स्वतंत्र समय, इंदौर
रतलाम ग्रामीण विधानसभा
सीट के मतदाता
कुल वोटर 1,85,981
पुरुष वोटर 94,684
महिला वोटर 91,295
(2023 की स्थिति में)
रतलाम ग्रामीण सीट यानी सत्तारूढ़ भाजपा के साथ ही विपक्षी कांग्रेस के लिए फंसी हुई सीट कही जा सकती है। इस सीट पर कांटे के मुकाबले से दोनों पार्टियों का राजनीतिक तापमान ऊपर-नीचे हो जाता है। दूसरी ओर यहां पर ट्रेंड के विरुद्ध नतीजे भी आते रहे हैँ। पिछली बार जनता का रुख कांग्रेस की ओर था लेकिन यहां के वोटर का मानस भाजपा के साथ रहा। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित होने के साथ ही यहां पर नए चेहरों पर दांव का ट्रेंड है। वर्तमान में भाजपा के दिलीप मकवाना यहां से विधायक हैं और पार्टी फोरम पर भी यह तय नहीं है कि उन्हें टिकट दिया जाए। वहीं कांग्रेस के लिए भी उम्मीदवार तय करना आसान नहीं है। मकवाना के खिलाफ कांटे की टक्कर देने वाले थावर भूरिया पर कांग्रेस दांव आजमा सकती है।
चुनावी गतिविधियों में भी शांति
2008 में यह अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हुई थी। चूंकि आरक्षण के बाद से ट्रेंड नए चेहरों को आजमाने का रहा है, ऐसे में मकवाना उस दायरे में खरे नहीं उतरते। दूसरी ओर पार्टी के स्तर पर नुकसान यह है कि अभी तक सीट पर कोई चुनावी गतिविधि शुरू नहीं हुई है। भाजपा चार राउंड सूची जारी करने के बाद भी यहां उम्मीदवार तय नहीं कर सकी है।
जनता पार्टी के सूरजमल जैन ने जीता था पहला चुनाव
1977 के चुनाव की बात करें तो संघ समर्थित जनता पार्टी के उम्मीदवार सूरजमल जैन जीतकर विधायक बने थे, वहीं उनके कांग्रेसी प्रतिद्वंद्वी हरिराम पाटीदार 7700 वोटों से पराजित हुए थे। 1980 में भाजपा ने सूरजमल जैन को आजमाया तो कांग्रेस ने शांतिलाल अग्रवाल को मैदान में उतारा। कांग्रेस के अग्रवाल मैदान मारने में कामयाब रहे और जैन 4371 वोटों से पराजित हुए। 1985 में शांतिलाल अग्रवाल को ही कांग्रेस ने टिकट दिया और उन्होंने भाजपा के भुवन चौधरी को करीब 5 हजार वोटों से पराजित किया।
दो बार के एमएलए का टिकट काटा, मोतीलाल बने तीन बार विधायक
कांग्रेस ने 1990 के चुनाव में वोटरों के रवैये को देखते हुए अपने दो बार के विधायक का टिकट काट दिया। इस बार पार्टी ने मोती लाल दवे को टिकट दिया और भाजपा ने दीन दयाल पाटीदार को मैदान में उतारा। इसका नतीजा यह हुआ कि मोतीलाल दवे जीतने में कामयाब रहे। 1993 में ये दोनों ही उम्मीदवार वापस मैदान में थे। नतीजा दवे के पक्ष में रहा। 1998 में भाजपा ने दीनदयाल की नाकामी को देखते हुए धूलजी चौधरी पर दांव चला लेकिन वोटरों ने दवे को ही अपना माननीय चुना।
2003 में भाजपा को मौका
कांग्रेस के विजय क्रम को आखिर भाजपा के पराजित उम्मीदवार धूलजी चौधरी ने ही 2003 में रोका। वे 1998 में हार के बावजूद ग्रामीण क्षेत्र में सक्रिय रहे और इसके परिणाम स्वरूप 2003 में कांग्रेस के तीन बार के विधायक मोतीलाल दवे को 9410 वोटों से पराजय का मुंह देखना पड़ा।
अनुसूचित जनजाति की सीट पर कांग्रेस की वापसी
2008 में रतलाम ग्रामीण सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो गई। इस चुनाव में भाजपा ने मथुरालाल डामर और कांग्रेस ने लक्ष्मीदेवी खराड़ी को टिकट दिया। इस बार 101601 वोट डाले गए। इसमें से कांग्रेस की उम्मीदवार लक्ष्मी देवी खराड़ी को 46619 वोट मिले और उन्होंने 44068 वोट प्राप्त करने वाले भाजपा उम्मीदवार मथुरा लाल डामर को 2551 वोटों से हराया। भाजपा ने 2013 में दोबारा मथुरालाल को टिकट दिया और उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर दोबारा मैदान में उतरी खराड़ी को 26969 वोटों से पराजित किया।
कांटे का रहा मुकाबला
2018 में भाजपा ने रतलाम ग्रामीण विधानसभा से अपना प्रत्याशी बदल दिया और मथुरालाल की बजाय दिलीप मकवाना को टिकट दिया। वहीं कांग्रेस ने भी उम्मीदवार बदल दिया और थावरलाल भूरिया को टिकट दिया लेकिन भाजपा प्रत्याशी दिलीप मकवाना कांटे के मुकाबले 5605 वोटों से विजयी हुए।
विक्रांत भूरिया को आजमा सकती है कांग्रेस
कांग्रेस इस सीट पर पहली पसंद पिछली बार के पराजित उम्मीदवार थावर भूरिया को रखना चाहेगी क्योंकि उन्होंने मकवाना को काफी संघर्ष कराया था। वहीं इस सीट से कांतिलाल्र भूरिया के पुत्र विक्रांत का दावा भी संभव है। विक्रांत के चलते थावर भूरिया को कांग्रेस पीछे कर सकती है। इधर भाजपा में मकवाना का विकल्प खोजना सहज नहीं है। ऐसे में पार्टी मंथन में जुटी है।
आदिवासी वोटर्स का बोलबाला
रतलाम ग्रामीण सीट पर बड़ी संख्या में आदिवासी वोटर्स रहते हैं जो यहां पर हार-जीत तय करते हैं। आदिवासी और दलित दोनों बिरादरी के करीब 80 हजार वोटर्स यहां पर हैं। इनके बाद पाटीदार, ठाकुर और ब्राह्मण समाज का नंबर आता है।