अशीष भट्ट, भोपाल
हीरा नगरी के रूप में देश ही नहीं दुनिया में चर्चित पन्ना विधानसभा सीट पर इस बार किस प्रत्याशी की किस्मत चमकेगी, यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा। लेकिन इस बीच प्रत्याशी अपनी पूरी कोशिश चुनाव प्रचार में झोंक रहे हैं। इस सीट पर प्रदेश के खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप ङ्क्षसह का राजनैतिक भविष्य और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। बृजेंद्र प्रताप ङ्क्षसह जहां सरकार के विकास कार्यों के सहारे नैया चुनाव जीतने की बात कह रहे हैं, तो वहीं कांग्रेस उम्मीदवार भरत मिलन पांडेय को परिवर्तन होने की पूरी उम्मीद है। पन्ना सीट पर कब्जा बरकरार रखने जहां भाजपा प्रत्याशी के रूप में बृजेंद्र प्रताप सिंह जी -जान से जुटे हुए हैं, तो वहीं कांग्रेस ने भी इस बार ब्राह्मण प्रत्याशी भरत मिलन पांडेय को मैदान में उतारकर भाजपा का गणित बिगाडऩे की कोशिश की है। अब क्षेत्र के मतदाताओं का आशीर्वाद किसे मिलता है, यह तो 3 दिसंबर को ही पता चलेगा, लेकिन इस बीच प्रत्याशियों का प्रचार जोर-शोर से जारी है और एक – एक वोटर का हिसाब लगाया जा रहा है।
ऐसा रहा विधानसभा का चुनावी इतिहास
पन्ना विधानसभा के चुनावी इतिहास को देखें तो यहां पर ज्यादातर कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला देखने को मिला है। यहां के मतदाताओं ने भी विधानसभा को किसी एक दल या नेता की जागीर नहीं बनने दिया। हालांकि भाजपा की कुसुम मेहदेले ने सबसे अधिक यहां से चार बार चुनाव जीता है, लेकिन उन्हें दो बार हार का सामना भी करना पड़ा है। मौजूदा स्थिति में यहां भाजपा का कब्जा है, लेकिन विधानसभा चुनाव 2023 में भाजपा का आपसी संघर्ष और वरिष्ठ नेता कुसुम सिंह मेहदेले की नाराजगी भाजपा को भारी पड़ सकती है, तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने इस बार ब्राह्मण प्रत्याशी उतारकर भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। 2023 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी बृजेंद्र प्रताप सिंह और कांग्रेस प्रत्याशी भरत मिलन पांडेय के बीच सीधा मुकाबला है। बसपा प्रत्याशी विमला अहिरवार वोट काटने की स्थिति में है।
पिछले तीन चुनावों की स्थिति
2008 के विधानसभा चुनाव में मप्र में भले ही भाजपा की सरकार बनी थी, लेकिन पन्ना से भाजपा को कांटे के मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा था। महज 42 वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी श्रीकांत दुबे यह चुनाव जीत गए थे। भाजपा प्रत्याशी कुसुम सिंह मेहदेले के लिए जहां 22 हजार 541 मत हासिल हुए थे, वहीं कांग्रेस प्रत्याशी श्रीकांत दुबे ने 22 हजार 583 मत हासिल करते हुए 42 वोटों से कुसुम मेहदेले को हरा दिया था। कथित तौर पर उस दौरान कलेक्टर पर दूसरी बार रीकाउंटिंग कराकर परिणाम प्रभावित करने का दबाव भी आया, लेकिन मतगणना परिसर के बाहर जमा कांग्रेसियों के हुजूम ने इसकी भनक लगते ही हंगामा शुरू कर दिया, जिसके बाद कोई गड़बड़ नहीं हुई। 2013 के चुनाव 2013 में भाजपा की कुसुम मेहदेले ने शानदार वापसी की थी। मेहदेले ने कांग्रेस प्रत्याशी को करीब 28 हजार वोटों से हरा दिया था। मेहदेले ने जहां 54 हजार 778 वोट हासिल की, वहीं बहुजन समाज पार्टी के महेन्द्र पाल वर्मा ने 25 हजार 742 मत हासिल कर कांग्रेस को पीछे छोड़ दूसरे नंबर पर रहे। 2018 के चुनाव में पिछली बार 28 हजार वोटों से जीती मेहदेले का भाजपा ने टिकट काट दिया। उनके बजाय पवई के विधायक रहे बृजेन्द्र प्रताप सिंह को पन्ना सीट से प्रत्याशी बनाया। ऐसा कर भाजपा ने पवई के विरोध को भी थाम लिया और पन्ना, पवई दोनों सीटें जीत लीं। पन्ना से भाजपा के बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने 68 हजार 359 मत हासिल किए थे। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी शिवजीत सिंह राजा भैया को 47 हजार 651 मत प्राप्त हुए और उन्हें 20 हजार से ज्यादा मतों से हार का सामना करना पड़ा।
कैसा है जातीय गणित
पन्ना विधानसभा एक तरह से ब्राह्मण बाहुल्य सीट है। यहां के कुल मतदाताओं में सबसे ज्यादा करीब 40 हजार हजार ब्राह्मण मतदाता हैं। इसके अलावा पिछड़ा वर्ग के रूप में लोधी और यादव समाज के मतदाता भी निर्णायक स्थिति में है। पन्ना में लोधी मतदाताओं की संख्या 15 हजार है और यादव मतदाताओं की संख्या लगभग 30 हजार है। हालांकि पन्ना सीट पर स्थिति जाति और वर्ग के बजाय चुनाव की स्थिति प्राय: दलीय आधार पर ही निर्धारित हुई है। इस बार भी सीधा मुकाबला भाजपा -कांग्रेस के बीच ही है। तीसरे दल के सपा, बसपा का खास जनाधार यहां नहीं दिख रहा है।
यह हैं विधानसभा क्षेत्र के प्रमुख मुद्देे
पन्ना जिला मुख्यालय की विधानसभा पन्ना में प्रमुख मुद्दे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार ही हैं। मध्य प्रदेश के मंत्रिमंडल में पन्ना जिले को लगभग हर बार मौका मिला है, लेकिन पन्ना शहर में मेडिकल कॉलेज की मांग, यूनिवर्सटी की मांग लगातार बनी रही है, इस बार मेडिकल कॉलेज की प्रक्रिया प्रदेश सरकार ने चुनाव आचार संहिता लागू होने के पहले शुरू की है। हालांकि चुनाव के बाद यह कितनी और किस गति से आगे बढेगी, यह कहना मुश्किल है। पन्ना में रेल लाइन और उद्योग धंधों की मांग भी बहुत पुरानी है, पन्ना से सतना के बीच रेलवे लाइन बिछाने का काम भी शुरू है, लेकिन पन्ना से खजुराहो के बीच इसमें बड़ा अवरोध केंद्र सरकार के पर्यावरणीय अनुमति का है। पन्ना में हीरे और पत्थर की खदाने बंद पड़ी हुई हैं, इसलिए रोजगार का बड़ा संकट है।