स्वतंत्र समय, भोपाल
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए 17 नवंबर को वोटिंग हो चुकी है। ईवीएम में मध्यप्रदेश का भविष्य कैद हो चुका है, लेकिन जिस तरह के रुझान अलग-अलग माध्यमों से निकलकर आ रहे हैं, वो बता रहे हैं कि इस बार भी 2018 जैसे रिजल्ट सामने आ सकते हैं। अगर ऐसे रिजल्ट आए तो फिर 2018 के जैसे हालात मप्र में क्या बन सकते हैं।
कांग्रेस और बीजेपी दोनों को ही पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो क्या मध्यप्रदेश एक बार फिर से ऑपरेशन लोटस दिखाई दे सकता है। इन सभी अटकलों के बीच कमलनाथ ने कांग्रेस के सभी 230 प्रत्याशियों की बैठक बुला ली है। कमलनाथ ने सभी प्रत्याशियों को 26 नवंबर को भोपाल स्थित पीसीसी कार्यालय बुला लिया है। वजह बताई जा रही है कि इन प्रत्याशियों और अन्य नेताओं को मतगणना की ट्रेनिंग दी जाएगी। लेकिन कांग्रेस सूत्र बता रहे हैं कि ट्रेनिंग के बाद सभी प्रत्याशियों को कमलनाथ शपथ दिलवाएंगे कि चुनाव में जीतने के बाद वे किसी कीमत पर कांग्रेस छोडक़र नहीं जाएंगे और न ही विरोधी पार्टी के किसी प्रलोभन के चक्कर में फंसेंगे।
ईवीएम की निगरानी में दिनरात जुटे कांग्रेसी
कांग्रेस कार्यकर्ता हर जिले में लगातार ईवीएम की निगरानी कर रहे हैं। हर जिले में जो स्ट्रांग रूम हैं, उनके बाहर कांग्रेसी नेताओं के तंबू लगे हुए हैं, जहां शिफ्ट लगाकर कांग्रेसी कार्यकर्ता ईवीएम की निगरानी कर रहे हैं, लेकिन कमलनाथ को इस बात का भी डर है कि रिजल्ट सामने आने के बाद बीजेपी किसी तरह की गड़बड़ी कर सकती है। इसलिए अपने प्रत्याशियों को हर स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहने की बात कमलनाथ उनको बताना चाहते हैं और उनसे ये भरोसा चाहते हैं कि चुनाव जीतने के बाद इनमें से कोई भी प्रत्याशी कांग्रेस के साथ दगा नहीं करेगा और हर हाल में कांग्रेस पार्टी के साथ खड़ा रहेगा। इसलिए 26 नवंबर को सभी 230 प्रत्याशियों को कमलनाथ ने पीसीसी ऑफिस आने का बुलावा भेजा है।
2018 में कांग्रेस 114 व बीजेपी 109 सीटें जीती
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 114, बीजेपी को 109, बसपा को दो, सपा को एक और चार सीटें निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे। इसके बाद कमलनाथ की सरकार बनी, लेकिन ये सरकार 15 महीने ही गिरा दी गई। सिंधिया गुट के साथ कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के विवाद इतने बढ़े कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस की सरकार गिरा दी और अपने समर्थक मंत्री-विधायकों के साथ वे खुद बीजेपी में शामिल हो गए। इसके बाद 2020 में उपचुनाव हुए और बीजेपी की सरकार बनी। कमलनाथ और कांग्रेस ने आरोप लगाए कि बीजेपी ने उनके विधायकों को कई करोड़ रुपए में खरीदकर ये सरकार बनाई और चुनी हुई कांग्रेस सरकार को गिराया। बीजेपी इन आरोपों को निराधार बताती है और कमलनाथ और कांग्रेस पर भ्रष्ट सरकार चलाने के आरोप लगाती है।