प्रजा के भरोसे राजघराने

स्वतंत्र समय, भोपाल।

मध्यप्रदेश की सियासत में शुरू से ही राजा-रजवाड़े और राजघरानों की तूती बोलती रही है। विधायक से लेकर मंत्री ही नहीं मुख्यमंत्री भी राज परिवार के लोग बनते रहे हैं और आज भी उनका राजनीतिक वर्चस्व कायम है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह राजा तो ज्योतिरादित्य सिंधिया महाराजा कहलाते हैं। इतना ही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह भी राज परिवार से ताल्लुक रखते थे और अब उनकी राजनीतिक विरासत अजयसिंह संभाल रहे हैं। राजघरानों की सियासत इस बार के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में दांव पर लगी है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों ने कई राजपरिवार के सदस्यों को चुनावी मैदान में उतारा है। राघोगढ़ राजघराने से लेकर रीवा, चुरहुट, मकड़ाई और अमझेरा राजपरिवार के सदस्य इस बार के विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाने के लिए उतरे हैं। सिंधिया परिवार से भले ही इस बार कोई चुनाव नहीं लड़ रहा हो, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के चलते साख जरूर दांव पर लगी है।

राघोगढ़ राजघराना

मध्यप्रदेश की राजनीति में राघोगढ़ राजघराने की अपनी एक साख है, जिसकी अगुवाई मौजूदा समय में दिग्विजयसिंह कर रहे हैं। इस राज परिवार से दो सदस्य चुनावी मैदान में उतरे हैं, जिसमें राघोगढ़ सीट से दिग्विजयसिंह के बेटे जयवर्धनसिंह एक बार फिर से किस्मत आजमाने के लिए उतरे हैं, जिनके सामने बीजेपी ने हीरेंद्र सिंह बंटी बन्ना को उतारा है। वहीं, चचौड़ा विधानसभा सीट से दिग्विजयसिंह के भाई लक्ष्मणसिंह चुनाव लड़ रहे हैं, जिनके खिलाफ बीजेपी से प्रियंका मीणा उतरी हैं। राघोगढ़ राजघराने का इतिहास 1673 से मिलता है। दिग्विजयसिंह के पिता बलभद्रसिंह राघोगढ़ राजघराने के शासक रहे। ब्रिटिश राज में राघोगढ़ ग्वालियर रेजीडेंसी की एक रियासत हुआ करती थी। राघोगढ़ विधानसभा सीट पर दिग्विजयसिंह और उनके परिवार का ही दबदबा है। दिग्विजयसिंह के बेटे जयवर्धनसिंह पिछले दो चुनाव से जीतकर विधायक बनते आ रहे हैं और अब तीसरी बार हैट्रिक लगाने के लिए उतरे हैं, लेकिन बीजेपी ने हीरेंद्र सिंह बंटी को उतारकर उन्हें घेरने की कोशिश की है। इस तरह से ही दिग्विजयसिंह के भाई को भी चाचौड़ी सीट पर चक्रव्यूह रचा है। ऐसे में राघोगढ़ राज परिवार की साख दांव पर है, देखना है कि इस बार क्या होता है।

सिंधिया रियासत

मध्यप्रदेश में आजादी के बाद से ही ग्वालियर राजघराना, जिसे सिंधिया राज परिवार के नाम से जाना जाता है। राजमाता सिंधिया ने आजादी के बाद कांग्रेस का दामन थाम लिया और बाद में जनसंघ से होते हुए बीजेपी में शामिल हुईं। सिंधिया परिवार की तीसरी पीढ़ी राजनीति में है, लेकिन यशोधरा राजे के इंकार के बाद परिवार से इस बार कोई भी सदस्य चुनाव नहीं लड़ रहा है। इसके बावजूद सिंधिया परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, क्योंकि इस बार बीजेपी को चंबल-ग्वालियर बेल्ट में बीजेपी को जिताने का जिम्मा ज्योतिरादित्य सिंधिया के कंधों पर है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 2022 में कांग्रेस छोडक़र बीजेपी का दामन थाम लिया था, जिसके चलते कमलनाथ की अगुवाई वाली कांग्रेस की सरकार गिर गई थी। बीजेपी ने सिंधिया के तमाम करीबी नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा है, जिन्हें जिताने का जिम्मा उनके ऊपर ही है। हालांकि, कांग्रेस ने जिस तरह से दिग्विजयसिंह और जयवर्धनसिंह को चंबल-ग्वालियर को मोर्चे पर लगा रखा है, उससे सिंधिया के लिए चिंता बढ़ गई है।

रीवा राजघराना

मध्यप्रदेश की राजनीति में रीवा राज घराने का अपना दबदबा है। मौजूदा समय में रीवा राज परिवार की सियासी विरासत को दिव्यराजसिंह संभाल रहे हैं और रीवा जिले की सिरमौर विधानसभा सीट से विधायक हैं। दिव्यराज के पिता और पुष्पराजसिंह भाजपा और कांग्रेस दोनों से रीवा से विधायक रह चुके हैं। पुष्पराजसिंह पूर्व सीएम दिग्विजयसिंह की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। दिव्यराज एक बार फिर से सिरमौर सीट से उतरे हैं, जिनके खिलाफ कांग्रेस ने आदिवासी समुदाय से आने वाले रामगरीब को उतारा है। रामगरीब दिग्गज नेता माने जाते हैं, जिनके उतरने से रीवा राज घराने से ताल्लुक रखने वाले दिव्यराजसिंह के सामने कड़ी चुनौती खड़ी हो गई है।

चुरहट-देवास रियासत

एमपी में चुरहट रियासत और देवास राजघराने की अपनी सियासत रही है। चुरहट राजघराने से ताल्लुक रखने वाले अजयसिंह कांग्रेस के टिकट पर चुरहट विधानसभा सीट से एक बार फिर से उतरे हैं, उनके पिता अर्जुनसिंह मध्यप्रदेश के सीएम रह चुके हैं। अर्जुन सिंह के पिता शिवबहादुर सिंह चुरहट राज परिवार के 26वें राजा थे। इस सियासी विरासत को अर्जुनसिंह ने आगे बढ़ाया और अब अजयसिंह संभाल रहे हैं, लेकिन उनके सामने चुरहट रियासत को बचाए रखने की चुनौती है। पिछले चुनाव में बीजेपी के हाथों हार गए थे और अब फिर से शारदेंदु तिवारी से मुकाबला है। देवास राजघराने की अपनी सियासत है और बीजेपी ने इस परिवार से ताल्लुक रखने वाली गायत्रीराजे पवार को देवास विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है। गायत्री अपने पति दिवंगत महाराजा वरिष्ठ तुकोजीराव पवार की विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाता है। तुकोजीराव परिवार छह बार से लगातार चुनाव जीत दर्ज कर रहा है और 2015 से गायत्रीराजे विधायक हैं। गायत्रीराजे का मुकाबला कांग्रेस के प्रदीप चौधरी से है। चौधरी की अपनी पकड़ है और उनकी धार्मिक पहचान के चलते गायत्रीराजे पवार के सामने कड़ी चुनौती इस बार है।

 मकड़ाई-अमझेरा राजघराना

मकड़ाई और अमझेरा राजघराने का अपना सियासी दबदबा मध्यप्रदेश की राजनीति में है। बीजेपी ने मकड़ाई राज परिवार से दो लोगों को टिकट दिया है और दोनों ही सगे भाई है। बीजेपी ने हरसूद सीट से कुंवर विजय शाह को प्रत्याशी बनाया है, तो टिमरानी सीट से उनके भाई संजय शाह को मैदान में उतारा है। कुंवर विजय शाह मौजूदा समय में शिवराज सरकार में मंत्री हैं और एक बार फिर से ताल ठोक रहे हैं। वहीं, अमझेरा राज परिवार की विरासत राजवर्धनसिंह दत्तीगांव संभाल रहे हैं। धार जिले की बदनावर सीट से उम्मीदवार हैं, अमझेरा राजघराने से ताल्लुक रखने वाले राजवर्धन, शिवराज सरकार में उद्योग नीति और निवेश प्रोत्साहन मंत्री हैं। राजवर्धनसिंह ने अपना सियासी सफर कांग्रेस से शुरू किया था और कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने, लेकिन 2020 में सिंधिया के साथ कांग्रेस छोडक़र बीजेपी में एंट्री कर गए। इस बार उनका मुकाबला कांग्रेस से है। ऐसे में उनके सामने अपनी राजनीतिक दबदबे को बनाए रखने की चुनौती है।