मंत्रालय के अंग प्रत्यर्पण विभाग ने की अपोलो अस्पताल की जांच शुरू

स्वतंत्र समय, नई दिल्ली

अपोलो (इंद्रप्रस्थ) अस्पताल पर किडनी की सौदेबाजी का आरोप लगने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने जांच के आदेश दे दिए हैं। मंत्रालय के अंग प्रत्यर्पण (एनओटीटीओ) विभाग ने जांच शुरू कर दी है। जांच विभाग के मुखिया डॉ. अनिल कुमार ने हफ्ते भर के अंदर रिपोर्ट देने की बात कही है। अपोलो अस्पताल और डॉ. संदीप गुलेरिया पर किडनी फॉर कैश का आरोप लगा है। म्यामां के गिरोह की मिलीभगत भी बताई गई है। गरीबों से पैसे के बदले किडनी ली जाती है और अमीरों को बेच दी जाती है। अस्पताल ने इन सब आरोपों से इंकार कर दिया है। उनका इशारा है कि ये सब छवि बिगाडऩे और ब्लैकमेलिंग की कोशिश है। अंग बदलना या किसी और मामले में पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हैं।

अस्पताल ने खारिज किए आरोप 

अपोलो हॉस्पिटल्स ने यह आरोप खारिज किया था। इसने कहा था कि हम सरकारी दिशानिर्देशों के साथ ट्रांस्प्लांट के लिए सभी कानूनी और नैतिक जरूरतों का पालन करते हैं। अस्पताल के एक प्रवक्ता ने कहा कि किडनी दान करने वाले हर विदेशी व्यक्ति के लिए अपनी सरकार से सर्टिफिकेशन प्रस्तुत करना जरूरी होता है।अस्पताल किडनी ट्रांस्प्लांट के लिए सख्त प्रक्रिया का पालन करता है। इसमें किडनी दान करने वाले व्यक्ति की ओर से फॉर्म 21 जमा करना भी शामिल है जो विदेशी सरकार की ओर से प्रमाणित किया जाता है। उन्होंने कहा कि अस्पताल की ट्रांस्प्लांट ऑथराइजेशन कमेटी हर मामले में दस्तावेजों की समीक्षा करती है, इंटरव्यू आयोजित करती है और संबंधित एंबेसी से दस्तावेज सत्यापित करती है।

विदेशी अखबार में किया गया दावा

ब्रिटेन के अखबार द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अंगों का व्यापार गैरकानूनी है लेकिन फिर भी यह देश में एक बड़ा कारोबार बन गया है। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि यहां म्यांमार के गरीब लोगों को पैसे देकर किडनी बेचने का काम हो रहा है। रिपोर्ट में इससे जुड़े एक मामले का जिक्र भी किया गया है। इसके अनुसार 58 वर्षीय एक महिला ने सितंबर 2022 में किडनी के लिए 80 लाख म्यांमार क्यात का भुगतान किया था। दावा किया गया।

क्या कहता है कानून?

भारत में कानून भारतीय कानून के तहत अंग प्रत्यारोपण और दान की अनुमति दी गयी है लेकिन इसके अवैध खरीद-ब्रिकी की नहीं। भारत सरकार ने मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 के तहत जीवित और मृत मस्तिष्क वाले डोनर द्वारा पहले से अंगदान की अनुमति है। जबकि, वर्ष 2011 में अधिनियम के संशोधन के जरिए मानव टिशू (ऊतकों) के दान को इसमें शामिल किया गया है। इसलिए यह अब ऊतक और अंग प्रत्यारोपण अधिनियम 2011 कहलाता है। फिलहाल भारत में मानव अंगों के गैर-कानूनी कारोबार के लिए 5 से 10 साल तक की कैद और ?20 लाख से ?1 करोड़ तक के जुर्माने के प्रावधान हैं। जबकि मानव टिशू का कारोबार करने पर एक से तीन साल की कैद और 5 से 25 लाख तक के जुर्माने की सजा है।