स्वतंत्र समय, इंदौर
राजगढ़ सीट पर वोटर्स की संख्या
कुल वोटरः 203680
पुरुष वोटरः 105658
महिला वोटरः 98009
(2018 की स्थिति मेेंं)
राजगढ़ सीट की खास बात यह है कि यहां पर राजनीतिक दल दो से अधिक बार किसी चेहरे को टिकट नहीं देते। कांग्रेस तो हर चुनाव में चेहरा बदल ही देती है। ऐसा पहली बार हुआ है जब कांग्रेस ने पुराने यानी 2018 के चेहरे को ही आजमाया है। इस वजह से कई सीटिंग एमएलए के इस सीट पर टिकट कटे हैं। राजगढ़ जिला को दिग्विजय सिंह का गढ़ माना जाता है लेकिन इस विधानसभा सीट पर किसी पार्टी का गढ़ नहीं माना जा सकता। वर्तमान में इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। इस सीट की खास बात यह है कि यहां पर न तो जातिगत समीकरण काम आते हैं, न ही जनता एक चेहरे को आंख मूंदकर चुनती है, ऐसे में राजनीतिक पार्टियों की मजबूरी है कि वह चेहरा बदलती है। 2018 से पहले का चुनावी इतिहास देखें तो यहां पर या तो कोई भी उम्मीदवार लगातार दो बार नहीं जीत पाया और यदि किसी ने यह मिथक तोड़ा तो उसकी पार्टी की सरकार बदल जाती है। पिछली बार विधायक भी बदल गया और सत्ताधारी दल भी। यहां भाजपा की ओर से 2018 में अमर सिंह यादव और कांग्रेस की ओर से बापू सिंह तोमर चुनाव मैदान में थे। कांग्रेस के बापू सिंह ने 81,921 वोट हासिल करते हुए अमरसिंह को हराया, जिन्हें 50,738 वोट मिले। वहीं 2013 में अमरसिंह यादव विधायक चुने गए थे।
हर चुनाव में प्रत्याशी बदलने का इतिहास
वर्ष 1957 से लेकर इन चुनावों से पहले तक राजगढ़ सीट पर ऐसी स्थिति रही कि अक्सर राजनीतिक दलों ने अपना प्रत्याशी हर चुनाव में बदल दिया। यदि प्रत्याशी नहीं बदला गया तो जनता ने विधायक बदल देया। यहां सिर्फ दो नेता ही लगातार दो बार जीते, लेकिन उनकी दूसरी जीत के साथ ही सरकार बदल गई। इनमें जनता पार्टी के जमनालाल गुप्ता व भाजपा के रघुनंदन शर्मा शामिल हैं। 1977 में यहां से जमनालाल गुप्ता अपना पहला चुनाव जीते थे, तो करीब ढाई साल बाद ही राष्ट्रपति शासन लग गया था। इसके बाद 1980 के चुनाव में वे फिर जीते तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गई और उन्हें विपक्षी विधायक के रूप में काम करना पड़ा। इसी प्रकार रघुनंदन शर्मा जब 1990 में अपना पहला चुनाव जीते तो भाजपा की सरकार थी, लेकिन जब 1993 में लगातार दूसरी बार जीते तो कांग्रेस की सरकार बन गई।
दोनों पार्टियों को मिला मौका
राजगढ़ सीट पर 1957 से लेकर अब तक कुल 14 चुनाव हुए हैं, पहले दो चुनाव में यानी 1957 और 1962 के इलेक्शन में जनता ने निर्दलीय उम्मीदवार को जिताया था। वहीं 1967 और 1972 के चुनाव में कांग्रेस पर भरोसा जताया। 1977 में हिंदुत्व विचार की जनता पार्टी जीती तो 1980 में बीजेपी बनी और चुनाव जीत गई। इसके बाद एक साल ये तो दूसरी साल वो पार्टी चला आ रहा है, 1985 में कांग्रेस, 1990 और 1993 में बीजेपी, 1998 में कांग्रेस, 2003 में भाजपा, 2008 में कांगेस, 2013 में बीजेपी और 2018 में कांग्रेस चुनाव जीती। इससे माना जा रहा है कि 2023 में यहां मुकाबला कड़ा होने वाला है।
इस बार फिर पुराने चेहरे
राजगढ़ विधानसभा सीट पर इस बार कांग्रेस विधायक बापू सिंह तंवर का मुकाबला भाजपा के पूर्व विधायक अमर सिंह यादव से होगा, जिन्हें वे पूर्व में भी 31,183 मतों के अंतर से पराजित कर चुके हैं। यादव ने 2013 के मुकाबले में कांग्रेस प्रत्याशी शिवसिंह बमलाबे को 51211 वोटों से पराजित कर अपना दबदबा बनाया था। यही वजह है कि भाजपा ने लगातार तीसरी बार उन्हें इस सीट से उतारा है यानी इस सीट की परंपरा के खिलाफ जाकर भाजपा ने यह टिकट दिया है।
अमर सिंह तीन दशक से सक्रिय
यहां से भाजपा ने लगातार तीसरी बार अमर सिंह यादव को अपना प्रत्याशी बनाया है। अमर सिंह 1990 में किसान संघ के ब्लॉक अध्यक्ष और 1992 में भाजपा के मण्डल अध्यक्ष रहे। 2007 से 2012 तक भाजपा युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष रहे। सन 2013 में भाजपा के टिकट पर राजगढ़ विधानसभा के विधायक का चुनाव जीता। वर्तमान में खुजनेर नगर परिषद के अध्यक्ष प्रतिनिधि हैं।
तंवर समाज खासी तादाद में मौजूद
इस क्षेत्र में तंवर समाज के करीब 45 हजार लोग रहते हैं। इसके अलावा सोंधिया समाज के करीब 48 हजार, यादव समाज के करीब 10 हजार वोटर्स रहते हैं। करीब-करीब इतने ही दांगी समाज और गुर्जर समाज के भी वोटर्स हैं। बाकी अन्य कई समाज के वोटर्स यहां रहते हैं। इस तरह जातीय गणित की बात करें तो तंवर, यादव, सोंधिया, दांगी का लगभग बराबर अनुपात है। इसके बाद लोधी, गुर्जर और मीणा जाति के लोग हैं। वहीं शहरी क्षेत्र में ब्राम्हण और बनियों का बाहुल्य है, एससी-एसटी भी खासी संख्या में है।
स्वास्थ्य और बेरोजगारी बड़ा मुद्दा
यहां पर पर्यटन के लिहाज से ज्यादा संभावना नहीं है। इस सीट का सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी है। इस कारण भी पलायन देखने को ग्रामीण अंचल में देखने को मिलता है। धार्मिक पर्यटन के रूप में जालपा माता का मंदिर काफी प्रसिद्ध है। हाल ही में यहां पंडित धीरेंद्र शास्त्री की भी कथा कराई गई। वहीं स्वास्थ्य को लेकर स्थिति लचर है।