हाथी दम मारेगा… या नहीं? बसपा को जयस का मिले साथ तो संकट में आ सकती है भाजपा और कांग्रेस

स्वतंत्र समय, भोपाल/ इंदौर

बसपा को इस बार चुनाव में डबल इंजन का भरोसा इसलिए है कि दलित आदिवासियों के अत्याचार का मुद्दा पूरे प्रदेश में गरम है और पिछली बार आदिवासी वोटों को साधकर कांग्रेस ने 15 साल बाद अपने लिए सत्ता की राह बनाई थी। ऐसे में दलित-आदिवासियों की रहनुमाई करने वाली पार्टी इस बार पूरे दमखम से चुनाव लडऩे पर आमादा है। बसपा ने इस चुनाव में 29 सीटों को जीतने का लक्ष्य बनाया है। अगर बसपा ऐसा कर पाती है तो प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के सामने वह बड़ी चुनौती होगी और किंग मेकर बन सकती है।

राजनीति में उलटफेर तय

बसपा के राज्य सभा सदस्य रामजी गौतम ने कहा कि चुनावी गठबंधन के बाद मध्यप्रदेश में बीएसपी की सरकार बनना तय है। वे सरकार बनने की स्थिति में यूपी में सरकार रहने के दौरान पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती द्वारा लागू किए गए विकास फार्मूले के आधार पर सरकार चलाएंगे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों द्वारा दलितों और आदिवासियों पर किए गए अत्याचार को इस चुनाव में मुद्दा बनाया जाएगा। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष पिप्पल ने कहा कि इस गठबंधन के बाद प्रदेश की राजनीति में भारी उलटफेर होना तय है। बता दें कि मध्य प्रदेश मेें बहुजन समाज पार्टी की अहमियत हमेशा से ही रही है। भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के वोट बैंक में बसपा हमेशा से सेंध लगाती आई है।

बसपा का मध्यप्रदेश पर इसलिए फोकस

  • 22 प्रतिशत आदिवासी वोटबैंक
  • 4 प्रतिशत दलित
  • आदिवासी वोटर्स पर दोनों दलों का फोकस
  • आदिवासी सीटों पर कांग्रेस को पिछले चुनाव में लाभ मिला था
  • अपना दमखम दिखाने के लिए गोंगपा से गठजोड़ किया

बसपा के प्लस प्वॉइंट

  • यूपी में सिमटने के बावजूद मध्यप्रदेश में अपनी जमीन बना रही
  • प्रदेश की 25 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां पर बसपा हार-जीत तय करती है।
  • पिछले विधानसभा चुनाव में वोट शेयर में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी
  • 2018 के विधानसभा चुनाव में 19 लाख से ज्यादा वोट मिले
  • विंध्य, ग्वालियर, चंबल और बुंदेलखंड बीएसपी के प्रभाव का क्षेत्र

बसपा के माइनस प्वॉइंट

  • प्रदेश स्तर पर एक सूत्र में पिरोने वाले नेता की कमी
  • बसपा के सामने इस बार चौथी पार्टी यानी आम आदमी पार्टी भी चुनौती
  • प्रदेश में हुए दलित और आदिवासियों पर अत्याचार के मुद्दे को पुरजोर तरीके से नहीं उठा पा रहे।
  • स्टार प्रचारकों में केवल सुप्रीमो मायावती ही
  • प्रत्याशियों की घोषणा में हो रहा विलंब
  • जयस से समीकरण बनाने पर जोर नहीं

इन सीटों पर चुनाव लड़ेगी बीएसपी

जिन सीटों पर बीएसपी को चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा उसमें श्योपुर, विजयपुर, सबलगढ़, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह, अटेर, भिंड, लहार, मेहगांव, गोहद, ग्वालियर ग्रामीण, ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व, ग्वालियर दक्षिण, भितरवार, डबरा, सेवढ़ा, भांडेर, दतिया, करैरा, पोहरी, शिवपुरी, पिछोर, कोलारस, बमोरी, गुना, चांचौड़ा, राघौगढ़, अशोकनगर, चंदेरी, मुंगावली, बीना, खुरई, सुरखी, नरयावली, सागर, बंडा, टीकमगढ़, जतारा, पृथ्वीपुर, निवाड़ी के नाम हैं। इसके साथ ही खरगापुर, महाराजपुर, चंदला, राजनगर, छतरपुर, बिजावर, मलहरा, पथरिया, दमोह, जबेरा, हटा, पवई, गुनौर, पन्ना, चित्रकूट, रैगांव, सतना, नागौद, मैहर, अमरपाटन, रामपुर बघेलान, सेमरिया, सिरमौर, त्यौंथर, मऊगंज, देवतालाब, मनगवां, रीवा, गुढ़, चुरहट, सीधी, सिहावल, सिंगरौली, देवसर, जयसिंहनगर, अनूपपुर, मुड़वारा, बहोरीबंद, पाटन, जबलपुर पूर्व, जबलपुर उत्तर, जबलपुर पश्चिम, पनागर, सिहोरा, मंडला से बीएसपी चुनाव लड़ेगी।

समझौते में जो अन्य सीटें बीएसपी को मिली हैं, उसमें लांजी, बालाघाट, वारासिवनी, कटंगी, बरघाट, नरसिंहपुर, तेंदूखेड़ा, गाडरवारा, सौंसर, छिंदवाड़ा, मुलताई, हरदा, नर्मदापुरम, सोहागपुर, पिपरिया, उदयपुरा, सांची, विदिशा, बासौदा, कुरवाई, सिरोंज, शमशाबाद, बैरसिया, भोपाल उत्तर, नरेला, भोपाल दक्षिण पश्चिम, भोपाल मध्य, गोविन्दपुरा, हुजूर, आष्टा, इछावर, सीहोर, नरसिंहगढ़, ब्यावरा, राजगढ़, खिलचीपुर, सारंगपुर, सुसनेर, आगर, शाजापुर, शुजालपुर, कालापीपल, सोनकच्छ, देवास, हाट पिपल्या, बागली, मांधाता, हरसूद, खंडवा, पंधाना, नेपानगर, बुरहानपुर, बड़वाह, महेश्वर, कसरावद, खरगोन, सेंधवा, बड़वानी, जोबट, पेटलावद, मनावर, गंधवानी, देपालपुर, इंदौर 1, इंदौर 2, इंदौर 3, इंदौर 4, इंदौर 5, राऊ, सांवेर, नागदा खाचरोद, महिदपुर, तराना, घट्टिया, उज्जैन उत्तर, उज्जैन दक्षिण, बडऩगर, रतलाम ग्रामीण, रतलाम सिटी, सैलाना, जावरा, आलोट, मंदसौर, मल्हारगढ़, सुवासरा, गरोठ, मनासा, नीमच और जावद विधानसभा सीट शामिल हैं।

बसपा घोषित कर चुकी है 16 प्रत्याशी

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए बसपा अब तक 16 प्रत्याशियों की लिस्ट जारी कर चुकी है। सबसे पहले बसपा ने 10 अगस्त को सात प्रत्याशी घोषित किए थे। इनमें मुरैना जिले की दिमनी विधानसभा क्षेत्र से बलवीर सिंह दंडोतिया, निवाड़ी से अवधेश प्रताप सिंह राठौड़, छतरपुर की राजनगर से रामराज पाठक, सतना की रैगांव से देवराज अहिरवार, सतना की रामपुर बघेलान से मणिराज सिंह पटेल, रीवा के सिरमौर से विष्णुदेव पांडे और सिमरिया से पंकज सिंह को उम्मीदवार घोषित किया गया था।

7 सीटें जीतने के बाद 29 सीटें हासिल करने पर जोर

मध्यप्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 143, कांग्रेस ने 71 और बसपा ने सात सीटें जीती थीं। तब बीजेपी का वोट शेयर 37 प्रतिशत और कांग्रेस का 32 प्रतिशत था। बसपा ने 9 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। अब तक के इतिहास में यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था अब बहुजन समाज पार्टी प्रदेश की 29 सीटों पर जीत के लिए बाजी लगाने जा रही है। दरअसल, मध्य प्रदेश के ग्वालियर, चंबल, बुंदेलखंड के साथ ही बघेलखंड क्षेत्र में बहुजन समाज पार्टी का काफी प्रभाव है। इन क्षेत्रों में बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी कई बार दूसरी और तीसरी स्थिति में रहे हैं। उप्र की सीमा से लगे हुए मध्य प्रदेश की सीटों में बसपा काफी दमखम रखती है।

दूसरी सूची में 9 उम्मीदवार घोषित किए

दूसरी सूची में बसपा ने 9 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं। इनमें जबलपुर पूर्व से बालकिशन चौधरी, अमरपाटन से छन्गे लाल कोल, भिंड से रक्षपाल सिंह कुशवाह, बैरसिया से विश्राम सिंह बौद्ध, सीहोर से कमलेश दोहरे, सोनकच्छ से डॉ. एसएस मालवीय, घट्टिया से जीवन सिंह देवड़ा, गुन्नौर से देवीदीन आशु, चंदला से दीनदयाल(डीडी) अहिरवार को प्रत्याशी बनाया है।

यहां जीत चुकी बसपा

सतना जिले की रामपुर बघेलान, मुरैना जिले की दिमनी, निवाड़ी, राजनगर विधानसभा सीट, सतना की रैगांव, रीवा की सिमरिया, रीवा जिले की सिरमौर बहुजन समाज पार्टी के लिए बहुत महत्वपूर्ण सीटें हैं। रामपुर बघेलान में साल 2008 और 1993 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी चुनाव जीत चुकी हैं। प्रदेश की 65 सीटों पर बसपा का वोट बैंक 10 प्रतिशत तक रहा है। 2018 के विस चुनाव में भाजपा को 41.6 प्रतिशत और बसपा को 5.1 प्रतिशत वोट मिले थे। आपको बता दें कि 2020 में 28 सीटों के उपचुनाव में भाजपा ने 19 सीटें और 49.46 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। बसपा का खाता नहीं खुला, लेकिन 5.75 प्रतिशत वोट मिले थे। 2003, 2008 और 2013 के विस चुनावों में औसतन 69 सीट पर पार्टी का वोट शेयर 10 प्रतिशत से अधिक रहा है।

जीती दो सीट, लेकिन 19 लाख से ज्यादा वोट ले आए

2018 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 230 में से 227 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और सिर्फ 2 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसके अलावा 202 सीटों पर पार्टी की जमानत जब्त हो गई थी। हालांकि वोट शेयर के मामले में वह एमपी में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी थी। साल 2018 के चुनाव में जहां भारतीय जनता पार्टी को 1 करोड़ 56 लाख 43 हजार  623 वोट मिले थे तो वहीं कांग्रेस को 1 करोड़ 55 लाख 95 हजार 696 वोट मिले थे। बीजेपी और कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाली पार्टी बसपा ही थी। पार्टी राज्य में कुल मतों में से 19 लाख 11 हजार 642 वोट यानी 5.1 फीसदी वोट मिले थे।

गोंगपा का प्रदेश में बेस

मध्यप्रदेश में गोंगपा के वोट बैंक की बात करें तो उसका पारंपरिक आधार महाकौशल क्षेत्र में ज्यादा देखा जाता रहा हैण् मुख्य रूप से गोंगपा का आधार बालाघाट, मंडला, डिंडौरी, सिवनी, छिंदवाड़ा और बैतूल जिलों में ज्यादा है जहां मुख्य रूप से गोंड आबादी है। दलितों और आदिवासियों के 37 प्रतिशत वोटों को ध्यान में रखते हुए बसपा और गोंगपा आने वाली एमपी चुनाव में गठबंधन कर तीसरे मोर्चे की जगह हासिल करने का लक्ष्य बनाने की योजना कर रहा है।

इनका कहना है

सभी राजनेतिक दलों को नैतिक और संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं कि वे अपने दलों के नुमाइंदे चुनाव में उतारे, प्रचार करें पर मप्र में कांग्रेस और भाजपा का सीधा मुकाबला है। मुझे विश्वास है कि बसपा और सपा भाजपा को उठने नहीं देंगे।

केके मिश्रा, चेयरमैन, कांग्रेस

बसपा, सपा और आप अगर कांग्रेस की गोद में खेलना बंद कर दें और ईमानदारी से अपने दल के लिए मेहनत करें तो उनका वजूद नहीं खत्म होगा, क्योंकि संविधान में सभी दलों को अधिकार है चुनाव में कूदने का। संविद सरकार के समय और बाद में भी विभिन्न दलों ने काम किया है।

रजनीश अग्रवाल, भाजपा