लेखकः राकेश अचल
सियासत की रेल कब पटरी बदल ले, कोई नहीं जानता। भारत में दो दिन पहले नमो भारत रेल चली थी और कल ग्वालियर से दिल्ली के बीच नमो सिंधिया रेल चल पड़ी। नमो यानि नरेंद्र मोदी और सिंधियाओं को लेकर पिछले कुछ दिनों से अटकलों का बाजार गर्म था किन्तु शुक्रवार की शाम प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से सिंधिया खानदान का गुणगान किया उसे सुनने के बाद कम से कम भाजपाइयों ने तो मान लिया है कि हिचकोले खा रही नमो-सिंधिया रेल अब पूरी गति से दौडऩे वाली है। नरेंद्र मोदी के बदले रुख की वजह से सिंधिया और सामंतवाद के विरोधियों को निराशा हो सकती है।
प्रधानमंत्री 21 अक्टूबर को ग्वालियर के सिंधिया स्कूल के स्थापना समारोह के मुख्य अतिथि थे। चुनाव आचार संहिता लगने के बाद उनका ग्वालियर आना एक आश्चर्य का विषय था ,लेकिन वे न सिर्फ आये बल्कि उन्होंने आदर्श आचार सहिता का पालन करते हुए भीं केवल अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाईं बल्कि वे सिंधिया परिवार पर भी लट्टू होते दिखाई दिए ।
उन्होंने सिंधिया परिवार से जो रिश्ता स्वीकार किया वो भी भाजपाइयों की आँखें खोल देने वाला है। उन्होंने कहा कि ग्वालियर से उनका रोटी-बेटी का रिश्ता है । केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया गुजरात के दामाद हैं। और उनके ससुर बड़ोदरा के गायकवाड़ों के द्वारा स्थापित स्कूल में वे खुद पढ़े हैं। कल्पना कीजिये कि यदि गायकवाड़ों ने स्कूल न खोला होता तो मोदी जी का क्या होता ?
प्रधानमंत्री जी ने ग्वालियर के विकास में माधवराव सिंधिया [प्रथम ] के योगदान की भूरि – भूरि सराहना की। उन्होंने ग्वालियर के हरसी बाँध का जिक्र किया। सिंधिया स्कूल का हवाला दिया । और तो और उन्होंने कांग्रेस के जमाने के रेल मंत्री और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया की रेल मंत्री के रूप में जमकर तारीफ़ की। मोदी जी ने कहा कि माधवराव जी के समय में शताब्दी जैसी 87 रेलें शुरू हुईं थीं तब से 30 साल बीत गए एक भी रेल शुरू नहीं हुई। अब मोदी जो को कौन बताता कि भारत में सिंधिया के बाद कांग्रेस की ही सरकार ने 2008 में 54 गरीब रथ चलाये थे । तब माननीय लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री थे । उनके बाद की रेल मंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने 2009 में 33 दूरंतो रेलें चलाईं थी।
प्रधानमंत्री जी ने सिंधिया स्कूल के बच्चों को 9 सूत्रीय टास्क देने से पहले अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाई । उन्होंने बच्चों को बताया कि वे पेंडेंसी निबटने वाले प्रधानमंत्री है। उन्होंने 60 साल से पेंडिंग धारा 370 हटाने का काम पूरा किया । तीन तलाक रोकने के लिए कानून बनाया। नारी शक्ति वंदन क़ानून बनाया। देश में कांग्रेस के जमाने में 100 स्टार्टअप थे आज वे एक लाख हैं। उन्होंने ग्वालियर में बनने वाले नए हवाई अड्डे का भी जिक्र किया। लेकिन उनके भाषणों से किसी आदर्श आचार संहिता का उललंघन नहीं हुआ । हालंकि माननीय का भाषण सजीव प्रसारित किया गया। केंचुआ बेचारा चुपचाप सब देखता रहा । समरथ को नहीं दोष गुसांई ।
आपको बता दें कि माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाजपा ने ही 2019 में सिंधिया खानदान के चश्मों-चिराग ज्योतिरादित्य सिंधिया को लोकसभा का चुनाव हरवाकर उनकी मिटटी पलीत की थी। मोदी जी की वजह से राजस्थान में बसुंधरा राजे सिंधिया की मिटटी कुटी थी। मोदी जी की वजह से ही मध्यप्रदेश में यशोधरा राजे सिंधिया को विधानसभा चुनावों से भागना पड़ा था लेकिन ये सब भरम था भाजपा कार्यकर्ताओं का। मोदी जी और पूरी भाजपा सिंधिया खानदान के अहसानों के नीचे दबे थी और दबी है । देश में आरएसएस,जनसंघ और भाजपा को जितना सिंधिया परिवार ने पाला-पोसा और किसी राजघराने ने नहीं। मोदी जी ने बसुंधरा राजे को उनका सम्मान वापस लौटा दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता की मामी श्रीमती माया सिंह को ग्वालियर पूर्व से भाजपा का प्रत्याशी बना दिया हालांकि उनकी उम्र [73 ] सन्यास लेने की है। मुमकिन है कि मोदी जी आगामी लोकसभा चुनाव में यशोधरा राजे सिंधिया को गुना संसदीय सीट से टिकिट दे दें। ये भी मुमकिन है कि मोदीकाल में ही ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेटे महारमन को भी सियासत में लांच कर दिया जाये। ध्यान रहे कि सिंधिया परिवार के साथ माननीय मोदी जी की पहली पारिवारिक तस्वीर मार्च 2022 में वायरल हुई थी।
सिंधिया खानदान के प्रति भाजपा की मोदी शाह जोड़ी के व्यवहार में भारी अंर्त नोट किया गया। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जब जयविलास महल गए थे तब ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके बेटे महाआर्यमन सिंधिया शाह के सामने अर्दलियों की भांति हाथ बांधे खड़े थे लेकिन मोदी जी ने उन्हें न केवल अपने साथ बैठाया बल्कि उन्हें गुजरात का यानि अपना दामाद बताकर सम्मानित भी किया । यानि मोदी जी ने शाह की गलती को सुधारा। अब शाह को भी अपनी गलती का अहसास शायद हो जाये और वे सिंधियाओं को घुडक़ी देना छोड़ दें। मोदी जी के व्यवहार में आयी तब्दीली से जहां सिंधिया खानदान राहत महसूस कर रहा है ।
वहीं भाजपा का स्थानीय कार्यकर्ता कसमसा रहा है । भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ता और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथी जय सिंह कुशवाह ने तो सिंधिया की मामी को ग्वालियर पूर्व विधानसभा से टिकिट देने के फौरन बाद भाजपा के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। संघ परिवार में भीतर तक पैठ रखने वाले ग्वालियर के संसद विवेक नारायण शेजवलकर तक अपने बेटे को लश्कर पश्चिम से विधानसभा का टिकिट न मिलने से खिन्न हैं।
भाजपा का मौजूदा नेतृत्व कब सिंधिया का विरोधी हो जाता है और कब उनके गुणगान करने लगता है ,पता ही नहीं चलता। सिंधिया के साथ गलबहियां करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा को सिंधिया के करीबी होने का कोई फायदा नहीं मिला । वे विधानसभा चुआव का टिकती हासिल नहीं कर पाए जबकि उनकी ही तरह असंतुष्ट माने जाने वाले अजय विश्नोई और जयंत मलैया को टिकिट मिल गया । जाहिर है कि या तो सिंधिया अनूप के लिए अड़े नहीं या फिर उन्होंने अनूप के टिकिट को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाया क्योंकि ज्योतिरादित्य को भाजपा नेतृत्व से टकराकर कुछ भी हासिल नहीं होने वाला ,भले ही वे गुजरात के दामाद बने रहें।
भाजपा और कांग्रेसी मान चुके हैं की मोदी-शाह की जोड़ी ने सिंधिया खानदान के सभी खून माफ़ कर दिए हैं। 1857 की कहानी भी मोदी-शाह की जोड़ी को काबिले यकीन नहीं लगी। उन्हें सिंधिया खानदान का विकास नजर आता है। भाजपा को 1857 के बाद के सिंधिया पसंद हैं इसलिए भाजपा उन्हीं का यशोगान करती है । पुराने सिंधियाओं को विस्मृत कर देती है। बहरहाल सिंधिया खानदान के प्रति मोदी जी के रुख में आयी तब्दीली से एक बात साफ़ हो गयी है कि मोदी जी को और भाजपा को सामंतों और सामंतवाद से कोई परहेज नहीं है। परहेज है तो सिर्फ कांग्रेस से और कांग्रेस की औरस संतानों से।