महत्वपूर्ण होगी mahashivratri 2023 , दीपों से सजेगा उज्जैन , निशिता काल पूजा की समय अवधि 50 मिनट रहेगी।
mahashivratri 2023 हिन्दू धर्म में कई तरह के पर्व होते है, इसमें से एक पर्व महाशिवरात्रि का होता है, महाशिवरात्रि सभी 12 शिवरात्रियों में से सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण शिवरात्री होती है. हर साल फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि पर इसे मनाया जाता है। कहा जाता है की संसार का आरम्भ इसी दिन से हुआ था। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाति है.भक्तजन व्रत रख भगवान शिव की अराधना करते है. भजन गाये जाते है,रात्रि जागरण किया जाता है.
महाशिवरात्रि का त्यौहार प्रमुख रूप से देवो के देव महादेव के लिए समर्पित है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन को लेकर कई मान्यताएं और कथाएं है। तो आइये जानते है हम महाशिवरात्रि क्यों मनाते हैं?
शिवजी का अग्नि-स्तंभ रूप
कहा जाता है की फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन शिव जी एक शिवलिंग के अवतार में प्रकट हुए थे। वो शिवलिंग करोडो सूर्य के समान प्रभावी था। हुआ ये था की जब इस संसार की रचना हुई तब भगवान विष्णु और ब्रम्हा जी में एक बहस छिड़ गई थी की उन दोनों में से आखिर सर्वश्रेष्ठ कौन है। तभी करोडो सूर्य के समान तेज वाला एक बहुत विशाल अग्नि स्तम्भ शिवलिंग प्रकट हुआ। जिसे देखकर भगवान विष्णु और ब्रम्हा जी दोनों ही आश्चर्य में पड़ गए, उन्होंने इस स्तम्भ का पता लगाने की भी बहुत कोशिश की पर वे दोनों सफल नही हो पाए, क्योकि अग्नि स्तम्भ का ना तो कोई अंत था ना कोई आरम्भ। इसके बाद भगवान भोले भंडारी ने उस अग्नि स्तम्भ(शिवलिंग) से सबको दर्शन दिए। तब से ही पहली शिवरात्रि का आरम्भ हुआ था।
शिव-पार्वती विवाह
पौराणिक कथाओ के अनुसार mahashivratri के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, इसी दिन माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाया था. इसी दिन भगवान शिव का वियोग ख़त्म हुआ था, यह दिन शिवजी के लिए बेहद प्रिय है। इस दिन भारत में कई जगह शिव जी की बारात भी निकलती है।
समुद्र मंथन
समुद्र मंथन अमर अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित था, लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष भी पैदा हुआ था। हलाहल विष में ब्रह्माण्ड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कण्ठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव बहुत दर्द से पीड़ित हो उठे थे और उनका गला बहुत नीला हो गया था। इस कारण से भगवान शिव का एक नाम ‘नीलकंठ’ भी पड़ा।
उपचार के लिए, चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। इस प्रकार, भगवान शिव के चिन्तन में एक सतर्कता रखी, शिव का आनन्द लेने और जागने के लिए, देवताओं ने अलग-अलग नृत्य किये और संगीत बजाया, जैसे ही सुबह हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया। शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने दुनिया को बचाया। तब से इस दिन, भक्त उपवास करते है, और संगीत,नृतय के साथ भजन होते है |
शिव और शक्ति का मिलन
शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है इस बात से कई पौराणिक कथाये जुडी हुई है। कहा जाता है की इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का मिलन हुआ, जिससे सृष्टि का आरम्भ हुआ था। इसलिए यह दिन बहुत खास और महत्वपूर्ण माना जाता है। आपको बतादे की वर्ष में 12 शिवरात्रि आती है, किन्तु 12 शिवरात्रि में पूजा करने से जो फल प्राप्त होता है वह फल यदि mahashivratri के दिन पूरी विधि विधान से पूजा पाठ किया जाये तो एक दिन में ही प्राप्त हो जाता है।
64 जगहों पर उत्पन्न हुए थे शिवलिंग
एक पौराणिक मान्यता की माने तो उसके अनुसार शिवरात्रि के दिन अलग अलग 64 जगहों पर शिवलिंग प्रकट हुए थे। इनमे से केवल 12 ज्योतिर्लिंगों की जानकारी उपलब्ध है।
कैसे भगवान शिव को प्रसन्न करें
ऐसा कहा जाता है कि भगवान भोले भंडारी को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है, इसलिए ही तो उन्हें भोले नाम दिया गया है। जो भी भक्त पुरे मन से भगवान भोले को याद करता है वो हर संकट से दूर रहता है। भगवान भोले जी को याद करने उनकी आराधना करने के लिए mahashivratri का दिन सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।
शिवरात्रि के दिन सबसे पहले स्नान कर खुद को शुद्ध करे उसके बाद उपवास का संकल्प ले। पूजा पाठ शुरू करने से पहले माथे पर त्रिपुंड लगाना ना भूले। त्रिपुंड लगाने के लिए हाथ की तीनो उंगलियों पर विभूत लगाए और माथे पर बाए से दांये की तरफ लगाए। पूजा करने के लिए सबसे पहले कलश में पानी भरकर शिवजी भगवान का जल अभिषेक करे। इसके बाद दूध, दही, शहद और घी से भी अभिषेक करे।
इसके बाद पूजा सामग्री जैसे की अक्षदा, चन्दन, इत्र, बेल पुष्प, चावल आदि चढ़ाये। यह सामग्री चढ़ाते वक्त ओम नम: शिवाय का जाप जरुर कीजिए। इसके पश्चात दीपक और धुप बत्ती से भगवान की आरती उतारे। भगवान जी को फलो का प्रसाद चढ़ाये। पूजा होने के बाद शिव जी के मंत्रो का जाप करते हुए उनके सामने बैठे। शिवरात्रि के दिन शिव चालीसा पढ़ने से भी आपको अच्छा लाभ प्राप्त होता है।अगर आपके घर के आस पास शिव जी मंदिर नहीं है तो कोई बात नहीं आप घर पर ही मिटटी का शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा पाठ कर सकते है। इस तरह से पूजा करने से भगवन शिव जरुर प्रसन्न होगे.
mahashivratri पर 18 लाख दीपों से सजेगा महाकाल लोक
mahashivratri पर्व पर उजैन में 18 लाख दीप प्रज्वलित किये जायेगे. यह दीपोत्सव कार्यक्रम पिछले साल से शुरू किया गया था. महाशिवरात्रि के पर्व पर महाकाल लोक मंदिर, चिंतामणि गणेश मंदिर, मंगलनाथ मंदिर, शिप्रा नदी सहित सभी धार्मिक और सार्वजानिक स्थलों पर दीप प्रज्वलित किये जाते है. यही नही घरो में भी दीपक जलाकर हजारो लोग इस उत्सव में शामिल होते है.
उज्जैन कलेक्टर कुमार पुरुषोतम का कहना है कि इस साल उज्जैन में 18 लाख दीपक जलाने का लक्ष्य तय किया गया है, इसके लिए सभी स्थानों पर तैयारीयां शुरू कर दी गई है. महाशिवरात्रि के पर्व पर सभी स्थानों पर 18 लाख दीप जलाकर, धार्मिक नगरी उज्जैन का नाम गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हो जायेगा.
mahashivratri पूजन मुहूर्त
महाशिवरात्रि पूजा मुहूर्त 2023
हिंदू पंचांग के अनुसार 18 फरवरी 2023, शनिवार के दिन महाशिवरात्रि का त्यौहार मनाया जाएगा।
निशिता काल पूजा : 19 फरवरी को तड़के 12:16 से 1:06 तक रहेगा।
निशिता काल पूजा की जो समय अवधि 50 मिनट रहेगी।
महाशिवरात्रि पारण मुहूर्त:19 फरवरी, रविवार प्रातः 06:57 मिनट से दोपहर 03: 33 मिनट तक
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय: सायं 06: 30 मिनट से रात्रि 09:35 मिनट तक
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय: रात्रि 09:35 मिनट से तड़के 12:39 मिनट तक
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय: 19 फरवरी, रविवार, तड़के 12:39 मिनट से 03:43 मिनट तक
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा का समय: 19 फरवरी, रविवार, प्रातः 3:43 मिनट से 06:47 मिनट तक