स्वतंत्र समय, इंदौर
हुकुमचंद का हक तीस बरस से ज्यादा वक्त बाद भी नहीं मिल पाया है। इस बार उम्मीद जागी कि दीपावली के पहले ठीक ढंग से त्योहार मन जाएगा लेकिन मामला गड़बड़ा गया। कोर्ट के सामने सरकार ने चुनाव की आड़ ले ली। अच्छी बात यह है कि इस बार कोर्ट सख्त है और मामला जमीन की नीलामी तक पहुंच गया है। हालांकि नीलामी बड़ा पेचीदा रास्ता है और सरकार भुगतान करने में पीछे हटेगी तो इसमें समय लग सकता है। ऐसे में 28 नवंबर की सुनवाई में मजदूर यही सुनना चाहेंगे कि हाउसिंग बोर्ड कितने समय में और कितनी किश्त में मजदूरों के बकाया का ब्याज सहित भुगतान करेगा। हुकुमचंद मिल के 5 हजार 895 मजदूरों के भुगतान की प्रक्रिया उलझ भी सकती है।
मप्र गृह निर्माण मंडल के लिए आचार संहिता के दौरान चुनाव आयोग से मिल मजदूरों के भुगतान के लिए अनुमति प्राप्त करना आसान नहीं होगा। यह अनुमति नहीं मिली तो 29 नवंबर को होने वाली सुनवाई में कोर्ट उस समझौते को निरस्त कर सकती है जिसमें शासन, मप्र हाउसिंग बोर्ड, नगर निगम, मजदूर संघ सहित अन्य देनदारों ने सहमति जताई थी। मप्र हाउसिंग बोर्ड ने मजदूरों के 174 करोड़ रुपए और इस रकम पर 50 करोड़ रुपए ब्याज इस तरह 224 करोड़ रुपए के भुगतान सहित अन्य देनदारों के भुगतान करना है। कोर्ट ने मप्र गृह निर्माण मंडल से कहा है कि वह 28 नवंबर तक अनिवार्य रूप से चुनाव आयोग से मजदूरों के भुगतान की अनुमति प्राप्त कर ले, ऐसा नहीं करने पर कोर्ट उक्त समझोता निरस्त कर सकती है। ऐसे में नीलामी का रास्ता बन सकता है।