डेली कॉलेज में 17 करोड़ का खर्च एक साल में कैसे बढ़ा? डीसी पर वित्तीय घोटाले का आरोप, पहले भी लगी याचिका

स्वतंत्र समय, इंदौर

ओल्ड डेलियंस कैटेगिरी (ओडीए) के सदस्य संदीप पारिख ने आरोप लगाया कि 2021-22 में डेली कॉलेज का वार्षिक खर्च 53 करोड़ रुपए था और 2022-23 में यह 70 करोड़ हो गया है। उन्होंने कहा कि 35 फीसदी की यह बढ़ोतरी कैसे हो गई। उन्होंने कहा कि इस अप्रत्याशित खर्च की जानकारी ओडीए को दे दी है। गत दिनों 24 सितंबर को बोर्ड मीटिंग में वित्तीय अनुमोदन के लिए यह खर्च पेश किया गया था।

खर्च का ब्योरा इस तरह

पारिख के मुताबिक कई मदों में खर्च बेतहाशा बढ़ गए हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि लीगल सेल पर जो खर्च हर साल 7 से 8 लाख रुपए था, वह अब बढक़र 35 लाख हो गया है। वहीं अवॉर्ड सेरेमनी 30 लाख तक होती थी तो यह 1 करोड़ के पार जा चुकी है। वहीं सिक्योरिटी में भी बेतहाशा खर्च हुआ है। पारिख के अनुसार खर्च बढऩे की कोई वजह सामने नहीं आती है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर अब सभी के सुझाव चाहिए ताकि इसे आगे देखा जा सके।

चिंता का विषय

पारिख ने बताया कि 24 सितंबर को बोर्ड की बैठक हुई थी जहां 2022-23 के लिए खर्च का विवरण अनुमोदन के लिए पेश किया गया था। राजस्व में 17 करोड़ की बढ़ोतरी चिंता का विषय है। उन्होंने बताया कि 31 मार्च 2023 को नेट सरप्लस चिंता का विषय है। स्कूल की संख्या पिछले साल की तरह ही बनी हुई है। उन्होंने कहा कि मैंने अपनी गंभीर चिंताओं व टिप्पणियों को बोर्ड के साथ शेयर किया है। मैं पारदर्शिता के लिए प्रयास करता हूं जिन्हें स्कूल की बेहतरी के लिए लागू किया जा सकता है। हालांकि बोर्ड ने तो इस मामले में कुछ खुलासा नहीं किया। वहीं प्रिंसिपल ने ओडीए अध्यक्ष कमलेश कासलीवाल और सचिव तेजवीर जुनेजा को पत्र लिखा है। प्राचार्य डॉ गुणमीत बिंद्रा के मुताबिक ओडीए के संदेश से दुख हुआ है। हम लगातार डेली कॉलेज को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। यह खर्च इसलिए ज्यादा लग रहा है कि कोविड काल में आयोजन बंद थे, गतिविधियां सीमित थीं। अब आयोजन हो रहे हैं।

डीसी खेल व अन्य गतिविधियों में आगे आया है। यह खर्च उचित तरीके से किया गया है। ओडीए सदस्य व अधिवक्ता अजय बागडिय़ा ने कहा कि प्रिंसिपल के स्पष्टीकरण से कुछ नहीं होगा। क्या 17 करोड़ इसलिए अधिक बढ़ाया गया है कि यह घूमकर बोर्ड सदस्यों के पास अप्रत्यक्ष तौर पर पहुंचे। इसका जवाब तो देना होगा। वहीं अन्य सदस्य दीपक कासलीवाल ने कहा कि डीसी मप्र रजिस्ट्रीकरण एक्ट 1973 में रजिस्टर्ड है। किसी भी वित्तीय अनुमोदन के लिए एजीएम बुलाई जाए। इस मामले में पहले भी हाई कोर्ट याचिका दायर की हुई है, यह तो अवमानना है।

बोर्ड में ये शामिल

  • ओल्ड डोनर्स कैटेगरी (पुराने राजा-महाराजा)-नरेंद्र सिंह झाबुआ और प्रियवत खिंची
  • न्यू डोनर्स कैटेगरी (नए दानदाता)-हरपाल सिंह (उर्फ मोनू भाटिया)
  • ओल्ड डोनर्स एसोसिएशन (पूर्व छात्र)-संदीप पारिख और धीरज लुल्ला
  • सरकारी प्रतिनिधि- विक्रम पंवार (देवास महारानी गायत्री राजे के पुत्र) और राजवर्धन सिंह नरसिंहगढ़
  • पैरेंट्स कैटेगरी-संजय पाहवा और सुमित चंडोक
  • प्रिंसिपल बोर्ड की सचिव-गुरमीत बिंद्रा