टिमरनी विधानसभा सीट पर मतदाताओं की संख्या
कुल वोटरः 189620
पुरुष वोटरः 97,794
महिला वोटरः 91,825
(2023 की स्थिति में)
स्वतंत्र समय, इंदौर
हरदा जिले की टिमरनी विधानसभा सीट पर भाजपा ने चार बार के प्रत्याशी संजय शाह मैदान को उतारा है। वहीं उनके मुकाबले में कांग्रेस ने उनके भतीजे और राज परिवार से ताल्लुक रखने वाले अभिजीत शाह को मौका दिया है। ऐसे में इस सीट पर टसल वाला मुकाबला नजर आ रहा है। संजय शाह निर्दलीय रूप से भी अपनी ताकत भाजपा को दिखा चुके हैं, ऐसे में भाजपा के पास इस सीट पर उनके सिवाय कोई चारा नहीं था।
वहीं पिछली बार इस सीट पर उनका जोर करवाने वाले भतीजे अभिजीत कांग्रेस को तुरूप का इक्का लगे। इस सीट पर पिछले बीस साल से भाजपा का कब्जा है और कांग्रेस जीत की बांट जोह रही है। 2018 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो टिमरनी सीट पर कुल 8 उम्मीदवारों ने अपनी दावेदारी पेश की थी। लेकिन यहां भी मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही रहा था। बीजेपी के संजय शाह मकराई ने कांग्रेस के अभिजीत सिंह को हराया था। संजय शाह को चुनाव में 64,033 वोट मिले तो अभिजीत सिंह के खाते में 61,820 वोट आए। यह मुकाबला बेहद कांटे का रहा जिसमें संजय शाह को 2,213 वोट से जीत मिली थी।
शुरुआत में कांग्रेस का दबदबा
इस सीट पर पहली बार 1962 में चुनाव हुए और पहले विधायक कांग्रेस के टिकट पर धन्नालाल चौधरी बने। 1967 में भी चौधरी ने अपना कब्जा बनाए रखा। वहीं 1972 में कांग्रेस ने केपी बस्तवार को टिकट दिया और वे विधायक बने। इमरजेंसी यानी 1977 में जनता पार्टी को यहां पहली बार खाता खोलने का मौका मिला और मनोहर हजारीलाल राठौर विजयी हुए। वहीं 1980 में दोबारा कांग्रेस काबिज हुई और श्यामलाल वाल्मिकी विधायक बने। वहीं 1985 में कांग्रेस के टिकट पर एक बार फिर 1972 के विधायक बस्तवार को एमएलए बनने का मौका मिला।
मनोहरलाल रहे चार बार विधायक
इस सीट पर सर्वाधिक बार विधायक बनने का अगर मौका किसी को मिला तो वे थे मनोहर लाल राठौर। पहली बार वे जनता पार्टी के टिकट पर 1977 में विधायक बने। 1990 में भाजपा के टिकट पर राठौर जीतने में कामयाब रहे। यह क्रम 1993 में भी बना रहा। वहीं 1998 में एक बार फिर कांग्रेस ने जीत हासिल की और उत्तम सिंह सोनकिया विधायक बने। 2003 में एक बार फिर राठौर पर किस्मत मेहरबान हुई और वे विधायक बने।
मंत्री के लिए मौका नहीं मिला
केबिनेट मंत्री विजय शाह भी भाजपा से चुनाव लड़ते हैं। उनकी विधानसभा सीट हरसूद है। हरदा जिले में हरदा व टिमरनी दो सीटें हैं। टिमरनी से 3 बार जीते संजय शाह को मंत्री बनने का मौका नहीं मिला। इससे पहले जनता पार्टी व 3 बार अलग अलग सालों में भाजपा से जीतने वाले मनोहर लाल राठौर को भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। इसकी वजह हरदा से पांच चुनाव जीतने वाले कमल पटेल हैं और वे मंत्री बनने का लुत्फ ले चुके हैं।
कभी कोई महिला प्रत्याशी नहीं रहीं
61 साल पहले अस्तित्व में आई इस सीट पर भाजपा कांग्रेस दोनों ने कभी किसी महिला प्रत्याशी पर विश्वास नहीं जताया। यही कारण है कि यहां से कभी कोई महिला विधायक बनकर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने के लिए विधानसभा तक नहीं पहुंच सकी। इस बार भी दोनों पार्टियों ने महिला प्रत्याशी को मैदान में नहीं उतारा।
कोरकू और गोंड जनजाति के ज्यादातर वोटर्स
टिमरनी सीट पर ओबीसी मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है और यही वजह है कि दोनों राष्ट्रीय दल इसी वर्ग को ज्यादा महत्व देती है। यहां पर कोरकू और गोंड जनजाति के करीब 45 प्रतिशत वोटर्स हैं जो चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। क्षत्रिय और ब्राह्मण बिरादरी की भी अच्छी संख्या है।
संजय शाह का डंडा लेकर धमकाने का वीडियो वायरल
कुछ समय पहले हरदा जिले की टिमरनी विधानसभा से भाजपा विधायक संजय शाह का वायरल वीडियो सामने आया था। वीडियो में माननीय के बोल बिगड़ गए और विधायक संजय शाह हाथ में डण्डा लेकर ग्रामीणों को धमकाते नजर आ रहे हैं। विधायक अभद्र भाषा में ग्रामीणों धमकी दे रहे हैं। यह वीडियो खासी चर्चा का विषय बना था और पांच राउंड मंथन के बाद अंत में शाह का टिकट फाइनल हुआ था। वीडियो में विधायक संजय शाह कह रहे हैं, मैंने भलमनसाहत की राजनीति बहुत कर ली। अब बताऊंगा नेता क्या होता है।
अभिजीत शाह को इसलिए टिकट
अभिजीत राजनीति में सक्रिय रहने के साथ ही स्कूल का संचालन करते हैं। कांग्रेस प्रत्याशी अभिजीत शाह वन मंत्री विजय शाह के बड़े भाई अजय शाह के बेटे हैं।पिछले चुनाव में अपने काका संजय शाह को खासी टक्कर दी। मात्र 2213 वोटों से हारे। वहीं 32 साल के अभिजीत किसान कांग्रेस में प्रदेश उपाध्यक्ष हैं। 2018 में कांग्रेस से पहला चुनाव लड़ा। कमलनाथ से नजदीकी होने की वजह से टिकट मिला। मकडाई राजघराने के राजा के बेटे होने के साथ ही अभिजीत की की क्षेत्र में मजबूत पकड़ है।
2008 से संजय शाह का दबदबा
अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व टिमरनी सीट पर भी बीजेपी का ज्यादातर समय कब्जा रहा है। 1990 से लेकर अब तक कांग्रेस को महज एक बार ही जीत मिली है। जबकि बीजेपी 5 बार यहां से चुनाव जीत चुकी है। 2008 में इस सीट पर भाजपा को पराजय मिली, वहीं निर्दलीय चुनाव लडऩे वाले संजय शाह विजयी हुए। उन्होंने इस चुनाव में भाजपा से टिकट मांगा था। भाजपा ने संजय शाह का प्रभाव देखते हुए 2013 में भाजपा ने उन्हें टिकट दिया। इसके बाद वे 2018 में भी विजयी हुए। इस तरह वे तीन बार इस सीट पर लगातार विधायक हैं। वन मंत्री विजय शाह के छोटे भाई संजय शाह जीत की हैटट्रिक लगाकर चौथी बार मैदान में हैं।