राजेश, बरेली
उदयपुरा-बरेली विधानसभा के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब विधानसभा चुनावों की घोषणा से पूर्व ही भाजपा ने युवा शिक्षित नरेन्द्र शिवाजी पटैल को अपना उम्मीदवार घोषित कर कांग्रेस के समक्ष पहली सफलता अर्जित की। वर्तमान कांग्रेसी विधायक देवेन्द्र पटैल उनका टिकिट न कटे इसके लिए प्रदेश स्तर पर संघर्ष करते नजर आ रहे है। पूर्व सीएम और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ के खासमखास संजय मसानी ने छींदधाम के पास छुछाहर में जमीन खरीद कर अपना निवास बनाने के साथ संपूर्ण क्षैत्र में सक्रिय बने हुए है। प्रश्र यह है कि भाजपा ने तो नरेन्द्र शिवाजी पटैल को उम्मीदवार घोषित कर दिया, कांग्रेस में उहापोह की स्थिति और संगठन द्वारा कांग्रेस उम्मीदवारों की सूची जारी होना, विधानसभा क्षैत्र के कांग्रेसी कार्यकर्ता, स्थानीय नता बेसब्री से इंतजार करते नजर आ रहे है। पटैल या मसानी में से कौन होगा उम्मीदवार अटकलों और चर्चाओं का दौर चल रहा है। विधानसभा परिसीमन से पूर्व बरेली, सिलवानी विधानसभा हुआ करती थी। हमेशा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस, भाजपा के बीच सीधा मुकाबला रहा। कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस चुनाव जीतती हारती रही। विधानसभा परिसीमन के बाद 2008 से बरेली विधानसभा समाप्त हो गई। बरेली क्षैत्र से सिलवानी और उदयपुरा क्षैत्र से बेगमगंज अलग होकर नई सिलवानी विधानसभा बनी। उदयपुरा-बरेली और बाड़ी तहसील का भारकच्छ कलां राजस्व मंडल मिला कर उदयपुरा विधानसभा बनी और इसी के साथ जातिय मतदाता और राजनैतिक समीकरण भी बदल गए। एक बार जीत, दूसरी बार हार – 2008 के विधानसभा चुनाव से जो भी एक बार विधायक चुना गया। दूसरी बार चुनाव लडने पर हार गया। 2008 में कांग्रेस के भगवान सिंह राजपूत विधायक चुने गए। 2013 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के रामकिशन पटैल के हाथो लगभग 44 हजार मतो के भारी अंतर से उनकी हार हो गई। 2018 में भाजपा के रामकिशन पटैल और कांग्रेस के देवेन्द्र पटैल के बीच हुए मुकाबले में देवेन्द्र पटैल लगभग 8 हजार मतो के अन्तर से चुनाव जीतने में सफल रहे और भाजपा के रामकिशन पटैल चुनाव हार गए।
अब 2023 में चुनाव में जहॉ भाजपा ने उच्च शिक्षित युवा चेहरा नरेन्द्र शिवाजी पटैल को प्रत्याशी घोषित किया है तो उनके सामने देवेन्द्र पटैल या किरार समाज के बडे कांग्रेसी नेता संजय मसानी में से कौन चुनावी मुकाबला करेगा, व्यापक चर्चाओं का विषय बना हुआ है। चुनावों में कांग्रेस या भाजपा की एक बार जीत की परंपरा रहती है, इसी को लेकर कौन चुनाव जीतने में सफल हो पाएगा कयासों का दौर चल रहा है।