तरुण भट्ट
shaligram shila -अयोध्या में रामजन्म भूमि पर बनने जा रहे रामलला के मंदिर में भगवान की प्रतिमा को तराशने के लिए नेपाल की गंडकी नदी में पाएं जाने वाले विशेष पत्थर को अयोध्या लाया गया है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस विशेष पत्थर को शालिगराम शिला कहा जाता है। कई रंग, रूप और आकार में पाएं जाने वाला यह पत्थर राम मंदिर निर्माण में क्यों खास है, यह जानने के लिए पढ़ें खास रिपोर्ट।
क्या आपको पता है अयोध्या के लिए नेपाल से ही क्यों लाई गई है शालिगराम shaligram शिला, जानने के लिए पढ़े शालिगराम शिला से जुड़ी हमारी यह खास रिपोर्ट।
सनातन परंपरा में अमूमन शालिगराम shaligram जी का जिक्र देवउठनी ग्यारस के दिन होने वाले तुलसी विवाह के समय होता है, लेकिन इस समय देश भर में शालिगराम शिला की चर्चा जोरों पर हैं। दरअसल रामजन्म भूमि अयोध्या में बनने जा रहे प्रभु श्रीराम के मंदिर में रामलला और माता जानकी की प्रतिमाएं, जिस पत्थर से गढ़ी जाएंगी, वह पत्थर नेपाल की गंडकी नदी (काली नदी) से अयोध्या लाया गया है। इसी पत्थर को शालिगराम शिला कहा जा रहा है। खास बात यह है कि geologist भू-गर्भ वैज्ञानिक नेपाल से अयोध्या लाई गईं इन दोनों शिलाओं को 6 करोड़ साल पुराना होना बता रहे हैं।
सिर्फ नेपाल में ही मिलती हैं शालिगराम शिलाएं
वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार शालिगराम shaligram शिला एक तरह का जीवाश्म है। यह अनोखे पत्थर हिमालय के क्षेत्र में बहुत बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं। आज जहाँ हिमालय himalaya है, वहां एक जमाने में विशाल समुद्र हुआ करता था । वैज्ञानिकों का कहना है कि आज से करीब 6 करोड़ साल पहले इंडियन टेक्टॉनिक प्लेट indian tectonic plates और यूरेशियन टेक्टॉनिक प्लेटों की आपसी टक्कर होने की वजह से हिमालय पर्वत की उत्पति हुई थी। हिमालय जिस मिट्टी, पत्थर और दूसरे मलबे से बना है, वह कभी इसी सागर की तलहटी में था। उसी तलहटी में ये जीवाश्म पाए जाते थे, जो हिमालय का हिस्सा बन गए। वही जीवाश्म हिमालय से निकलने वाली गंडकी नदी (जिसे काली नदी, शालिग्रामी जैसे कई नामों से जाना जाता है) की जलधारा में बहते हुए मिल जाते हैं। इस कारण शालिगराम शिलाएं केवल नेपाल की गंडकी नदी में ही मिलती हैं। वैज्ञानिक बताते हैं कि गंडकी नदी में भी अब शालिगराम शिलाएं न के बराबर बची हैं, नदी के उद् गम स्थ्ाल से करीब 170 किलोमीटर दूर दामोदर कुंड में हजारों साल पुराने इन जीवाश्म पत्थरों के अवशेष पाएं जाते हैं।
आखिर शालिगराम पत्थर से ही क्यों बनाई जाएंगीं भगवान राम और माता सीता की प्रतिमा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शालिगराम shaligram पत्थर का इस्तेमाल भगवान के आह्वाहन के लिए किया जाता है। हिन्दू धर्म से जुड़ी पौराणिक कथाओं Hindu Mythology के अनुसार भगवान विष्णु का रूप कहे जाने वाले शालिगराम पत्थर 33 तरह के होते हैं। इनमें से 24 तरह के शालिगराम पत्थरों को भगवान विष्णु के 24 अवतारों से जोड़ा जाता है। हिन्दू धर्म से जुड़े अनुयायी भगवान विष्णु के विग्रह रूप में शालिगराम जी की पूजा करते हैं। हिंदू धर्म ग्रंथ भगवान राम को भगवान विष्णु का अवतार बताते हैं। इसी कारण मान्यता है कि शालिगराम शिला से गढ़ी गई भगवान राम की प्रतिमाओं में साक्षात प्रभु श्रीराम जी का वास होता है। इस कारण ही अयोध्या में स्थापित होने जा रहे रामलला की प्रतिमा शालिगराम शिला से बनाई जा रही है।
40 टन वजनी हैं दोनों शालिगराम शिलाएं, जांच के बाद ही बनेगी प्रतिमाएं
25 एवं 15 टन वजन वाली इन दोनों शिलाओं को ट्राले से उतारने के लिए 4 क्रेनो की मदद लेनी पड़ी। श्री रामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के निर्देशन में काम कर रहे मूर्तिकार अब इन दोनों पत्थरों की जांच करेंगे। इस जांच के बाद ही तय होगा की नेपाल आई इन शालिगराम शिलाओं से ही रामलला की मूर्ति गड़ी जाएंगी, अथवा नहीं। ट्रस्ट से जुड़े सूत्र बताते हैं कि भारत के अन्य प्रदेशों ओडिसा, कर्नाटक, मध्यप्रदेश आदि से पत्थर मंगवाएं जा रहे हैं। हालांकि रामलला की मूर्ति बनाने के लिए प्राथमिकता नेपाल से आई शालिगराम शिलाओं को ही दी जा रही है, लेकिन मूर्तिकारों की राय के बाद ही तय होगा कि रामलला की प्रतिमा किस पत्थर से तराशी जाएगी।