विपिन नीमा, इंदौर
मप्र का मुख्यमंत्री कौन बनेगा? इस सवाल से पर्दा उठने में अभी कम से कम 59 घंटे और प्रदेश की जनता को इंतजार करना पड़ेगा। सोमवार को होने वाली विधायक दल की बैठक के लिए हाईकमान द्वारा नियुक्क तीन पर्यवेक्षक रविवार को भोपाल पहुंच रहे है। यह बैठक सिर्फ औपचारिक ही होगी, क्योंकि नाम का ऐलान तो सीधे दिल्ली से होंगा। 11 दिसम्बर को सुबह 11 बजे मुख्यमंत्री का सस्पेंस खत्म हो जाएंगा, लेकिन इस समय मुख्यमंत्री के नामों को लेकर जिस तरह से चर्चाएं चल रही है उससे प्रदेश की राजनीति पूरे उफान पर है। पिछले तीन दिनों से भाजपा के शीर्ष नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा मुख्यमंत्री के नाम पर लगातार मंथन कर रहे है। बताया गया है की मुख्यमंत्री का चयन अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को देखकर किया जाएंगा, क्योंकि जो भी मुख्यमंत्री बनेगा उसकी पहली और सबसे बड़ी चुनौती लोकसभा चुनाव ही होगी, क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की 29 सीटों में 28 सीटें जीती थी। इस समय प्रदेश में सरकार का सरदार कौन होगा इसके लिए पांच नाम चल रहे है इनमें मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटेल के नाम शामिल है। अब देखना यह है की किसके सिर पर ताज होगा। विशेषज्ञों के मुताबिक मुख्यमंत्री के लिए जो प्रबल दावेदार माने जा रहे है उनमें पहले तीन नाम ज्यादा चर्चा में है।
सीएम की रेस में शिवराज – महाराज – कैलाश – रीति
विधानसभा चुनाव नतीजे स्पष्ट होने के बाद से ही मुख्यमंत्री की रेस प्रारंभ हो चुकी है। राष्ट्रीय और राज्य स्तर के सभी राजनैतिक विशलेषक, विशेषज्ञ, वरिष्ठ राजनैतिक सम्पादक, राजनैतिक के जानकार , वरिष्ठ नेतागणों के अलावा टीवी चैनलों पर भी इसी विषय पर बहस चल रही है। सभी अपने अपने घोड़े दौड़ा रहे है। सिंगल या परफेक्ट नाम किसी के पास नहीं है। नमो (नरेंद्र मोदी )और अशा (अमित शाह) के पिटारे से ही मुख्यमंत्री का नाम निकलेगा। नमो और अशा बार बार मुख्यमंत्री के दावेदार शिवराजसिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कैलाश विजयवर्गीय, रीति पाठक , नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटेल लगातार दिल्ली बुला रहे है। पार्टी हाईकमान ने मुख्यमंत्री के चयन के लिए पर्यवेक्षक की टीम भोपाल भेज दी है। जो विधायक दल की बैठक लेकर अपनी रिपोर्ट हाईकमान को सौंपेगे। बताते है की कैलाश विजयवर्गीय का नाम तेजी से इसलिए आया है की हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर मप्र में पर्यवेक्षक बनकर आ रहे है। वरिष्ठ नेता खट्टर कैलाश विजयवर्गीय से बहुत अच्छी तरह से वाकिफ है और दोनों साथ साथ काम भी कर चुके है। इसलिए कैलाश का नाम थोड़ा उपर आ गया है।
नए सीएम को लोस चुनाव की बड़ी जिम्मेदारी
राजनीतिक विश्लेषकों के साथ-साथ प्रदेश की आम जनता भी लगातार यही कयास लगा रही है कि आखिर कौन बनेगा मुख्यमंत्री। मुख्यमंत्री की दौड़ में जो नाम चल रहे हैं उनमें सबसे ऊपर नाम शिवराज सिंह चौहान का है। इसके बाद ज्योतिराज सिंधिया फिर कैलाश विजयवर्गीय। विशेषज्ञों का मानना है की मुख्यमंत्री के चयन में इसलिए देरी हो रही है की, क्योंकि अगले साल लोकसभा चुनाव होने है और लोकसभा चुनाव को देखते ही मुख्यमंत्री का चयन होगा। याद होगा 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सुनामी एवं करिश्माई नेतृत्व के चलते भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश की कुल 29 सीटों में से 28 सीट पर कब्जा कर ऐतिहासिक जीत दर्ज की है, जबकि कांग्रेस केवल एक सीट छिन्दवाड़ा पर ही सिकुड़ गई है। यह प्रदेश में भाजपा का अब तक का सबसे बेहतर प्रदर्शन है।
लाड़ली बहना योजना को भूल गई भाजपा
प्रदेश में जिस तरह से भाजपा की सुनामी आई है उसके पीछे लाडली बहना योजना बताई जा रही है। भाजपा ने अपना पूरा चुनाव लाडली बहना मुद्दे को आधार बनाकर लड़ा था और योजना से भाजपा को ऐतिहासिक सफलता मिली। अब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कौन बैठेगा को लेकर चर्चा तो तेजी चल रही है, लेकिन पार्टी स्तर पर यह कहीं भी इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हो रही है की भाजपा ने लाडली बहना योजना पर चुनाव जीता है। इसमें कोई शक नहीं है की मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ही एकमात्र ऐसे थे जो लाडली बहना योजना को पूरे दमखम के साथ महिलाओं के बीच ले गए थे। इस योजना का लाभ पूरी पार्टी को मिला, लेकिन इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं कर रहा है।
पर्यवेक्षक की नियुक्ति में दिखा जातीय संतुलन
पर्यवेक्षकों की नियुक्ति में जातीय संतुलन के साफ देखा जा सकता है। बीजेपी ने मध्यप्रदेश के लिए पंजाबी खत्री समुदाय से ताल्लुक रखने वाले सामान्य वर्ग के मनोहर लाल खट्टर के साथ ही ओबीसी नेता के. लक्ष्मण और आदिवासी नेता आशा लकड़ा को मुख्यमंत्री चयन के लिए पर्यवेक्षक बनाया है। तीनों नेता विधायक दल की बैठक लेकर मुख्यमंत्री का चयन करेंगे।