शहर का मुद्दा, ट्रैफिक में हम स्मार्ट नहींः प्रदर्शन, हंगामे, रैलियां और आयोजनों की भेंट चढ़ा शहर का यातायात

स्वतंत्र समय, इंदौर

आर्थिक राजधानी को तमगे तो ढेरों मिले हैं, क्लीन सिटी, ग्रीन सिटी, स्वच्छता का सिक्सर लगाने वाली सिटी, स्मार्ट सिटी….लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि ट्रैफिक की स्मार्टनेस में जीरो है यह कास्मोपोलिटियन सिटी। हाईटेक युग और 2023 के गुजरते साल में कलेक्टर साहब फरमान जारी कर रहे हैं कि लगातार रेड सिग्नल जंप किया तो ड्राइविंग लाइसेंस हमेशा के लिए खत्म किया जा सकता है। यह फरमान साबित करता है कि ट्रैफिक के सबसे बेसिक यानी आधारभूत नियम में शहर किस हद तक सिफर है। ऐसे फरमान शहर की शुचिता, संस्कार और सभ्यता को हाशिये पर ला देते हैं। गुरुवार को करणी सेना के प्रदर्शन ने शहर के ट्रैफिक को रेंगने पर मजबूर किया। प्रदर्शनों में मांगें वाजिब हैं और प्रदर्शनकारियों का सडक़ पर उतरना बताता है कि वे अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन सच्चाई यह है कि क्या इसके पहले उन्हें अपना लोकतांत्रिक फर्ज याद भी आया? अगर यह वाकई याद होता तो उन्हें सडक़ पर चलने वाले लाखों वाहन चालकों की रोजमर्रा की जिंदगी, उनके उतार-चढ़ाव, मरीजों का मर्ज, लाखों लोगों के कामकाज का बोझा और शहर का कर्ज और फर्ज भी याद रहता है।

अनियंत्रित ट्रैफिक ये हुईं परेशानियां…

  • एयरपोर्ट व उज्जैन रोड जाने वालों को सुबह 11 बजे से लंबे जाम का सामना करना पड़ा।
  • प्रदर्शन के चलते ट्रैफिक करीब 3 घंटे तक रेंगता रहा।
  • प्रदर्शन में महिलाएं भी बड़ी संख्या में मौजूद रहीं जिस वजह से पुलिस प्रशासन भी बेबस रहा, सख्ती नहीं दिखा सके।

बेहतर होता कि सडक़ पर हंगामे की बजाय मौन रैली या मौन शिविर का सहारा लिया जाता। जहां बुलंद आवाजें काम नहीं करतीं, वहां खामोश तख्तियां, इबारतें भी चीखने का माद्दा रखती हैं। प्रदर्शन, रैलियां, आयोजन लोकतंत्र के अधिकार हैं लेकिन अगर शहर के नागरिक ही इससे बेबस हो जाएं तो ऐसा अधिकार असल में अत्याचार है। यहां अधिकार वास्तव में चंद संगठनों, समूह या लोगों का एकाधिकार  बन जाता है। फिर इसे लोकतंत्र कहना भी गलत होगा।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, धरने-प्रदर्शन में नहीं करें रास्ता जाम

दो साल पहले देश की सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली और नोएडा के बीच होने वाले कुख्यात जाम के मद्देनजर टिप्पणी की थी कि धरना प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक सडक़ों को अवरुद्ध नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह टिप्पणी नोएडा की रहने वाली महिला मोनिका अग्रवाल ने याचिका पर सुनवाई के दौरान की थी। वहीं कोर्ट ने नोएडा से दिल्ली जाने में 20 मिनट के बजाए दो घंटे लगने की शिकायत पर केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया था। इसके अलावा गाजियाबाद कौशांबी की यातायात अव्यवस्था पर उत्तर प्रदेश और दिल्ली के उच्च अधिकारियों की नौ सदस्यीय कमेटी गठित करते हुए कमेटी से ट्रैफिक मैनेजमेंट प्लान मांगा था।

मांग भी अजब, एनकाउंटर किया जाए

राजपूत करणी सेना के संभाग अध्यक्ष किशोर सिंह सिकरवार ने कहा कि हमारी प्रशासन से मांग है कि गोगामेड़ी की हत्या में जो भी शामिल हों उनका एनकाउंटर होना चाहिए। यदि ये नहीं हुआ तो आंदोलन प्रदेश स्तर पर करेंगे। श्री राजपूत करणी सेना के प्रदेश संगठन महामंत्री दिग्विजयसिंह सोलंकी ने कहा कि हमने हमारा भाई खोया है। पर इसका मतलब ये नहीं कि हम निहत्थों की जान ले लें। हमारी मांगें नहीं मानी गईं तो आंदोलन और भी उग्र होगा। जिला अध्यक्ष अनुराग प्रताप राघव की अधिकारियों से बात हुई। उन्होंने कहा कि अगर 72 घंटे में आरोपी नहीं पकड़े गए तब तक यह हमारा आंदोलन जारी रहेगा। 73वां घंटा हमारा होगा आरोपी कहीं भी हो हम उसे मार देंगे। अभी हमारा यह आंदोलन चरणबद्ध अलग-अलग शहरों में जारी रहेगा।