उप पंजीयन कार्यालय बना दलालों का रैन बसेरा, जिम्मेदार खामोश

स्वतंत्र समय, बैतूल

प्राय: तौर पर रजिस्ट्री करने के लिए तमाम नियम दिए गए हैं। जिसके अंतर्गत रजिस्ट्री करने क्रेता एवं विक्रेता को ई- रजिस्ट्री कार्यालय में पहुंचकर दस्तावेज ऑनलाइन करवाने होते हैं। इसके बाद वह स्वयं क्रेता एवं विक्रेता दोनों पक्ष रजिस्ट्री कार्यालय में पहुंचकर रजिस्ट्री में ऑनलाइन संबंधी सभी दस्तावेज प्रस्तुत कर रजिस्ट्री करा सकते हैं, किंतु अधिकांश केश में देखने को मिल रहा है, कि क्रेता विक्रेता के साथ जमीन के क्रय विक्रय में शामिल दलाल भी रजिस्ट्री ऑफिस तक पहुंच रहे हैं। जिनको लेकर पहले भी तमाम खबरें लगते आई है, किंतु व्यवस्था जस की तस हैं। कई केस में तो देखने में आया है कि जमीन मालिक को पता ही नहीं होता है कि उसकी जमीन की रजिस्ट्री हो गई है। इसके बावजूद वहां ऑफिस अपनी जमीन वापस मांगने भटकता रहता है। यहां सब इन्हीं दलालों का खेल है।

दलालों पर कार्रवाई क्यों नहीं ?

नियमों के बड़े-बड़े पोस्टर कार्यालय में लगा देने के बावजूद भी इन दलालों को सामान्य रूप से कार्यालय में आते-जाते देखा जा सकता है, जिनकी बात करने पर अधिकारी अधिकांश तह: अपना पल्ला झाड़ते दिखते हैं, कि वह तो क्रेता या विक्रेता की मदद के लिए आया था या अन्य। लेकिन मामला गंभीर है सिर्फ पोस्टर लगा देने से या बड़ी-बड़ी लाइन लिख देने से कुछ नहीं होगा। बताया जाता है कि हर रजिस्ट्री में दलाल द्वारा पंजीयन अधिकारी को रजिस्ट्री बिना पूछताछ एवं रोकटोक के करने एक रकम पेशकश के रूप में दी जाती है। यहां सभी जानते हैं फिर इन पर कार्रवाई क्यो होने से रही। यह सब जांच का विषय है, कि किस माध्यम से दलाल अधिकारियों तक पेशकश के लेनदेन में अपना सामंजस्य बैठाते हैं, बिना कार्यालय के कर्मचारियों की मिलीभगत के इतना सब कांड होना संभव नहीं है।