिला सशक्तिकरण एक राजनीतिक एजेंडा: उन्होंने कहा कि कुछ पार्टियों के लिए महिला सशक्तिकरण एक राजनीतिक एजेंडा हो सकता है। कुछ पार्टियों के लिए महिला सशक्तिकरण का नारा चुनाव जीतने का एक हथियार हो सकता है, लेकिन भाजपा के लिए महिला सशक्तिकरण राजनीतिक मुददा नहीं बल्कि मान्यता का सवाल है। आरक्षण के प्रावधान अनुच्छेद 330 और 332 में हैं। ये दोनों अनुच्छेद एससी-एसटी आरक्षण के लिए हैं।
पिछले विधेयकों के बारे में भी बताया
शाह ने कहा कि कोई जवाब को अपने दिल से न लगा ले। एक ऐसा मौका है, जिसमें समग्र देश और समग्र विश्व को यह संदेश देने की जरूरत है कि मोदी के नेतृत्व में महिलाओं को आरक्षण दिया जा रहा है। यह पांचवां प्रयास है। यह विधेयक पहली बार नहीं आया है। यह संविधान संशोधन विधेयक पहली बार नहीं आया। क्यों मोदी को यह विधेयक लाना पड़ा। किसके कारण पारित नहीं हो सका था। क्या प्रयास अधूरे थे, मंशा अधूरी थी। सबसे पहले 1996 में यह विधेयक आया। देवेगौड़ा के कार्यकाल में। इसका श्रेय कांग्रेस को देना हो तो दे दीजिए। तब कांग्रेस विपक्ष में थी। विधेयक को सदन में रखने के बाद संयुक्त समिति को दे दिया गया। नौ दिसंबर 1996 को समिति ने रिपोर्ट दे दी, लेकिन विधेयक सदन में पारित नहीं हो सका। जब 11वीं लोकसभा भंग हो गई तो विधेयक विलोपित हो गया। अधीर रंजन ने कहा कि विधेयक लंबित है, हमारा ही विधेयक रखा हुआ है, जबकि विधेयक लंबित नहीं था, जिंदा नहीं था। जब लोकसभा भंग हो जाती है तो अनुच्छेद 107 के तहत लंबित विधेयक विलोपित हो जाते हैं। ये मुझसे दस साल का हिसाब मांग रहे हैं, लेकिन अपने साठ साल का हिसाब नहीं देते। यह विधेयक चार बार आया, पारित नहीं हुआ। हर बार इस देश की मातृशक्ति को इस सदन ने निराश किया। हमारी मंशा पर सवाल उठाए गए।