चुनावी रण 2023
- कुल वोटर- 2,07,425
- पुरुष वोटर- 1,11,168
- महिला वोटर- 97,251
(विधानसभा में वोटर्स की संख्या के आंकड़े)
स्वतंत्र समय, इंदौर
बडऩगर सीट पर यूं तो भाजपा का गढ़ रही है लेकिन इस बार दोनों ही दल अपनी जीत को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं हैं। भाजपा के पास इस सीट पर आजमाने के लिए 2013 के विजेता चेहरे मुकेश पंड्या हैं। हालांकि उनकी सक्रियता को लेकर पार्टी धड़े में एक राय नहीं है। वहीं जो नए चेहरे हैं, वह पार्टी की अपेक्षा अनुरूप सक्रिय नहीं हैं। वहीं कांग्रेस के पास आजमाने के लिए अपने मौजूदा विधायक मुरली मोरवाल हैं। मोरवाल की क्षेत्र में खासी पकड़ है लेकिन उनके दामन में बेटे का दाग पार्टी हलकों में बदनुमा होते जा रहा है। उनके पुत्र पर रेप केस चल रहा है। ऐसे में कांग्रेस के सामने विधायक को टिकट देने के पहले काफी मंथन करना होगा।
धबाई 30 साल में पहले उम्मीदवार जो दो बार जीते
बडऩगर विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच ही मुख्य मुकाबला होता आया है। 1990 से अब तक हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी के शांतिलाल धबाई ही अकेले उम्मीदवार रहे हैं जिन्हें 2 बार जीत हासिल हुई है। जबकि पिछले चुनाव में कांग्रेस ने लगातार 3 चुनाव जीतने वाली भाजपा को धरती दिखा दी थी। कांग्रेस के मुरली मोरवाल ने विजयश्री का वरण किया था। इस विधानसभा क्षेत्र के मतदाता 33 साल में अब तक 3 बार कांग्रेस तो 4 बार बीजेपी प्रत्याशी को जीत दिला चुके हैं।
भाजपा रणनीति में चूकी, सीएम आए थे डैमेज कंट्रोल
पिछले चुनाव में बयार का बदलाव भाजपा समझ नहीं पाई। तीन बार से लगातार भाजपा इस सीट पर काबिज रही थी, ऐसे में वह अपनी आसान जीत की परिकल्पना में लगी थी। मुरली मोरवाल ने संघर्षपूर्ण जीत दर्ज करते हुए भाजपा के प्रत्याशी संजय षर्मा को पराजित किया। जानकार मान रहे हैं कि बडऩगर सीट पर भाजपा ठोस रणनीति नहीं बनाई थी, इस कारण मुरली मोरवाल के हाथों 5381 वोटों से संजय शर्मा की पराजय हुई। 2018 में भाजपा ने टिकट वितरण में चूक की। पार्टी ने पहले पूर्व विधायक उदयसिंह पंड्या के बेटे जितेंद्र पंड्या को विधानसभा उम्मीदवार घोषित किया था। पंड्या को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद पार्टी के ही बडऩगर के पूर्व विधायक शांतिलाल धबाई और समर्थकों ने विरोध किया। नामांकन भरने के आखिरी दिन भाजपा ने ऐनवक्त पर विधानसभा क्षेत्र से संजय शर्मा को प्रत्याशी बना दिया। इसके बाद जिला मुख्यालय पर विरोध शुरू हो गया। पंड्या समर्थकों ने कार्यालय में तोडफ़ोड़ और नारेबाजी की। इसमें औदिच्य ब्राह्मण समाज के भी कई लोग शामिल थे। इसके बाद यहां मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चौहान को मोर्चा संभालने आना पड़ा था।
पंड्या का रिकॉर्ड कोई तोड़ नहीं पाया
बडऩगर सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो साल 1990 से लेकर अब तक हुए चुनाव में कुल 3 बार कांग्रेस को विजय श्री हासिल हुई जबकि 4 बार बीजेपी के प्रत्याशी जीत हासिल कर चुके हैं। यहां पर ज्यादातर मौकों पर चुनावी मुकाबला बेहद कड़ा रहा है। बडऩगर विधानसभा में साल 1977 में जनता पार्टी के उदयसिंह पंड्या और कांग्रेस प्रत्याशी सदाशिव काशीराम के बीच जीत हार का अंतर 13,758 रहा था। पंड्या 13578 वोटों से जीते थे। 1980 में भाजपा का गठन हुआ और उदयसिंह पंड्या को टिकट मिला और वे दोबारा विधायक बने। पंड्या के बाद उनकी बराबरी करने वाले शांतिलाल धबाई हैं जो दो बार विधायक बने। बडऩगर सीट से पंड्या तीन बार विधायक बनने वाले इकलौते विधायक हैं। 1985 में कांग्रेस के अभयसिंह ने लगातार तीसरी बार मैदान संभालने वाले उदयसिंह पंड्या की उम्मीदें चकनाचूर कीं। अभयसिंह 2774 वोटों से जीते। 1990 में उदयसिंह को भाजपा ने फिर आजमाया और उन्होंने कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह सिसोदिया को 7663 वोटों से पटखनी दी। 1993 के चुनाव में पिछले चुनाव के पराजित उम्मीदवार सुरेंद्र सिंह की किस्मत चमकी और उन्होंने उदयसिंह को 5365 वोटों से हराकर हिसाब चुकता किया। 1998 में कांग्रेस के हाथ बाजी लगी और उन्होंने उदयसिंह को 7557 वोटों से हराया। यह उदयसिंह के लिए अंतिम चुनाव रहा। इस तरह उदयसिंह पंड्या ने इस सीट से छह बार चुनाव लड़ा और तीन बार जीत हासिल की। 2003 के चुनाव बीजेपी के प्रत्याशी शांतिलाल धबाई और कांग्रेस प्रत्याशी वीरेंद्रसिंह सिसोदिया के बीच जीत हार का अंतर 20,407 वोट रहा था। इसके बाद 2013 में बीजेपी के मुकेश पंड्या और कांग्रेस प्रत्याशी महेश पटेल के बीच जीत-हार का अंतर 13,135 था।
ब्राह्मण और राजपूत समाज हावी
बडऩगर सीट को ब्राह्मण और राजपूत समाज का बाहुल्य क्षेत्र माना जाता है। चुनाव में इनकी भूमिका उम्मीदवार की जीत और हार तय करती है। इस विधानसभा सीट की पहचान जय स्तंभ चौक में स्थित किले के साथ ही बरगाड़ी रोड पर स्थित भगवती माता के अतिप्राचीन मंदिर से होती है। साथ ही विधानसभा में तेजाजी चौक स्थित त्र्यंबकेश्वर महादेव मंदिर और पंढरीनाथ कुंड भी अतिप्राचीन है, जबकि नयापुरा रोड स्थित बुद्धेश्वर महादेव मंदिर को इस विधानसभा क्षेत्र की पहचान के रूप में जाना जाता है।