राजेश के साथ
राजनीति की बात…
‘फिल्म पलकों की छांव के एक गाने जैसी हालत हो गई है भाजपा के मुख्यमंत्री के दावेदारों की।’ गाने के बोल हैं…डाकिया डाक लाया..डाक लाया। खुशी का पयाम कहीं दर्दनाक लाया… डाकिया डाक लाया।
मध्य प्रदेश हो या छत्तीसगढ़ या राजस्थान तीनों जगह दावेदार डॉकिए यानी पर्यवेक्षक का इंतजार कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री का संदेशा लाया… डाकिया डाक लाया।
खत लिखा है पार्टी के बापजी ने, डाक पर लिखा है व्यक्तिगत डाक। तीनों राज्यों के मुख्यमंत्री के पद के दावेदार एक और फिल्म आपकी कसम के गाने की तरह हैरान परेशान हैं।
दावेदार गा रहे हैं, करवटें बदलते रहे सारी रात हम…आपकी कसम ।
गम न करो दिन जुदाई के ( मुख्यमंत्री की कुर्सी) बहुत हैं कम आपकी कसम। मुख्यमंत्री की कुर्सी याद आती रहे, एक हुक सी उठती रही। नींद मुझसे, नींद से मैं भागता छुपता रहूं, रातभर बैरन निगोड़ी चांदनी ( मुख्यमंत्री की कुर्सी ) चुभती रही। आग सी जलती रहे, मिल जाए कुर्सी, आपकी कसम।
दावेदार न सो पा रहे हैं और न खा पा रहे हैं। उम्मीदों के सपने संजोकर जो बधाई देने आ रहा है, उससे बधाई ले रहे हैं। मन में छुपे कुर्सी के दर्द के बाद भी हंसते हुए हार फूल और माला से स्वागत करवा रहे हैं। सारे दावेदार ‘एक हसीना थी’ वो के तर्ज पर झूम रहे हैं कि आखिर कुर्सी किसको मिलेगी। वैसे तो राजनीति में हर कुसी के लिए नेता चप्पल चटकाते हैं और बापजी की उम्र से भी छोटे नेता को दंडवत करते दिखते हैं। कुर्सी ने इतना परेशान कर दिया है कि सारे दावेदारों के परिवार और दुमछले पूजा-पाठ करवाने में लगे हैं। दिल्ली में बैठे बापजी किस बेटे को ज्यादा प्यार देंगे। इसका फैसला होना बाकी है। बाकी बेटों को उप मुख्यमंत्री और मंत्री की गोली-बिस्कुट दे देंगे, जितने दावेदार तीनों राज्यों में हैं, वे दावेदार भी एक-दूसरे को ‘मुंह में राम बगल में छुरी’ की तर्ज पर एक-दूसरे से दांत दिखाते हुए ठहाका लगा रहे हैं। वैसे राजनीति में दोगलों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, पर यहां तो बापजी का क्या करें पता नहीं। बापजी ने क्या सोच रखा है। डाकिया यानी पर्यवेक्षक जब बंद चिट्ठी लाएगा तो पता नहीं किस दावेदार का नाम निकलेगा। वो भी डाकिया बड़ा चालू है, वो अकेले में चिट्ठी नहीं देगा। पूरे गांव (विधायक दल की बैठक) की जनता के सामने सुना देगा कि मुख्यमंत्री की कुर्सी किसे मिलेगी। चुनाव में पैसे देकर वोट खरीदे जा सकते हैं, लेकिन बापजी के डाकिये की चिट्ठी में लिखा नाम कोई नहीं बदलवा सकता। अभी तो बापजी ने चिट्ठी लिखी भी नहीं है और यह दो दिन बाद लिखी जाएगी। चिट्ठी में किस लाड़ले बेटे का नाम होगा, इसका अंदाजा सब हवा-हवाई में लगा रहे हैं। दावेदारों का बस चले तो सबके सब डाकिये को सेट कर सकते हैं, लेकिन डाकिये की भी ये हिम्मत नहीं है कि वह विधायक दल की बैठक के पहले चिट्ठी खोल सके। जैसे गुजरात में सारे दावेदारों को पछाडक़र किस्मत के धनी बने विजय रूपाणी को इस बात की उम्मीद भी नहीं थी कि डाकिये की चिट्ठी में बापजी ने उनका नाम लिखकर भेजा होगा। डर इस बात का भी दावेदारों को सता रहा है कि मप्र, राजस्थान और छग में किसी और की लॉटरी न लग जाए। ऐसे हालात देखकर इन दावेदारों पर तरस आता है कि इन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर आधी से ज्यादा उम्र निकाल दी । अब सत्ता के सरताज बनने के लिए पानी के मेढक की तरह उछल कूद कर रहे हैं। हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि किसी के भाग्य के साथ धोखा न हो। अब तो बात सिर्फ किस्मत की है, जो मुख्यमंत्री बनेगा बापजी की कृपा से ओ…राम जी की तर्ज पर सारे दावेदार भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं कि दिल्ली के बापजी को सद्बुद्धि देना कि डाकिये की चिट्ठी में मेरा नाम लिखकर भेज दें।
राजेश राठौर