‘बदलाव’ हो रहा या ‘वापसी’ की आहट…2.82 लाख नए वोटर, मात्र 2.60 लाख बढ़ा वोट

स्वतंत्र समय, इंदौर

इंदौर जिले की नौ विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव के बाद अब असमंजस की स्थिति है। पिछली बार हुए विधानसभा चुनावों से इस बार वोटिंग का प्रतिशत बढ़ गया है। करीब 2.30 लाख ज्यादा हुई वोटिंग किसके पक्ष में हुई इसका अंदाजा दोनों ही दल अपने-अपने हिसाब से लगा रहे हैं। इस बार का पूरा गणित देखें तो 2018 के मुकाबले 2023 के इस चुनाव में दो लाख 82 हजार चार सौ 39 वोटर्स बढ़े थे। इसमें 94 हजार 18 मतदाता नए वोटर्स थे। वहीं इस बार दो लाख साठ हजार चार सौ 54 वोट ज्यादा गिरे हैं। इस प्रकार जितने वोटर यहां पर बढ़े हैं उतने ज्यादा वोट नहीं बढ़े हैं। प्रदेश सहित जिले की सभी विधानसभा सीटों पर मतदान हो चुका है लेकिन जीत का ऊंट किस करवट बैठेगा, इसका अनुमान लगाने में हर किसी को पसीना आ रहा है। इस बार भी चुनाव में मतदान का प्रतिशत बढ़ा है, जिससे अब अनुमान भाजपा इस लिहाज से लगा रही है कि बढ़े हुए वोटर्स सरकार की योजनाओं की सहानुभूति है तो फिर कांग्रेस यह अनुमान लगा रही है कि यह सरकार के प्रति एंटी कम्बेन्सी और गुस्सा है। दोनों ही दल इसी लिहाज से अपनी जीत का दावा कर रहे हैं।

अगर देखा जाए तो भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय जैसे कद्दावर नेता की सीट पर कौन विजयी होगा, यह बताना अभी मुश्किल है तो पहली बार दो ग्रामीण सीटों पर दमदार त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बनी है। पिछले विधानसभा चुनाव के परिणामों का अंतर भी ऐसा है जो उम्मीदवारों को सुकून नहीं लेने दे रहा। जिले की नौ में से सात विधानसभा सीटों पर 2018 में जीत का अंतर दस हजार वोटों से भी कम था।

छह-तीन का है भाजपा-कांग्रेस का गणित

2018 के विधानसभा चुनाव के परिणाम पर नजर डाली जाए तो नौ में से पांच सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी और चार पर कांग्रेस जीती थी। उपचुनाव के बाद पांच-चार का आंकड़ा बदलकर छह-तीन में बदल गया था।इंदौर क्षेत्र दो में 71 हजार वोटों से ज्यादा और क्षेत्र चार में 49 हजार से ज्यादा वोटों की जीत ही बड़ी जीत थी। शेष सभी सात सीटों पर जीत का आंकड़ा 10 हजार से कम था। इसमें भी क्षेत्र पांच में सबसे छोटी जीत सिर्फ 1132 वोटों से हुई थी। मुख्य चुनाव में सांवेर की जीत सिर्फ 2945 वोटों की थी। राऊ की जीत सिर्फ 5703 वोटों की, तीन नंबर में जीत 5751 वोटों की, महू की जीत सिर्फ 7157 वोटों की एक नंबर की जीत 8163 वोटों की और देपालपुर की जीत सिर्फ 9044 वोटों की थी। पांच साल पहले की छोटी जीत पार्टियों के लिए बड़ी मुसीबत बनती दिख रही है।

जीत के अंतर से ज्यादा बढ़ा है मतदान

इस बार विधानसभावार स्थिति कुछ अलग नजर आ रही है। देपालपुर में इस बार पिछली बार से 32732 वोट ज्यादा गिरे है तो पिछली बार जीत का अंतर मात्र 9044 ही था। इस लिहाज से करीब चार गुना ज्यादा वोट गिरे है। विधानसभा क्रमांक एक में पिछली बार 8163 वोट से संजय शुक्ला जीते थे लेकिन इस बार 35870 वोट ज्यादा मतदान हुआ है। विधानसभा क्रमांक तीन में पिछली बार 5751 वोट से आकाश विजयवर्गीय की जीत हुई थी। इस बार मात्र 3020 वोट ज्यादा ही डले है। यानी यह सीट फंसी हुई है। विधानसभा पांच में भी महेन्द्र हार्डिया की जीत का अंतर मात्र 1133 था लेकिन इस बार 37523 वोट ज्यादा मतदान हुआ है। महू में पिछली बार 7157 वोट से उषा ठाकुर ने जीत हासिल की थी लेकिन इस बार 23250 वोट ज्यादा मतदान हुआ है। वहीं दूसरी ओर राऊ में जीतू पटवारी की जीत का अंतर मात्र 5703 था लेकिन इस बार रिकॉर्ड 58320 वोट ज्यादा गिरे हैं।

मुख्य चुनाव में यहां से तुलसी सिलावट 2945 वोट से जीते थे लेकिन उपचुनाव में जीत का अंतर 53264 हो /गया था। इस बार 44225 वोट ज्यादा गिरे हैं।