हुकुमचंद का हक, अब सरकार ने किया बहाना तो कोर्ट करवा देगी नीलामी

 स्वतंत्र समय, इंदौर

हुकुमचंद मिल में अपने बकाया हक की लड़ाई लड़ रहे 5895 मजदूरों का इंतजार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। एक ओर जहां कोर्ट मजदूरों के ब्याज सहित भुगतान के आदेश कर चुकी है तो सरकार खुद को बचाने के लिए राहत के राजमार्ग खोज रही है। फिलहाल सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए आचार संहिता की आड़ लेकर भुगतान करने में असमर्थता जाहिर की है। वहीं हाई कोर्ट ने भी अब सख्त रुख अख्तियार करते हुए अंतिम तौर पर 28 नवंबर की मियाद दी है। इसके बाद सरकार भुगतान नहीं कर पाएगी तो कोर्ट मिल की नीलामी करने का विकल्प आजमाएगा। हालांकि यह लंबी और पेचीदा प्रक्रिया है। पहले भी इसकी निविदाएं बुलवाईं गईं लेकिन इसमें किसी ने रुचि नहीं दिखाई।

गौरतलब है कि मप्र गृह निर्माण मंडल के लिए आचार संहिता के दौरान चुनाव आयोग से मिल मजदूरों के भुगतान के लिए अनुमति प्राप्त करना आसान नहीं होगा। यह अनुमति नहीं मिली तो 29 नवंबर को होने वाली सुनवाई में कोर्ट उस समझौते को निरस्त कर सकती है जिसमें शासन, मप्र हाउसिंग बोर्ड, नगर निगम, मजदूर संघ सहित अन्य देनदारों ने सहमति जताई थी।

हाईकोर्ट ने सरकार को दी मियाद

हाई कोर्ट ने हुकुमचंद मिल मजदूरों सहित अन्य लेनदारों की बकाया राशि भुगतान को लेकर सरकार व हाउसिंग बोर्ड को 28 नवंबर की मियाद दी है। अगर इस अवधि में सरकार/हाउसिंग बोर्ड भुगतान करने में असमर्थ रहते हैं तो हाउसिंग बोर्ड और मिल के बीच का समझौता समाप्त हो जाएगा। इसके बाद कोर्ट मिल की नीलामी की प्रक्रिया करेगा।

हाउसिंग बोर्ड की प्रोजेक्ट लाने की है योजना

बताया जा रहा है  कि हाउसिंग बोर्ड ने समझौते के तहत मिल की देनदारियों के चुकाने के बदले इस जमीन पर प्रोजेक्ट की योजना बनाई है। इससे मिल की देनदारियां चुकाए जाने की नीति शामिल है।

आसान नहीं होगा मिल की जमीन बेचना

वहीं हुकुमचंद मिल के बकाया भुगतान को लेकर मिल परिसमापक का कहना है कि मिल की जमीन की कीमत मप्र हाउसिंग बोर्ड द्वारा किए जा रहे भुगतान से कई गुना ज्यादा है और समझौता निरस्त होता है तो जमीन बेचना आसान नहीं होगा। जमीन को बेचने के लिए आधा दर्जन से ज्यादा बार निविदाएं आमंत्रित की जा चुकी हैं, लेकिन जमीन बिक नहीं सकी।

मजदूरों पर ही पड़ेगी इंतजार की मार

बताया जा रहा है कि अगर मिल और हाउसिंग बोर्ड के बीच समझौता निरस्त होता है तो मजदूरों का भुगतान फिर अटक सकता है। दरअसल मिल की जमीन बेचकर मजदूरों को भुगतान कर पाना आसान नहीं होगा। 28 नवंबर अवधि तक भुगतान को लेकर वह चुनाव आयोग की अनुमति से लेकर बोर्ड बैठक और अन्य औपचारिक प्रक्रिया पूरा करने में असफल रहता है तो कोर्ट 20 अक्टूबर 2023 को जारी आदेश वापस ले लेगी और सरकार/बोर्ड को कोई और अवसर नहीं देते हुए मिल की जमीन कांपनीस एक्ट के कानून के मुताबिक नीलाम की जाएगी। जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की बेंच ने यह आदेश जारी किया है।

आचार संहिता की आड़  ली

20 अक्टूबर के आदेश के मुताबिक आदेश की कॉपी मिलने के दो सप्ताह में मजदूरों सहित अन्य का बकाया भुगतान करने की प्रक्रिया शुरू करना थी लेकिन सरकार (हाउसिंग बोर्ड) की ओर से पेश आवेदन में विधानसभा चुनाव के चलते चुनाव आयोग की अनुमति और बोर्ड बैठक का हवाला देते हुए कोर्ट से भुगतान के लिए 45 दिन का समय मांगा गया। इस मामले में गुरुवार 9 नवंबर को सुनवाई हुई तो हाउसिंग बोर्ड ने आचार संहिता की वजह से भुगतान में असमर्थता जता दी। हाई कोर्ट ने इस पर आपत्ति ली। वहीं अगली सुनवाई 29 नवंबर को होगी। अब देखना है कि गेंद सरकार के पाले में आने के बाद मामला क्या रुख लेता है।