स्वतंत्र समय, भोपाल
मप्र में अधिकांश नगरीय निकाय घाटे में चल रहे हैं। इस कारण निकाय कभी बिजली का बिल नहीं भर पा रहे हैं तो कभी विकास कार्य रूक रहे हैं। इसकी वजह यह है कि निकाय जलकर, संपत्ति कर, सीवरेज और अन्य करों की वसूली करने में कोताही बरत रहे हैं। ऐसे में अब निकायों के टैक्स की वसूली निजी कंपनी से कराने की तैयारी चल रही है।
नगरीय प्रशासन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार विभाग इसे लेकर खाका तैयार कर रहा है। इसके तहत प्रदेश के एक लाख से अधिक आबादी वाले 33 नगरीय निकायों में जल्द ही जलकर, संपत्ति कर सीवरेज और अन्य करों की वसूली का काम पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड पर दिया जाएगा। अमृत-2 में इसके लिए प्रावधान किया गया है। विभाग को उम्मीद है कि पीपीपी मोड पर काम देने के बाद राजस्व में वृद्धि होगी। विभाग का लक्ष्य निकायों में 15 प्रतिशत तक राजस्व बढ़ाने का है। गौरतलब है कि नगरीय निकायों में जलापूर्ति, सीवरेज और जलाशयों के शुद्धिकरण के लिए अमृत-दो योजना के तहत प्रदेश को 12858.71 करोड़ का फंड स्वीकृत हुआ है। प्रदेश के चार बड़े शहरों को 5142.23 करोड़ रुपए मिलेंगे। योजना से इंदौर को 1738.61 करोड़ तो भोपाल को 1522.29 करोड़ रुपए दिए जाएंगे। अमृत-1 में वर्ष 2021-22 के लिए करीब 11.500 करोड़ रुपए स्वीकृत हुए थे। शेष बचे कामों को पूरा करने के लिए इस बार बजट में बढ़ोत्तरी की गई है।
अभी आधी वसूली ही हो रही
नगरीय प्रशासन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार समय पर टैक्स की वसूली नहीं होने के कारण निकायों पर घाटा दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। विकास कार्य के लिए निकायों को कर्ज लेना पड़ रहा है। दरअसल, अभी नगरीय निकायों में तय, लक्ष्य से आधी वसूली ही हो या रही है। राजधानी भोपाल की ही बात करें तो एक हजार करोड़ की तुलना में सिर्फ 500 करोड़ की वसूली ही हो पाई थी । निकायों को सबसे ज्यादा घाटा जलकर वसूली में होता है। निकायों को जलाशय और नदियों के जरिए पानी लिफ्ट कर लाने पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च करना पड़ते हैं, लेकिन 25 से 30 प्रतिशत राशि की ही वसूली हो पाती है।एजेंसी वसूली तो कर सकेगी लेकिन जल-सीवरेज कनेक्शन काटने का अधिकार उन्हें नहीं होगा। वह सिर्फ सुविधा उपलब्ध कराने, जनता और निगम के बीच समन्वय स्थापित करेगी। अधिकारियों का मानना आम जनता टैक्स चुकाना चाहती है, यदि उन्हें बेहतर सुविधाएं मिले तो टैक्स वसूली भी बढ़ेगी। अभी शासकीय एजेंसियों पर नगरीय निकायों का करोड़ों रुपए बकाया है। इन्हीं की समय पर वसूली हो जाए तो निकायों का राजस्व घाटा काफी हद तक कम हो जाएगा। केंद्र सरकार की गाइडलाइन के अनुसार निकायों को राजस्व में 15 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी करनी होगी।