स्वतंत्र समय, इंदौर
इंदौर में जाम जिस तरह सुबह, शाम और दिन में लोगों का बीपी बढ़ा रहा है, उसमें सबसे बड़ा कारण सडक़ों की कम चौड़ाई भी है। तमाम व्यवधान और अतिक्रमण हटाने के बावजूद समस्या जस की तस है। समय के साथ वाहनों का काफिला तेजी से बढ़ा है। इंदौर में शुरुआती दौर में ही सडक़ें संकरी बनी और अब इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। अब रोटरियों को हटाने से भी इस वजह से फायदा होता नहीं दिख रहा है। मध्यप्रदेश के दीगर शहरों की बात करें तो यहां पर्याप्त चौड़ी सडक़ें हैं जिससे वाहन चालक जाम में नहीं उलझते। वहीं शहर में सिटी बस घने इलाकों में भी पहुंच रही है जिससे जाम लग रहा है। जाम के हालात के बीच यह भी सच्चाई है कि इंदौर में तेजी से वाहन बढ़ रहे हैं, शहर की आबादी व वाहनों के अनुपात के लिहाज से प्लान बनाने में इंदौर कमजोर रहा है। इस लिहाज से मध्यप्रदेश के चार अन्य महानगरों की बात करें तो वहां पर सडक़ों के साथ ही शहर का व्यवस्थित नियोजन नजर आता है। वहीं इंदौर ने अपनी बढ़ती आबादी की समय रहते चिंता की होती है तो आज ट्रैफिक वेंटिलेटर पर नहीं होता।
भोपाल की बसाहट व्यवस्थित
अब बात प्रदेश की राजधानी की करें तो यहां पर चौड़ी सडक़ें स्वागत करती हैं। नवाबों के समय से ही भोपाल की बसाहट व्यवस्थित रही है। इस कारण यहां पर जाम की समस्या इंदौर की तरह नहीं है। मंत्रियों के जमघट और वीआईपी कल्चर वाले भोपाल में इंदौर जैसा कुख्यात जाम नहीं है। यहां शाम के समय दुकानों की वजह से जरूर जाम लग रहा है लेकिन नगर नियोजन और सडक़ें व्यवस्थित हैं।
जबलपुर में वाहनों का दबाव कम
जबलपुर की बात करें तो यहां वाहनों का दबाव इंदौर जैसा नहीं है। ओमती जैसे इलाकों व शहर के मध्य को छोड़ दें तो बाकी स्थानों पर सुविधाजनक ढंग से आया जा सकता है। यहां भी सडक़ें पर्याप्त चौड़ी हैं और शहर को इस ढंग से बसाया गया है कि सडक़ें आपस में जुड़ी हुई हैं और अजनबी भी रास्ता नहीं भटक सकता।
ग्वालियर को रियासत का फायदा
सिंधिया घराने के ग्वालियर को रियासत काल का फायदा नगर नियोजन में मिला। यहां भी सडक़ें व्यवस्थित हैं और बढ़ती आबादी का दबाव झेलने में सक्षम है। यहां पर जाम के हालात इतने विकट नहीं हैं जैसे इंदौर में इन दिनों देखने को मिल रहे हैं। रियासतकालीन नियोजन प्लान सही होने से यातायात का संचालन सही हो रहा है। इंदौर में सडक़ों की बात करें तो अव्वल नियोजन सही नहीं हुआ। देर से किया भी गया तो उसका फायदा न वाहन चालकों को मिला और न शहर को। कई सडक़ें चौड़ीकरण के बाद भी जाम बढ़ाने में ही सहायक साबित हो रही हैं। इसकी बानगी कुछ यूं देखिए—
तीन साल से यहां राजनीति में उलझी सड़क
जिंसी चौराहे से रामबाग चौराहा तक सडक़ को 100 मीटर चौड़ी करने का प्रस्ताव तीन साल से धूल खा रहा है। यहां पर मार्किंग भी हो चुकी है लेकिन दुकानदारों और रहवासियों के विरोध के साथ ही जनप्रतिनिधियों के दखल से काम नहीं हो पा रहा है। यहां 250 से ज्यादा निर्माण बाधक हैं।
20 साल से सड़क निर्माण अटका, सात याचिकाएं लगीं
20 सालों से मनीषपुरी चौराहा से रिंग रोड तक सडक़ का निर्माण रुका है। सडक़ की चौड़ाई को लेकर मामला हाई कोर्ट तक पहुंचा। बीआरटीएस रोड को रिंग रोड तक जोडऩे वाली यह शहर की ऐसी सडक़ है, जिसकी मास्टर प्लान में चौड़ाई अलग-अलग है। गिटार चौराहा से साकेत नगर चौराहा तक सडक़ 80 फीट चौड़ी बन चुकी है। उससे आगे मनीषपुरी चौराहे से रिंग रोड तक सडक़ की मास्टर प्लान में चौड़ाई 40 फीट है। सात रहवासियों ने अलग-अलग याचिकाएं लगा रखी हैं।
महत्वाकांक्षी सड़क जिस पर दुकानदारों का कब्जा
गंगवाल से सरवटे बस स्टैंड को कनेक्ट करने की कवायद बरसों से चल रही है और इस कारण कड़ावघाट के पीछे मच्छी बाजार चौराहे से कागदीपुरा तक सडक़ चौड़ीकरण किया गया। कई बाधक निर्माण हटाए गए। सडक़ चौड़ी भी हो गई लेकिन इसका फायदा कबाडिय़ों व अतिक्रमणकारियों को मिल रहा है।
राजबाड़ा से कृष्णपुरा तक चौड़ीकरण लेकिन फायदा नहीं
राजबाड़ा से कृष्णपुरा की ओर जाने वाले वाहन अक्सर उलझते हैं। इस समस्या को बरसों बाद नोटिस किया गया। नतीजतन इस सडक़ का चौड़ीकरण किया गया। इसका फायदा फुटपाथ पर धंधा करने वालों को मिला और स्थिति आज भी नहीं सुधरी है। इस रूट से सिटी बस, कार आदि समेत भारी ट्रैफिक का दबाव रहता है।