स्वतंत्र समय, भोपाल
अस्पताल की छोटी लापरवाही भी सैकड़ों मरीजों को लिए जानलेवा साबित हो सकती है। इसका उदाहरण एम्स भोपाल में देखा जा सकता है। बीते एक महीने से मरीज कीमोथेरेपी की दवा के लिए परेशान हो रहे हैं। दरअसल, आयुष्मान कार्डधारी कैंसर मरीजों को दवाओं के लिए पहले आयुष्मान योजना से स्वीकृति लेना होती है, लेकिन व्यवस्था में खामी होने के कारण दवाओं की स्वीकृति में देरी हो रही है। मजबूरी में हजारों रुपये की दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ रही हैं। हालांकि, प्रबंधन का दावा है कि प्रक्रिया के लिए थोड़ा समय लगता है। 150 से ज्यादा कैंसर मरीज पहुंचते हैं और इतने ही मरीजों को पूर्व से नियमित इलाज होता है।
बीमारी बढ़ने की आशंका
कीमोथैरेपी के दौरान मरीजों को हर सप्ताह विशेष दवाओं का डोज दिया जाता है। इसे एक साइकल कहा जाता है। इसमें कैंसर को खत्म करने के लिए इंजेक्शन, इम्युनिटी बढ़ाने के लिए हाई प्रोटीन पावडर, विशेष दवाएं शामिल होती है। डाक्टरों का कहना है कि कीमोथैरेपी की दवाओं के साइकिल को तोड़ा नहीं जा सकता। इससे बीमारी बढ़ने की आशंका बढ़ जाती है। सागर के रहने वाले अंशुल पांडे की बुजुर्ग मां की कीमोथेरेपी चल रही है। इसके लिए सप्ताह में एक बार भोपाल आना पड़ता है लेकिन एक महीने से दवाओं मिलने में परेशानियां आ रही है। एक-दो बार तो बाजार से खरीद ली लेकिन आगे इतनी महंगी दवाएं खरीदने की स्थिति नहीं है।