स्वतंत्र समय, भोपाल।
जनता के जनप्रतिनिधियों की छवि सार्वजनिक जीवन में आम जनता के बीच स्वच्छ एवं आदर्शयुक्त होनी चाहिए। यह उनके व्यवहार एवं कृत्यों का दर्पण होता है। एक स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक भी है। लेकिन विगत कुछ वर्षों में हमारे माननीयों में दागदार लोगों की संख्या में होने वाली बढ़ोत्तरी एक अच्छे लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी हैं। विगत वर्षों में राजनीति एवं अपराधियों गठजोड़ काफी फल फूल रहा है एवं इसमें बढ़ोतरी भी हो रही है। 2014 में 15वें प्रधानमंत्री के रूप में मोदीजी ने शपथ ली एवं जब संसद में पहली बार प्रवेश किया था, तब माथा टेककर प्रवेश करते हुए कहा था। राजनीति में जो अपराधियों की घुसपैठ है, उनको उनके उचित स्थान पर भेजा जाएगा। चुनावी हलफनामों के आधार पर एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफार्म अर्थात एडीआर के विश्लेषण में संसद के 763 सांसदों में से 306 ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं, जिसमें हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, महिलाओं के खिलाफ अपराध शामिल है। इस रिपोर्ट में केरल 75 प्रतिशत के साथ शीर्ष पर है। इसी तरह विधानसभाओं में 44 प्रतिशत विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इसमें भी 28 प्रतिशत ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामलों की घोषणा की थी।
विडंबना है जो जेल में बंद है वो वोट नहीं दे सकता पर चुनाव लड़ सकता है
इसे विडम्बना ही कहा जाएगा एक व्यक्ति जो जेल में बंद है और जिसे वोट देने का भी अधिकार नहीं है, लेकिन चुनाव लड़ने के लिये मान्य हैं। इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है कि, जब तक कोई दोषी सिद्ध न हो जाये तब तक उसे निर्दोष ही माना जाना चाहिये। बस इसी की आड़ में राजनीति में अपराधीकरण बढ़ रहा है एवं इसी के चलते लोकतंत्र में संसद एवं विधानसभाओं में इनका प्रवेश भी बढ़ता जा रहा है। इसके लिए सभी राजनीतिक पार्टियां जवाबदेह है जो इन्हें टिकट देकर लोकतंत्र के मंदिर में प्रवेश का रास्ता साफ करते हैं। यद्यपि ऐसे माननीयों की सुनवाई के लिए फास्ट टेऊक कोर्ट का गठन किया गया है, जो सांसदों एवं विधायकों के विरुद्ध चल रहे प्रकरणों की सुनवाई करती है। विभिन्न उच्च न्यायालयों से आई रिपोर्ट के आधार पर नवंबर 2022 तक देश भर की अदालतों में वर्तमान एंव पूर्व सांसदों, विधायकों के खिलाफ कुल 5175 मामले लंबित है जिसमें से 2113 मामले पांच साल से ज्यादा पुराने हैं। एक सुझाव यह भी आया कि सांसद एवं विधायकों के कोर्ट में लंबित मामलों की नियमित सुनवाई हो, संसाधनों की कोई कमी न हो, जजों के पद खाली न रहे, ताकि मुदकमों की सुनवाई तेजी से हो ताकि दागी नेताओं को चुनाव लड़ने से रोका जा सकें, ताकि दागी नेताओं की संख्या सीमित हो सकें।